क्या चीन की अर्थव्यवस्था का गुब्बारा फूट चुका है। हांगकांग और शंघाई की गगनचुंबी इमारतों के पीछे का सच सामने आने लगा है और भविष्यवाणी की जाने लगी है कि चीन की अर्थव्यवस्था कभी भी धराशायी हो सकती है। दुनिया को अपने आर्थिक आतंकवाद से आतंकित करने वाले ड्रैगन की छटपटाहट दुनिया महसूस कर रही है। आगामी दिनों में चीन की इकानॉमी के बारे में और सच सामने आना तय है। इसका वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ना तय है। हांगकांग का हैंग सेंग (एचएसआई) सूचकांक मंदी की चपेट में है। पिछले हफ्ते चीनी युआन 16 वर्षों में अपने सबसे निचले स्तर पर गिर गया। रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि इस साल की शुरुआत में कोविड लॉकडाउन हटने के बाद गतिविधियों में तेजी से बढ़ोतरी के बाद भी विकास रुक रहा है। उपभोक्ता कीमतें गिर रही हैं, रियल एस्टेट संकट गहरा रहा है और निर्यात में गिरावट आ रही है। युवाओं में बेरोजगारी की स्थिति इतनी बदतर हो गई है कि सरकार ने आंकड़े ही प्रकाशित करना बंद कर दिया है। नोमुरा, मॉर्गन स्टेनली और बार्कलेज के शोधकर्ताओं ने पहले अपने पूर्वानुमानों में कटौती की थी। इसका मतलब है कि चीन लगभग 5.5% के अपने आधिकारिक विकास लक्ष्य से चूक सकता है।
चीन की अर्थव्यवस्था अप्रैल से मंदी में है, लेकिन इस महीने प्रॉपर्टी बिक्री के मामले में देश की सबसे बड़ी डेवलपर कंपनी कंट्री गार्डन और शीर्ष ट्रस्ट कंपनी झोंगरोंग ट्रस्ट के डिफॉल्टर के बाद चिंताएं तेज हो गई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कंट्री गार्डन ने दो अमेरिकी डॉलर बांड पर ब्याज भुगतान में चूक की है, जिससे निवेशक घबरा गए। चीन ने रियल एस्टेट बाजार को पुनर्जीवित करने के लिए कई उपाय शुरू किए हैं। लेकिन यहां तक कि इस क्षेत्र की मजबूत कंपनियां भी अब डिफाल्टर के कगार पर हैं। इस महीने की शुरुआत में झोंगरोंग ट्रस्ट कम से कम चार कंपनियों को लगभग 19 मिलियन डॉलर मूल्य के निवेश उत्पादों को चुकाने में विफल रहा है। चीनी सोशल मीडिया पर वीडियो में देखा गया कि गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने हाल ही में ट्रस्ट कंपनी के कार्यालय के बाहर उत्पादों पर भुगतान की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन भी किया। दुनिया पर चीनी अर्थव्यवस्था की गिरावट का असर यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका और भारतीय उपमहाद्वीप पर पड़ना तय है। अगर इन देशों से मांग कम रही तो चीनी फैक्ट्रियों के चक्के धीमे पड़ जाएंगे। चीनी फैक्ट्रियों में उत्पादन कम होने से बेरोजगारी बढ़ने की आशंका होगी। यह दुनिया को मंदी की तरफ धकेल देगा।
आईएमएफ का कहना है कि चीन की आर्थिक वृद्धि दर में एक प्रतिशत की वृद्धि से अन्य देशों में 0.3 प्रतिशत की वृद्धि होती है। संघर्षरत चीनी अर्थव्यवस्था वैश्विक सुधार को शुरुआती स्थिति में ही बाधित कर देगी। आईएमएफ के अनुसार, 2022 में 35% के मुकाबले 2023 में वैश्विक वृद्धि अब केवल 3% होगी। वर्ष 2023 में वैश्विक विकास में चीन और भारत की तरफ से 50% से अधिक योगदान करने की उम्मीद है। भारत को इस अवसर का लाभ उठाने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। मोदी सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में पीएलआई योजनाओं को लागू करके विनिर्माण उद्योगों को बढ़ावा देना शुरू किया है। चीन की ताकत रही हार्डवेयर इंडस्ट्री के बड़े खिलाड़ियों ने भारत में अपने प्रोजैक्ट लगाने शुरू कर दिए हैं। आईटी हार्डवेयर में 38 वैश्विक कंपनियों का पीएलआई स्कीम के लिए आवेदन उत्साहजनक है।
जैसे-जैसे चीन धीमा होगा, वैसे-वैसे उसकी तेल और अन्य वस्तुओं की मांग बढ़ेगी। भारतीय कंपनियां कम कीमतों पर उन तक पहुंच सकती हैं। ऐसे में भारत वैश्विक आपूर्ति सीरिज में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकता है। चीनी अर्थव्यवस्था में वर्तमान सुस्ती को देखते हुए माना जा रहा है कि उच्च विकास दर का युग बीत चुका है। ऐसे में भारत दुनियाभर को सामान और सेवाएं प्रदान करने वाला वैकल्पिक स्रोत बन कर उभर सकता है। इस अवसर का लाभ उठाकर भारत वैश्विक अगवा बनने के अपने सपने को जीवंत कर सकता है। भारत के पास चीनी अर्थव्यवस्था के फिसलने को आपदा में अवसर बना लेना चाहिए। इससे देश की जनता को बहुत फायदा होगा।