पंजाब के नये मुख्यमन्त्री श्री चरणजीत सिंह चन्नी ने गद्दी पर बैठते ही अपने राज्य के लोगों के जीवन में जिस तरह ‘चानना’ बिखेरने की शुरूआत बिजली व पानी के बिल आदि माफ करने और उन्हें कम करने के साथ की है वह अन्य राज्यों के लिए अनुकरणीय कदम हो सकता है क्योंकि श्री चन्नी ने राज्य के गरीब लोगों को अपने इन फैसलों से राहत प्रदान की और आश्वासन दिया कि भविष्य में उनकी सरकार गरीबों के कल्याण के लिए हर संभव प्रयत्न करती रहेगी। श्री चन्नी स्वयं गरीब परिवार से आने के साथ ही दलित घर में पैदा हुए हैं और अपनी मेहनत-लगन और प्रतिभा के बूते पर इस मुकाम तक पहुंचे हैं अतः वह गरीबों के दर्द को अपने दिल के बहुत करीब समझते हैं और जानते हैं कि गरीब आदमी को किन-किन कठिनाइयों से गुजरते हुए अपने परिवार का भरण-पोषण करना पड़ता है। श्री चन्नी जनता के बीच से उठ कर आये हुए राजनीतिज्ञ हैं अतः वह समाज के विभिन्न वर्गों की कठिनाइयों से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं और जानते हैं कि आज के जमाने में पेट्रोल व डीजल केवल रईसों के ऐश की वस्तु नहीं रही है बल्कि यह सामान्य नागरिक के लिए आवश्यक उपभोक्ता वस्तु बन चुकी है।
पेट्रोल व डीजल के आसमान छूते दामों से राहत दिलाने के लिए श्री चन्नी ने राज्य की जनता को राज्य शुल्क वैट में भारी कटौती करके दीपावली का जो तोहफा दिया है उसका असर सकल प्रादेशिक अर्थव्यवस्था पर पड़ने के साथ ही गरीब से लेकर मध्यम वर्ग के आदमी की जेब पर भी होगा और उसे पेट्रोल पर अपेक्षाकृत कम खर्च करना पड़ेगा। पंजाब में राज्य शुल्क वैट की दरें अब सबसे कम 13.77 प्रतिशत (पेट्रोल) व 9.92 प्रतिशत (डीजल) होंगी। हालांकि केन्द्र ने पेट्रोल पर 5 रु. और डीजल पर 10 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से उत्पाद शुल्क में कमी की है मगर शुल्क की दरें अभी भी बहुत ऊंची हैं। इसके साथ केन्द्र ने इनकी कीमतों पर जो अधिभार शुल्क (सेस) लगाया हुआ है उसमें किसी प्रकार की कटौती नहीं की गई है जिसकी वजह से केन्द्रीय उत्पाद शुल्क घटने के बावजूद पंजाब में पेट्रोल की कीमत 7 नवम्बर तक 105 रु. प्रति लीटर से अधिक व डीजल की 88 रु. प्रति लीटर से अधिक थी।
श्री चन्नी द्वारा वैट घटाये जाने की घोषणा के बाद से पेट्रोल अब 95 रु. व डीजल 83 रु. से कुछ अधिक पर बिकना शुरू हो गया है। चन्नी सरकार ने पेट्रोल पर सीधे 10 रु. घटाये हैं जबकि डीजल पर 5 रु. घटाये हैं। इससे यह सन्देश जाता है कि लोगों के दुख में शामिल होना किसी भी जन कल्याणकारी सरकार का पहला कर्त्तव्य होता है। शुल्क की दरें बेतहाशा बढ़ा कर जो भी राजस्व उगाही किसी भी सरकार द्वारा की जाती है उसे राज हित में भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि भारत के महान दार्शनिक अर्थशास्त्री आचार्य चाणक्य ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘कौटिल्य का अर्थशास्त्र’ में दो हजार साल से अधिक वर्ष पूर्व लिख दिया था कि ‘राजा का कर्त्तव्य होता है कि वह अपनी प्रजा से शुल्क वसूली उसी तरह करे जिस तरह मधुमक्खियां विभिन्न फूलों से पराग लेकर अपना शहद का छत्ता बनाती हैं।
