इंडिया गठबंधन में बढ़ रही दरारें - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

इंडिया गठबंधन में बढ़ रही दरारें

ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा की शुरूआत मंगल मुहूर्त में नहीं हुई। क्योंकि जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ रही है, कांग्रेस के लिए अशुभ खबरें ही आ रही हैं। महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस छोड़ी। बिहार में नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा बन गए। झारखण्ड में यात्रा के पहुंचने से पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। ऐसे में इंडिया गठबंधन तो चुनाव मैदान में उतरने से पहले ही बिखरता और टूटता दिख रहा है। यहां तक तो गनीमत थी, हालात इस हद तक पहुंच गए हैं कि, इंडिया गठबंधन में शामिल घटक दल ही कांग्रेस की राजनीतिक क्षमता और शक्ति पर सवालिया निशान लगाने लगे हैं।
जनवरी के आखिर में राहुल गांधी जब बिहार में न्याय यात्रा लेकर पहुंचने वाले थे, तो इस बात की चर्चा थी कि इसमें नीतीश कुमार भी शामिल होंगे। हालांकि, बिहार में राहुल की एंट्री से पहले ही नीतीश कुमार अपनी पार्टी जेडीयू संग पाला बदलते हुए एनडीए में शामिल हो गए। नीतीश भी ममता की तरह ही सीट बंटवारे में हो रही देरी की वजह से नाराज थे। राजनीतिक गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि नीतीश इंडिया गठबंधन के संयोजक नहीं बनाए जाने से भी नाराज चल रहे थे। नीतीश के जाने के बाद बिहार में इंडिया गठबंधन की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है, जिससे उबरने में काफी वक्त लगने वाला है।
भारत जोड़ो यात्रा के पश्चिम बंगाल में प्रवेश करते ही ममता बैनर्जी ने राज्य की सभी लोकसभा सीटों पर अकेले लड़ने की घोषणा कर दी। वे इस बात से नाराज बताई जा रही हैं कि न्याय यात्रा के पूर्व उनके आग्रह के बावजूद भी राहुल गांधी ने उनसे फोन पर बात नहीं की। बीते दिन ही ममता दीदी का एक बयान सामने आया जिसमें वह कह रही हैं कि कांग्रेस लोकसभा की 40 सीटें भी नहीं जीत सकेगी। उन्होंने चुनौती दी कि यदि उसमें हिम्मत है तो वह भाजपा को वाराणसी और प्रयागराज में परास्त करके दिखाए। उन्होंने ये ताना भी मारा कि वह न जाने किस अहंकार में जी रही है। हालांकि वे काफी पहले से ही राहुल और कांग्रेस को अक्षम बता चुकी थीं। विपक्षी मोर्चा बनने के बाद उन्होंने कांग्रेस से साफ कह दिया कि वे उसके लिए वही दो सीटें छोड़ेगी जिन पर 2019 में वह जीती थी। वास्तव में, भारत जोड़ो न्याय यात्रा से उनकी खुन्नस इसलिए भी बढ़ी क्योंकि उसमें वामपंथी शामिल हुए। नीतीश कुमार के पाला बदल लेने के बाद ममता ही इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी नेता कही जा सकती हैं जिनका पश्चिम बंगाल के अलावा एक दो राज्यों में कुछ प्रभाव है।
महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा के कांग्रेस छोड़ने से यह सवाल उठ रहा है कि क्या उनके इस कदम से पार्टी पर प्रभाव पड़ सकता है। इस समय कांग्रेस इंडिया अलायंस में शामिल अन्य दलों के साथ सीट-बंटवारे की योजना पर चर्चा कर रही है। कांग्रेस को आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस जैसी दलों से ज्यादा-ज्यादा हासिल करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा। ऐसे में मिलिंद का पार्टी से अलग होना महाराष्ट्र में शिवसेना (यूबीटी) के साथ सीट शेयरिंग में कांग्रेस की स्थिति को कमजोर कर सकता है। इसके अलावा पार्टी राजस्थान में सचिन पायलट के विद्रोह जैसी शर्मनाक स्थितियों से बचने की कोशिश कर रही है। मिलिंद देवड़ा राज्य में कांग्रेस की रणनीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं। उनके जाने से यहां न सिर्फ कांग्रेस की स्थिति कमजोर होगी, बल्कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला शिवसेना गुट मजबूत हुआ है। शिंदे गुट को एक अनुभवी राजनेता मिला है। इतना ही नहीं मिलिंद के रूप में कांग्रेस ने एक ऐसा नेता खोया है, जो अपने चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड के हिसाब से 2024 में एक संभावित सांसद हो सकते थे।
