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बड़े साहब की ‘डॉग वॉक’

अफसरशाही भी बड़ी अजीब शैः है।

अफसरशाही भी बड़ी अजीब शैः है। देश की बागडोर वास्तव में अफसरों के हाथ में होती है। यदि नौकरशाह दुरुस्त हो तो व्यवस्था चाक-चौबंद रहती है। देश की सेवा कर रहे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अनेक अधिकारियों को आम जनता से सम्मान और स्नेह भी मिलता है। आईएएस देखा जाए तो भारत की सबसे बड़ी प्रतिस्पर्धी परीक्षा है। इस परीक्षा में चयनित होने पर बड़ी जिम्मेदारी मिलती है। अनेक अधिकारी ऐसे हैं जिन पर गर्व किया जा सकता है। लेकिन अफसरशाहों के ऐसे कारनामे भी सामने आते रहे हैं जिससे लोगों का विश्वास उन पर से उठता जा रहा है। भ्रष्टाचार की दीमक प्रशासन को खोखला तो करती ही जा रही है लेकिन इनका आचरण और व्यवहार भी पद के अनुरूप नहीं होता।
अफसरशाह बहुत कुछ कर सकते हैं। अफसर चाहे नगर निगम का हो या किसी मंत्रालय का। अनुभवी राजनीतिज्ञ तो इनके जाल में नहीं फंसते लेकिन सियासत का नया खिलाड़ी फंस जाए तो ये उसे तीन साल तो पता ही नहीं लगने देते कि हो क्या रहा है। अफसर मलाई चाट जाते हैं। जब तक जनप्रतिनिधि को कार्यप्रणाली का पता चलता है तब तक उसकी आधी से ज्यादा अवधि बीत चुकी होती है। अनुभवी राजनीतिज्ञ तो अफसरशाहों पर अंकुश लगा कर रखते हैं। बड़े साहब तो बड़े साहब, मेम साहब का जलवा भी किसी प्रथम श्रेणी अधिकारी से कम नहीं होता। मेम साहब के ड्राइवर का नखरा भी कुछ कम नहीं होता।
अगर दम्पति दोनों अफसर हों तो फिर क्या कहने। इनके इर्द-गिर्द चाटुकारों की फौज होती है। महंगे उपहार देकर काम कराने वाले एजैंट इन्हें घेरे रहते हैं। नौकरशाही या अफसरशाही के बारे में कहा जाता है कि यह मंत्रीय उत्तरदायित्व के लबादे में पनपती है। यही कारण है ​िक अफसरशाहों, राजनीतिज्ञों और अपराधियों में सांठगांठ हो जाती है और फिर  करोड़ों के वारे-न्यारे किए जाते हैं। महिला  आईएएस अधिकारियों के घरों से बरामद करोड़ों की नगदी इस बात का प्रमाण है कि पूरा धंधा राजनीतिक संरक्षण के बिना हो ही नहीं सकता। आम लोगों के दुख तकलीफों की इन्हें कोई चिंता नहीं होती, बल्कि अफसर ऐसा मानने लगते हैं ​कि उनका कार्यपालिका और  वैधानिक शक्तियों पर पूर्ण अधिकार हो गया है। वे स्वयं को अधिक से अधिक शक्तिशाली बनाकर जनता पर पूर्ण नियंत्रण रखने के लिए बेचैन रहते हैं।
 कुछ ऐसा ही व्यवहार दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव (राजस्व) संजीव खिरवार ने किया। 2020 के ओलिम्पिक खेलों में भारतीय दल ने 7 पदक जीते जिनमें एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य शामिल हैं। भारत में खेलों के बुनियादी ढांचे की हालत किसी से छिपी नहीं। स्थानीय स्तर से लेकर टॉप लेबल तक प्रशिक्षण, चयन और बुनियादी ढांचे से जुड़ी दिक्कते हैं। इन्हीं दिक्कतों के बीच प्रतिभाओं को निखारना आसान काम नहीं होता। आईएएस संजीव खिरवार शाम होते ही स्टेडियम कब्जा लेते थे। वहां से एथलीटों और कोच को भगा दिया जाता था। ऐसा इसलिए किया जाता था ताकि बड़े साहब अपनी मेम साहब के साथ अपना कुत्ता टहला सकें। देर तक प्रैक्टिस करने वाले खिलाड़ियों की ट्रेनिंग जाए भाड़ में, बड़े साहब को तो अपना कुत्ता टहलाना है। जब ऐसी खबरें मीडिया में आईं तो यह चर्चा का विषय बनी। मीडिया रिपोर्ट्स बताती है कि सात दिनों में तीन दिन शाम साढ़े छह बजे गार्ड सीटी बजाते हुए स्टेडियम खाली करवाते हुए दिखाई दिए लेकिन के प्रशासन को इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि शाम 7 बजे के बाद स्टेडियम  का इस्तेमाल कुत्ते काे सैर कराने के लिए किया  जाता है। दरअसल यह मामला एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा अपनी प्रशासनिक शक्तियों के दुरुपयोग का है। 
यद्यपि कुत्ते को टहलाना जुर्म नहीं है लेकिन उसे सैर करने के लिए स्टेडियम को रोज आरक्षित करने का मामला गम्भीर है। जब यह मामला काफी उछला तो गृह मंत्रालय ने गाज गिरा ही दी। गृह मंत्रालय ने संजीव खिरवार को लद्दाख और उनकी आईएएस पत्नी रिंकू दुग्गा को अरुणाचल प्रदेश ट्रांसफर कर दिया। दोनों जगहों में 3100 किलोमीटर का फासला है। मामला सामने आने के बाद दिल्ली और केन्द्र सरकार ने गम्भीर रुख अपनाया। गृह मंत्रालय ने तुरंत दिल्ली सरकार से रिपोर्ट तलब की और पति पत्नी का तबादला कर दिया । हालांकि संजीव खिरवार सफाई देते रहे कि वह कभी-कभार ही कुत्ते को लेकर जाते थे लेकिन  उन पर एक्शन हो ही गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने भी राजधानी के सभी सरकारी खेल केन्द्रों को रात 10 बजे तक खुला रखने का निर्देश जारी कर दिया। नौकरशाहों ने भारत में अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर खेलों को कितना नुक्सान पहुंचाया है यह बात किसी से छुपी नहीं है। स्टेडियम डॉग वॉक अफसर को कितना महंगा पड़ा है, इससे सबक लेने की जरूरत है।

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