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चीन, जापान और रूस

दुनिया में जितनी तेजी से टकराव बढ़ रहा है वह चिंता का ​विषय है। कोई छोटी सी भूल भी विश्व युद्ध का कारण बन सकती है।

दुनिया में जितनी तेजी से टकराव बढ़ रहा है वह चिंता का ​विषय है। कोई छोटी सी भूल भी विश्व युद्ध का कारण बन सकती है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद शीत युद्ध के दौरान दुनिया दो खेमों में बंट गई थी। एक का नेतृत्व अमेरिका कर रहा था तो दूसरे का सोवियत संघ। दूसरे विश्व युद्ध के चार साल बाद सोवियत संघ नाटो का सदस्य बना था लेकिन दिसम्बर 1991  में सोवियत संघ के पतन के बाद दुनिया एक ध्रुवीय हो चुकी है। धीरे-धीरे रूस ने खुद को फिर महाशक्ति का स्वरूप ले लिया। अमेरिका और रूस अभी भी शीत युद्ध वाली मानसिकता से मुक्त नहीं हुए हैं। अमेरिका और रूस आपस में उलझे हुए हैं। अमेरिका और चीन में टकराव जारी है। दुनियाभर के देश अपनी-अपनी खेमेबाजी में बंटे हुए हैं। भविष्य में दुनिया का परिदृश्य क्या होगा कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता। रूस और यूक्रेन के युद्ध को चलते एक वर्ष से भी अधिक समय हो गया है। एक के बाद एक शहर तबाह हो रहे हैं। मानवता कराह रही है। लाखों लोग अपने ही देश में शरणार्थी हो चुके हैं लेकिन कूटनीति जारी है। कूटनीति के अलग-अलग रंग हमें देखने  को मिल रहे हैं।
जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा भारत दौरे के तुरन्त बाद अचानक यूक्रेन की राजधानी कीव पहुंच गए। उधर चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग मास्को में हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग ने रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से रूस-यूक्रेन युद्ध पर बातचीत की। दोनों देशों ने स्वीकार किया कि परमाणु युद्ध कभी नहीं होना चाहिए। शी जिन पिंग की रूस यात्रा का मकसद रूस को समर्थन देना था। इससे चीन का अपने लिए बहुत कुछ हासिल करना भी रहा। यद्यपि चीन ने युद्ध रुकवाने के लिए बातचीत करने का समर्थन किया है लेकिन इस यात्रा से रूस-चीन की नजदीकियां काफी बढ़ गई हैं। रूस से चीन को कच्चे तेल और गैस की सप्लाई में बढ़ौतरी हुई है तो चीन से रूस का निर्यात भी बढ़ा है। चीन इस समय अमेरिकी प्रभाव को खत्म कर खुद ग्लोबल लीडर बनने की कोशिश कर रहा है। एक तरफ वह यह दिखा रहा है कि वह जंग रुकवाने में जुटा हुआ है तो दूसरी तरफ उसने दो दुश्मनों सऊदी अरब और ईरान में समझौता करा कर अमेरिका को जबरदस्त झटका दिया है।
जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने कीव पहुंच कर राष्ट्रपति जेलेंस्की से मुलाकात की। उन्होंने जंग में तबाह यूक्रेन के औद्योगिक सैक्टर की मदद के लिए 470 मिलियन डॉलर की मदद का ऐलान किया, वहीं जापान ने नाटो ट्रस्ट फंड से यूक्रेन को गैर घातक हथियार खरीदने के लिए 30 मिलियन डॉलर देने की घोषणा की है। किशिदा ने यूक्रेन को समर्थन देते हुए कहा कि संकट की घड़ी में जापान यूक्रेन के साथ खड़ा है। जापान पहले भी कई बार रूस के यूक्रेन पर हमले को लेकर ​विरोध जता चुका है। इसके अलावा जापान ने जंग को लेकर रूस पर प्रतिबंध लगाने और यूक्रेन को मानवीय और आर्थिक सहायता देने में भी अमेरिका और यूरोपीय देशों का साथ दिया था। किसी जापानी प्रधानमंत्री का अचानक यूक्रेन पहुंचना अपने आप में चौंकाता है। क्यों​िक दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार जापान का कोई नेता किसी युद्धग्रस्त देश में पहुंचा है। यूक्रेन में जापान के नेता की मौजूदगी इस बात का संकेत है कि भू- राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई है। पिछले महीने ही चीन और जापान में सुरक्षा वार्ता हुई थी। चीन और रूस के नजदीक आने का सबसे बड़ा कारण यह है कि दोनों ही देश नाटो का विस्तार नहीं चाहते। जबकि अमेरिका नाटो देशों का विस्तार चाहता है। 
रूस और जापान में टकराव काफी पुराना है। रूस और जापान में एक-दूसरे के प्रति घृणा का भाव दोनों देशों में हुए युद्ध के बाद से ही बरकरार है। जहां तक भारत का संबंध है, रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत की भूमिका काफी चर्चा में रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन को दो टूूक कह दिया था कि आज का दौर युद्ध का नहीं है और युद्ध समाप्त करने के लिए बातचीत की जरूरत है। रूस भारत का अभिन्न मित्र है इसलिए भारत ने तटस्थ रुख अपना रखा है लेकिन रूस के करीब आए चीन से भारत काफी परेशान है और लद्दाख में एलएसी पर दोनों देशों में गतिरोध बरकरार है। चीन भारत को अपना आर्थिक उपनिवेश बनाने की कोशिश कर रहा है और  गुर्रा भी रहा है। पाकिस्तान और  अफगानिस्तान इस  समय चीन की कूटनीति के हिसाब से काम कर रहे हैं। इसकी वजह भारत को अधिक चौकन्ना रहना पड़ रहा है। कौन किसके पाले में खड़ा है यह साफ है लेकिन इतना तय है कि दुनिया पूरी तरह से उलझ चुकी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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