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मुख्यमंत्रियों के चयन में जाति अहम रही

भाजपा नेतृत्व भले ही इसे स्वीकार करना पसंद न करे लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों के चयन में जाति ने प्रमुख भूमिका निभाई है। पार्टी ने सोच-समझकर छत्तीसगढ़ के लिए एक आदिवासी नेता, राजस्थान के लिए एक ओबीसी यादव और राजस्थान के लिए एक ब्राह्मण को चुना। तीन राज्यों के लिए दो-दो उपमुख्यमंत्रियों के चयन में भी चुनावी रूप से महत्वपूर्ण जातियों के लिए इसी तरह का रुख दिखाया गया। इस प्रकार, ऐसे वक्त में भाजपा ने अपने सभी पक्षों को कवर करने की कोशिश की है, जब इंडिया गठबंधन के संभावित अस्तित्व की रणनीति के रूप में जाति पर पूरा जोर दिया है।
छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की संख्या 30 प्रतिशत से अधिक है, इसलिए समुदाय के वरिष्ठ नेता विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बनाया गया। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को विधानसभा अध्यक्ष के रूप में जगह दी गई। मध्य प्रदेश में ओबीसी की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है। नए मुख्यमंत्री के रूप में मोहन यादव का नाम भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के अंदरूनी हलकों के अलावा हर किसी के लिए आश्चर्य की बात हो सकती है लेकिन यह पार्टी की जातीय गणना में बिल्कुल फिट बैठता है। उनका चयन यूपी और बिहार में उनके समकक्षों को संकेत देने के लिए है।
राजस्थान में भाजपा ने एक ब्राह्मण को मुख्यमंत्री के रूप में चुनकर एक संतुलनकारी कार्य किया। पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा एक अनपेक्षित अभ्यर्थी थे। यहां तक ​​कि अपने सपने में भी उन्होंने यह उम्मीद नहीं की थी कि उन्हें शीर्ष पद के लिए चुना जाएगा लेकिन भाजपा नेतृत्व को ऊंची जातियों को खुश करने की जरूरत थी जो पार्टी को भारी वोट देती हैं, खासकर तब जब उसने छत्तीसगढ़ में नेतृत्व के लिए एक आदिवासी और एमपी में एक ओबीसी को चुना है। अब तीन राज्यों में उन पूर्व मुख्यमंत्रियों का चयन न होने के बारे में एक शब्द जो मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे थे। 2018 में भाजपा की हार के बाद रमन सिंह लगभग हाशिए पर थे, नवीनतम चुनाव तक वह शांत पड़े थे।
हालांकि, पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक लोकप्रिय नेता थे। यदि किसी राज्य नेता ने तीन राज्यों में पार्टी की सफलता में योगदान दिया तो वह मध्य प्रदेश में चौहान थे, जिनकी महिलाओं के बीच अपील राज्य में भाजपा की शानदार जीत में एक प्रमुख कारक थी। चार बार सीएम रह चुके चौहान इस मर्तबा भी सीएम पद के प्रबल दावेदार थे। कृषि क्षेत्र में उनके प्रदर्शन ने एमपी को लगभग पंजाब के बराबर गेहूं और चावल का एक प्रमुख उत्पादक बना दिया है।
नेतृत्व की दौड़ में शामिल तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों में अगर किसी ने निराशा जताई है तो वह हैं वसुंधराराजे। हालांकि उन्होंने औपचारिक रूप से नए सीएम के रूप में शर्मा का नाम प्रस्तावित किया और दावा पेश करने के लिए राज्यपाल से मिलने के लिए उनके साथ गईं। शपथ ग्रहण के बाद उन्हें व्यक्तिगत रूप से सचिवालय में सीएम के कार्यालय में ले गईं लेकिन इस नुक्सान को वह छिपा नहीं पा रही थी।
ऐसा लगता है कि उन्हें मोदी-शाह के साथ भाजपा में अपनी कम होती स्थिति के साथ सामंजस्य बैठाना सीखना होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भाजपा ने तीन राज्यों के लिए दो डिप्टी सीएम के चयन में जा​ित फैक्टर के साथ सामंजस्य बैठाने के लिए प्रमुख भूमिका निभाई है। भाजपा ने तीन राज्यों में पीढ़ीगत परिवर्तन किया है, ऐसे नेताओं का एक नया समूह तैयार किया है जो राज्य सरकारों के संचालन में नई ऊर्जा और कल्पना लाएंगे। मध्य प्रदेश में एक यादव चेहरे को मुख्यमंत्री नियुक्त करना एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। यूपी में अखिलेश यादव और बिहार में लालू यादव को चुनौती देने के लिए भगवा पार्टी अपने खुद के यादव नेता को तैयार करने की इच्छुक है। अब तक कांग्रेस पार्टी जाति को चुनावी राजनीति का एजेंडा बनाने के डर से जातिगत आरक्षण का दृढ़ता से विरोध करती थी।
पिछले दिनों राहुल गांधी ने फिर जाति सर्वेक्षण की मांग उठाई थी। कुछ दिन पहले विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्य में जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट को दबाए रखने के लिए कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को दोषी ठहराया था। कर्नाटक में जातिगत सर्वेक्षण पिछली सिद्धारमैया सरकार द्वारा कराया गया था लेकिन इसकी रिपोर्ट अभी जारी नहीं हुई है। शिवकुमार का तर्क है कि इसे ‘वैज्ञानिक रूप से’ आयोजित नहीं किया गया था, जिससे अाबादी का एक बड़ा प्रतिशत उजागर नहीं हुआ। खड़गे का आरोप है कि वोक्कालिगा और लिंगायत जैसी ऊंची जातियों को डर है कि सर्वेक्षण से जाति गणना में और इस प्रकार राज्य की राजनीति में उनका महत्व कम हो जाएगा। इस बीच, देर-सवेर शीर्ष अदालत से आरक्षण की अधिकतम सीमा पचास फीसदी निर्धारित करने वाले उसके आदेश के घोर उल्लंघन पर ध्यान देने के लिए कहा जाएगा। कई राज्यों में आरक्षण पहले से ही आधे-अधूरे लक्ष्य से कहीं अधिक है।

– वीरेन्द्र कपूर

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