‘आचार्य चाणक्य का यह सूत्र कल्याणकारी राज का मर्म इस प्रकार खोलता है कि किसी भी शासन प्रणाली के तहत प्रजा अर्थात जनता अपना जीवन आराम से बिता सकें और व्यापारिक व वाणिज्यिक गतिविधियां बिना राजस्व चोरी किये अबाध गति से चालू रह सकें।
वर्तमान समय में बार-बार यह मांग उठती रही है कि जीएसटी प्रणाली लागू होने के बाद से पेट्रोल व डीजल को इसके अन्तर्गत क्यों नहीं लाया जा रहा है? इसका उत्तर हालांकि बहुत गूढ़ और उलझे हुए तर्कों वाला है परन्तु पाठकों की समझ के लिए मैं इतना लिख रहा हूं कि यदि पेट्रोल व डीजल भी जीएसटी के घेरे में ले आये जाते हैं तो राज्य सरकारें किसी सूखे पेड़ की तरह हो जायेंगी और उनके पास वक्त जरूरत के मुताबिक स्वयं वित्तीय स्रोत जुटाने का कोई प्रमुख साधन नहीं रहेगा। पिछले दिनों हमने देखा है कि राज्य सरकारें जीएसटी से अपना हिस्सा लिये जाने के लिए मनुहारें कर रही थीं। यह स्थिति भारत जैसे ‘राज्यों के संघ’ देश के लिए अच्छी नहीं हो सकती क्योंकि हमारे संविधान निर्माताओं ने बहुत सोच-समझ कर ही केन्द्र व राज्यों के अधिकारों की अलग-अलग सूचियां बनाई थीं। मगर बाजार मूलक अर्थव्यवस्था लागू हो जाने के बाद जमीनी वित्तीय बदलाव जिस तरह आया है उसे देखते हुए ही राज्यों ने अपने वित्तीय अधिकार जीएसटी के तहत केन्द्र सरकार को समर्पित किये औऱ अपने पास पेट्रोलियम व मदिरा जैसे प्रमुख उत्पाद ही रखे। ऐसी जटिल व्यवस्था के बीच श्री चन्नी ने राज्य के लोगों को राहत देने के लिए जो रास्ता खोजा है वह अन्य राज्यों के लिए भी एक उदाहरण है जिस पर वे अमल कर सकते हैं।
बेशक पंजाब सरकार की राजस्व आय पर इस फैसले से काफी गहरा असर पड़ेगा मगर जनता के सुख से बढ़ कर लोकतन्त्र में कोई दूसरा सुख नहीं होता है। हमें ध्यान रखना चाहिए कि जब कोई घर-घर दूध बांटने वाला अपनी मोटर- साइकिल पर दूध से भरी कैनें लाद कर जाता है तो पैट्रोल की बढ़ी कीमतें हमारे दूध के भाव पर असर डालती हैं मगर दूध वाला इसका बहाना लेकर दूध की कीमत नहीं बढ़ा पाता है और अपने लाभ में से इसकी भरपाई करने को मजबूर होता है। श्री चन्नी ने स्वयं पंजाब के एक कस्बे में पेट्रोल पंप चलाया है वह जानते हैं कि जब पेट्रोल 100 रु. से ऊपर जाता है तो इसका किस कदर सर्वव्यापी असर हो सकता है। अतः बहुत जरूरी है कि भारत जैसे विशाल व खुली अर्थव्यवस्था वाले देश में पेट्रोल के भाव डालर की विनिमय दर के आसपास ही रखने की कोशिश की जाये और विभिन्न शुल्कों को इस प्रकार समायोजित किया जाये कि सरकारी राजस्व उगाही में ठहराव बना रहे क्योंकि पेट्रोल व डीजल की खपत हर साल लगातार बढ़ ही रही है जिससे राजस्व उगाही भी बढ़ती है।