इंडिया गठबंधन के लिए ताजा मुसीबत झारखंड में पैदा हुई है। कांग्रेस और जेएमएम झारखंड में सहयोगी हैं और जेएमएम इंडिया गठबंधन का हिस्सा भी है। राहुल की यात्रा के झारखंड में आने से पहले ही हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया गया है। उनकी गिरफ्तारी की वजह से इंडिया गठबंधन को काफी नुकसान पहुंचा है। बात अगर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन की कि जाए तो वे अपने राज्य के अलावा पुडुचेरी तक ही सिमटे हैं। एनसीपी के दिग्गज शरद पवार का करिश्मा भी ढलान पर है। भतीजे अजीत की बगावत के बाद विपक्षी गठबंधन के बजाय उन्हें अपनी बेटी सुप्रिया सुले के राजनीतिक भविष्य की चिंता सताए जा रही है। कहा तो ये भी जा रहा है कि अजीत के भाजपा में जाने की योजना भी चाचा की ही तैयार की हुई थी। देर-सवेर अपनी बेटी के राजनीतिक भविष्य को सुरक्षा चक्र प्रदान करने के लिए वे भी भाजपा और पीएम मोदी के मोहपाश में फंस जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार विपक्षी गठबंधन के तमाम घटक जिस प्रकार अपनी ढपली अपना राग लेकर घूम रहे हैं वह उसके भविष्य को लेकर आशंकित कर रहा है। ममता के सभी सीटों पर लड़ने के ऐलान के बाद जब राहुल ने सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत चलने जैसी टिप्पणी करते हुए उनकी नाराजगी दूर करना चाहा तो तृणमूल नेत्री ने कांग्रेस को 40 सीटें मिलने की भविष्यवाणी कर दूध में नींबू निचोड़ दिया।
महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे भी कांग्रेस को बड़ा भाई मानने राजी नहीं हो रहे। आम आदमी पार्टी ने पंजाब के बाद हरियाणा में भी अकेले लड़ने की धौंस दिखा दी। 22 जनवरी को अयोध्या स्थित राम मंदिर में मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर पर समूचे देश में जो स्वतःस्फूर्त वातावरण निर्मित हुआ उसने कांग्रेस को पिछले पैरों पर धकेल दिया। उक्त आयोजन का आमंत्रण मिलने के बावजूद उसमें शामिल नहीं होने के उसके निर्णय को राजनीतिक विश्लेषक बहुत बड़ी गलती मान रहे हैं। यद्यपि शरद पवार और ममता सहित ज्यादातर विपक्षी नेता उस दिन अयोध्या नहीं गए किंतु पूरे देश में कांग्रेस जन जिस उत्साह के साथ राम नाम की माला जपते दिखे उसके बाद ये साफ हो गया कि पार्टी का सामान्य कार्यकर्ता ही नहीं अपितु नेतागण भी राम मंदिर निर्माण के कारण पैदा हुई हिन्दू लहर से भयाक्रांत हैं। आचार्य प्रमोद कृष्णम तो खुलेआम पार्टी लाइन के विरुद्ध बोलते जा रहे हैं। और तो और वे प्रधानमंत्री को अपने एक आयोजन का निमंत्रण पत्र देने उनसे भेंट तक कर आए।
हैरान करने वाली बात ये है कि विपक्षी गठबंधन में आ रही दरारों को भरने की फुर्सत किसी नेता को नहीं है। नीतीश कुमार इसमें सक्षम थे किंतु वे कांग्रेस के रवैये और इंडिया गठबंधन में ज्यादा भाव न मिलने के चलते भाजपा के साथी बन गए हैं। शरद पवार अपना घर ही नहीं संभाल पा रहे हैं। जहां तक बात ममता की है तो उनके साथ किसी की पटरी नहीं बैठती। मल्लिकार्जुन खड़गे का पूरा ध्यान न्याय यात्रा पर है। ऐसे में इंडिया गठबंधन के मसलों को सुलझाने और विपक्षी एकता के लिए समय नहीं दे पा रहे हैं। देश की संसद को सर्वाधिक 80 सीटें देने वाले राज्य में अभी कांग्रेस और सपा के बीच सीटों का बंटवार अंतिम निर्णय तक पहुंच नहीं पाया है। जो हालात हैं उससे हर बीतते दिन के साथ दोनों दलों के बीच खटास और दूरियां बढ़ेंगी ही। राहुल की भारत जोड़ो न्याय यात्रा का फल क्या होगा, ये तो आने वाला कल ही बताएगा। फिलवक्त कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लिए समय ठीक नहीं चल रहा।

– राजेश माहेश्वरी 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

three × two =

Related Posts

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।