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गायब होते जंगल

दिल्ली में हर साल इन दिनों प्रदूषण बढ़ने के कई कारण हैं। शुद्ध हवा में सांस लेना कल्पना मात्र ही रह गया है लेकिन सांस पर संकट केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पैदा हो चुका है। हरे-भरे खूबसूरत पेड़, जहां तक नजर जाएं वहां तक हरियाली ही हरियाली कितना सकून देती है लेकिन वास्तविकता इससे बहुत अलग है। शहरीकरण के दबाव, बढ़ती जनसंख्या और तेज गति से विकास की दौड़ ने हमें हरियाली से वंचित कर दिया है। घरों की पहली मंजिल से कभी दिखाई देते नीम और अमरुद के पेड़ होना बीते जमाने की बात हो गई है और छोटे-छोटे फ्लैटों में एक-दो पौधे लगाकर हम हरियाली का भ्रम पालने लगे हैं। ऐसे समय में जब दुनिया भर के वैज्ञानिक बार-बार ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से चेता रहे हैं और भविष्य का चेहरा दिखा रहे हैं। ऐसे में न्यूयार्क की संस्था एनवाईडीएफ की रिपोर्ट दिल दहला देने के लिए काफी है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि साल भर में दुनिया के कई देशों में श्रीलंका-आयरलैंड जैसे देशों के बराबर जंगल गायब हो गए हैं। जंगलों के सफाए से 2022 में कुल चार बिलियन मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ है। ब्राजील, पेरू, लाओस जैसे देशों में 18 फीसदी से लेकर 51 फीसदी तक पेड़ काटे जा चुके हैं। अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में जीव-जन्तुओं की कई प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी।
जंगल हमारी दुनिया की लाइफ लाइन है। उनके बगैर हम पृथ्वी पर जीवन का चक्र घूमने की कल्पना भी नहीं कर सकते। संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट भी चौंकाने वाली है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण दुनिया में हर साल 10 करोड़ हैक्टेयर कृषि भूमि बंजर हो रही है। कृषि भूमि बंजर होने की रफ्तार पहले की तुलना में बहुत ज्यादा तेज है। अगर इसी रफ्तार से हरित भूमि गायब होती गई तो विश्व में खाद्यान्न संकट गहरा सकता है। पूरी दुनियाको 20 प्रतिशत ऑक्सीजन देने वाले अमेजन के जंगल भी खत्म हो रहे हैं।
इस ग्रह को पेड़ जो सेवाएं देते हैं उनकी फेहरिस्त बहुत लम्बी है। वो इंसानों और दूसरे जानवरों के छोड़े हुए कार्बन को सोखते हैं। ज़मीन पर मिट्टी की परत को बनाए रखने का काम करते हैं। पानी के चक्र के नियमितीकरण में भी इनका अहम योगदान है, इसके साथ पेड़ प्राकृतिक और इंसान के खान-पान के सिस्टम को चलाते हैं और न जाने कितनी प्रजातियों को भोजन प्रदान करते हैं। इसके अलावा ये दुनिया के अनगिनत जीवों को आसरा देते हैं। बिल्डिंग मैटीरियल यानी लकड़ी की शक्ल में ये इंसानों को भी घर बनाने में मदद करते हैं। पेड़ हमारे लिए इतने काम के हैं, फिर भी हम इन्हें इतनी बेरहमी से काटते रहते हैं जैसे कि इनकी इस धरती के लिए कोई उपयोगिता ही नहीं। इंसान ये सोचता है कि इनके बगैर हमारा काम चल सकता है। हम ये सोचते हैं कि आर्थिक लाभ के लिए पेड़ों की कुर्बानी दे सकते हैं। अगर पेड़ इंसान की सोची हुई विकास की प्रक्रिया में बाधा बनें तो इन्हें काटकर हटाया जा सकता है। खुले मैदान में खड़ा एक अकेला पेड़ भी कई जीवों को पनाह देता है। उन्हें जीने के संसाधन मुहैया कराता है। इसलिए एक पेड़ गंवाने का मतलब भी कई जीवों को पनाह देता है, उन्हें जीने के संसाधन मुहैया कराता है। इसलिए एक पेड़ गंवाने का मतलब भी कई जीवों से धरती को महरूम करना होता है।” सारे पेड़ खत्म हो जाएंगे तो धरती की जलवायु में भी बड़े पैमाने पर बदलाव देखने को मिलेगा। पेड़, जेविक पंप का काम करते हैं और हमारी पृथ्वी के जल चक्र को नियंत्रित करते हैं। वो ज़मीन से पानी सोखते हैं और इसे भाप के तौर पर वायुमंडल में छोड़ते हैं। ऐसा कर के जंगल बादल बनाने का काम करते हैं जिससे बारिस होती है। इसके अलावा पेड़ भारी बारिश की सूरत में बाढ़ आने से भी रोकते हैं क्योंकि ये पानी को अपने इर्द-गिर्द रोक देते हैं और वो पानी तेज़ी से अचानक नदियों या झीलों में नहीं जाता।
बिना पेड़ों के इलाके सूख जाएंगे। अगर बारिश हुई भी तो बाढ़ से भारी तबाही होगी। जंगल तापमान घटा कर ठंडक का काम भी करते हैं। वो बहुत से जीवों को पनाह भी देते हैं। वो जमीन को छाया मुहैया कराते हैं जिससे तापमान ठंडा रहता है। जंगल समाप्त होने से 500 गीगा टन कार्बन वायुुमंडल में मिल जाएगी। पेड़ों के खात्मे का हमारी सभ्यता और संस्कृति पर गहरा असर पड़ेगा। भगवान बुद्ध ने बोद्धि वृक्ष के नीचे 49 दिनों तक तपस्या करके ज्ञान की प्राप्ति की थी। हिन्दू धर्म में पीपल के पेड़ की पूजा की जाती है और उसे विष्णु का अवतार माना जाता है। ईसाई धर्म की पवित्र किताब ओल्ड टैस्टामैंट में ईश्वर को प्रकृति की रचना के तीसरे दिन पेड़ों की उत्पत्ति करते बताया गया है।
भारतीय वन सर्वेक्षण चाहे कितनी भी योजनाएं पेश कर ले, पर वनों का प्रतिशत संतोषजनक नहीं माना जा सकता। देश के बड़े राज्यों में जंगलों का क्षेत्र कम हुआ है। हर साल देश के वन क्षेत्र में आग से काफी नुक्सान होता है। देश के 27 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में दावानल की घटनाओं में वृद्धि होती जा रही है। वर्तमान में प्राणवायु प्रदान करने वाले जंगल खुद अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। खेत प्लाट हो गए हैं। प्लाट फ्लैट हो गए हैं। फ्लैट दुकानें बन चुकी हैं। हरित पट्टियां खत्म कर भव्य शोपिंग मॉल बन चुके हैं। फिर हम कैसे पर्यावरण की बात कर सकते हैं। बिना पेड़ों के जीवन बिताना इंसानों के लिए बहुत मुश्किल होगा। हो सकता है कि बिना पेड़ों की दुनिया में इंसान बचे रह जाएं लेकिन ऐसी दुनिया में आखिर रहना कौन चाहेगा। दुनिया को प्रलय से बचाने के लिए हमें जंगल और पेड़ बचाने होंगे और प्रकृति के साथ जीवन जीना सीखना होगा।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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