सीबीआईः उच्च अफसर भी घेरे में आए - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

सीबीआईः उच्च अफसर भी घेरे में आए

देश की प्रमुख जांच एजेंसी ‘सीबीआई’ को अब प्रशासन के उच्च से उच्चतम अधिकारी के खिलाफ जांच करने के लिए सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं लेनी पड़ेगी और वह अपने विवेक व सबूतों के आधार पर सीधे जांच कर सकेगी।

देश की प्रमुख जांच एजेंसी ‘सीबीआई’ को अब प्रशासन के उच्च से उच्चतम अधिकारी के खिलाफ जांच करने के लिए सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं लेनी पड़ेगी और वह अपने विवेक व सबूतों के आधार पर सीधे जांच कर सकेगी। इस सन्दर्भ में 2014 में ही सर्वोच्च न्यायालय ने भाजपा नेता डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर फैसला दिया था कि ‘दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना कानून-1946’  में जिस धारा 6 ए(1) के तहत सरकारी सेवारत संयुक्त सचिव से ऊपर के अफसरों के खिलाफ जांच शुरू करने के ​िलए सरकार की स्वीकृति जरूरी थी, उसे निरस्त किया जाता है। चूंकि यह धारा 11 सितम्बर, 2003 को तत्कालीन वाजपेयी सरकार के दौरान जोड़ी गयी थी अतः न्यायालय का फैसला पूर्व प्रभाव से लागू माना जायेगा। देश की सबसे बड़ी अदालत के सामने मुद्दा भी यही था कि क्या धारा 6 ए(1) का निरस्त्रीकरण तभी से लागू माना जायेगा या 2014 से? इस प्रश्न पर न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने विचार करने के बाद यह फैसला दिया। 
न्यायमूर्ति एस.के. कौल के नेतृत्व में गठित पांच न्यायमूर्तियों की पीठ के समक्ष असल मुद्दा यही होने की वजह से फैसला भी इसी विषय पर केन्द्रित रहा है। संविधान पीठ ने अपने फैसले में संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों का हवाला देते हुए साफ किया कि जो कानून जिस तारीख से अवैध घोषित हुआ है, उसका क्रियान्वयन भी उसी तारीख से लागू होगा। सीबीआई का गठन भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहार लाल नेहरू ने 1963 में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना के तहत ही किया था। यह विशेष पुलिस कानून 1946 में अंग्रेज सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बनाया था क्योंकि 1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सेना को विभिन्न वस्तुओं की सप्लाई में जमकर भ्रष्टाचार होने की खबरें आयी थीं। उस समय हालत यह हो गई थी कि सेना को अंडे तक सप्लाई करने वाले कारोबारी देखते-देखते ही करोड़पति बन रहे थे। मगर पं. नेहरू को सीबीआई गठित करने की जरूरत इसलिए पड़ी थी क्योंकि स्वतन्त्र भारत में उस समय विभिन्न राज्यों के ऊंचे पदों पर बैठे लोगों में (राजनैतिक नेताओं समेत)  फैले भ्रष्टाचार की गूंज दिल्ली तक सुनाई पड़ने लगी थी। इसी से चिन्तित होकर नेहरू जी ने बड़े औहदों पर बैठे लोगों की जांच कराने के लिए दिल्ली विशेष पुलिस कानून को पुनर्जीवित करते हुए इसे सीबीआई का नाम दिया था और कांग्रेस पार्टी का शुद्धिकरण करने हेतु ‘कामराज प्लान’ तैयार किया था जिसके अन्तर्गत  सभी मुख्यमन्त्रियों व कैबिनेट मन्त्रियों के इस्तीफे लेकर नये सिरे से इन पदों पर नियुक्तियां की गई थीं। यह कार्य नेहरू ने तमिलनाडु के तत्कालीन मन्त्री श्री कामराज नाडार को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना कर किया था जिन्होंने सभी ऊंचे पदों पर कांग्रेसियों को इस्तीफा देने का हुक्म दिया था। 
सीबीआई का लक्ष्य उसी दिन से भ्रष्टाचारियों को पकड़ने का हो गया था। इसका कार्यक्षेत्र बहुत व्यापक बनाया गया था जिससे राज्य सरकारों को भी इसकी मदद से उलझे हुए आपराधिक मामले सुलझाने में मदद मिल सके। इसके बाद से सीबीआई को देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी का रुतबा इस प्रकार मिलता गया कि राज्य सरकारों से लेकर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय भी इसे विशिष्ट आपराधिक मामलों की जांच करने के आदेश देने लगे। इसकी प्रतिष्ठा भारत के लोगों के बीच बहुत ही ऊंचे पायदान पर रख देखी जाने लगी जिसमें पिछले तीन दशकों में बहुत गिरावट आई है। एक जमाना वह भी था कि लोगों को सीबीआई प्रमुख का नाम तक पता नहीं होता था क्योंकि सीबीआई की चर्चा सार्वजनिक विमर्श का मुद्दा नहीं बन पाती थी। मगर शुरू में सीबीआई कानून में धारा 6ए (1) नहीं थी, जिसमें संयुक्त सचिव से ऊपर के अफसर के खिलाफ मामला दर्ज करने से सरकार से सहमति लेने की जरूरत पड़े। यह धारा 2003 में ही वाजपेयी सरकार के दौरान ही जोड़ी गई थी। सीबीआई की संरचना के बारे में पहली बार देश की जनता को तब पता चला जब 90 के दशक में इसके प्रमुख श्री जोगेन्द्र सिंह बने। इससे पहले सीबीआई प्रमुख प्रेस या मीडिया से दूर ही रहते थे। मगर यह भी सत्य है कि तब तक सीबीआई देश के बहुत पेचीदा आपराधिक कांडों के पेंच खोल कर अपराधी को पकड़ने के लिए जानी जाने लगी थी लेकिन वर्तमान दौर में सीबीआई के पास इतने मामले जांच के लिए पड़े हैं कि इसकी कर्मचारी क्षमता कम समझी जाती है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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