भारत और चीन में तनाव कम करने के लिए 12 अक्तूबर को सातवें दौर की वार्ता होने जा रही है। अब ऐसा लगता है कि ज्यों-ज्यों जाड़े का मौसम नजदीक आ रहा है त्यों-त्यों चीन की बेचैनी भी बढ़ रही है। अभी तक तो चीन के रवैये से यही इशारा मिल रहा था कि शांति बहाली में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है।
मई से लेकर अब तक वह भारतीय सैनिकों पर अनर्गल आरोप लगाता रहा है। कभी हमारे सैनिकों की गश्त को रोकता, तो कभी गलवान झड़प के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराता है। चीनी सेना के जमावड़े को देखते हुए भारत ने भी अपनी स्थिति मजबूत कर ली है और उसे उसकी आक्रामकता का ठोस प्रतिकार मिल रहा है।
चीन ने भारतीय सेना की तैयारियों पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि उसने भारत द्वारा लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बनाने के निर्णय को स्वीकार नहीं किया। यह एक ठोस तथ्य है कि लद्दाख भारत का अभिन्न हिस्सा है और उसकी प्रशासनिक संरचना में बदलाव करने का अधिकार भारतीय संसद और सरकार को है।
दुनिया की कोई ताकत इस अधिकार को छीन नहीं सकती। सर्दियों के मौसम में जब बर्फ पड़नी शुरू हो जाएगी और तापमान शून्य से भी नीचे चला जाएगा तो भारतीय सैनिकों के मुकाबले चीनी सैनिकों को बहुत ज्यादा परेशानी होगी। चीन की चिन्ता यह भी है कि उसका सामना करने के लिए भारतीय सेना सक्षम भी है, तैयार भी। फिलहाल तो एलएसी पर न तो शांति की स्थिति है और न युद्ध की। इससे स्पष्ट है कि भारत किसी भी आसन्न संकट से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है।
भारत ने आर्थिक और तकनीकी मोर्चे पर जो पग उठाये हैं उससे भी चीन काफी परेशान नजर आ रहा है। एलएसी पर तनाव के बीच हिन्द प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया के साथ भारत ने जो रणनीतिक मोर्चाबंदी की है, उससे भी चीन परेशान है।
जापान की राजधानी टोक्यो में मंगलवार को क्वाड समूह के विदेश मंत्रियों की दूसरी बैठक होने जा रही है। यह बैठक एक तरह से चीन को संदेश है कि अब एशिया और इसके चारों ओर महासागरों में उसके बढ़ते कदमों के खिलाफ घेरेबंदी की रणनीति पर तेजी से काम हो रहा है।
भारत के लिए क्वाड समूह की बैठक का महत्व इस समय काफी ज्यादा हो गया है। अमेरिका ने दो टूक कहा है कि इस समूह का मकसद एशिया प्रशांत क्षेत्र को सुरक्षित बनाना है। इन चार देशों के समूह की स्थापना का मूल उद्देश्य एशिया में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत को रोकना है। पिछले कई वर्षों से दक्षिण चीन सागर में चीन अपनी दादागिरी दिखा रहा है। उसकी इस दादागिरी से जापान, आस्ट्रेलिया और अमेरिका काफी परेशान रहते हैं।
दक्षिण चीन सागर में चीन से अमरीका का टकराव होता रहा है। कई मौकों पर तो हालात यहां तक पहुंच गए थे कि ऐसा लगता था कि युद्ध कभी भी भड़क सकता है। चीन और अमेरिका में ट्रेड वार तो चल ही रही थी, आस्ट्रेलिया भी चीन से काफी नाराज है और जापान उसका पुराना प्रतिद्वंद्वी है। दरअसल दक्षिण चीन सागर सामरिक दृष्टि से काफी महत्व रखता है।
चीन ने वहां नौसैनिक अड्डे बना लिये हैं, कुछ टापुओं पर कब्जा भी कर लिया है। इसके अलावा दक्षिण चीन सागर, प्रशांत महासागर और हिन्द महासागर के बीच स्थित समुद्री मार्ग से व्यापार के लिए काफी महत्वपूर्ण क्षेत्र है। दुनिया में कुल समुद्री व्यापार का 20 फीसदी हिस्सा यहां से गुजरता है।
दक्षिण चीन सागर विवाद का मुख्य कारण समुद्र पर विभिन्न देशों का दावा और समुद्र का क्षेत्रीय सीमांकन है। दक्षिण चीन सागर पर फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ताइवान और ब्रुनेई अपना दावा करते रहे हैं। चीन इस सागर पर मालिकाना हक के एक अंतर्राष्ट्रीय पंचाट के फैसले को मानने से इन्कार कर रहा है। भारत दक्षिणी सागर को एक तटस्थ जगह मानता है।
भारत मानता है कि यह तटस्थता कायम रहनी चाहिये कि ये किसी भी देश का समुद्र नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से भारत-अमेरिका रिश्तों में प्रगाढ़ता आई है। अगर चीन से विवाद ज्यादा बढ़ता है तो फिर क्वाड की भूमिका अहम हो सकती है। चीन को कोई एक देश नकेल नहीं डाल सकता।
इसलिए अमेरिका ने भारत, जापान और आस्ट्रेलिया का हाथ थामा है। दि क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलाग को ही क्वाड के नाम से जाना जाता है। यह 2007 में शुरू हुआ था और दस वर्ष तक निष्क्रिय रहा। 2017 में एक बार फिर क्वाड देश मिले और वार्ता आगे बढ़ी।
चीन की निरंकुशता को रोकने के लिए क्वाड जैसे समूह का विस्तार होना बहुत जरूरी है। भारत को चाहिए कि वह भी क्वाड समूह के देशों से मिलकर चीन के खिलाफ एक दहला देने वाली फोर्स तैयार करे जिससे अपनी क्षेत्रीय सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
व्यापार, सुरक्षा तथा कथित निगरानी को लेकर चीन के साथ हुए संघर्ष ने आस्ट्रेलिया को अमेरिका और उसके सहयोगियों के करीब धकेल दिया है। चीन को कभी यह उम्मीद ही नहीं थी कि उसके खिलाफ इस तरह का गठजोड़ भी बन सकता है।
अमेरिका का इंडो पैसिफिक क्षेत्र में इस राजनीतिक गठबंधन का नेतृत्व करना चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड आर्थिक परियोजना के तहत बढ़ते प्रभाव और दक्षिण चीन सागर में सैन्यीकरण का जवाब हो सकता है। अब देखना होगा कि यह समूह किस प्रकार काम करता है क्योंकि भारत और जापान को चीन से बड़े खतरे हैं।
-आदित्य नारायण चोपड़ा