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भारत के सच्चे रत्न हैं डॉ. मनमोहन सिंह

पिछले साल अगस्त महीने की एक तस्वीर की आपको याद दिलाता हूं, दिल्ली कैपिटल टेरिटरी बिल में संशोधन के लिए राज्यसभा में वोटिंग होनी थी। कांग्रेस ने उसका विरोध किया था लेकिन बहुमत सरकार के पास होने से नतीजा पहले ही स्पष्ट था, इसके बावजूद डॉ. मनमोहन सिंह व्हीलचेयर पर बैठकर संसद पहुंचे थे। कोई दूसरा होता तो शायद ही पहुंचता लेकिन मनमोहन सिंह के लिए उनका कर्त्तव्य हमेशा सबसे ऊपर रहा है। वे निस्संदेह भारत के आर्थिक सुधारों के प्रणेता रहे हैं। भारत के लिए दुनिया के और दुनिया के लिए भारत के दरवाजे खोलने का साहसिक निर्णय उन्होंने ही लिया था। राजनीति से अलग, पीएम नरेंद्र मोदी के मुंह से ऐसे व्यक्तित्व की सराहना मायने रखती है।
मैं 18 वर्षों तक संसद का सदस्य रहा हूं और इस दौरान मुझे उनकी निकटता का सौभाग्य भी मिला। उनसे मैंने सीखा कि भारतीय लोकतंत्र के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ कैसे अर्पित करें, जब कभी कुछ उलझन हुई तो न मैं उनसे पूछने में झिझका और न उन्होंने बताने में कोई कोताही की। उनका स्नेह पात्र बनना सौभाग्य की बात थी। मैंने करीब से यह जाना कि भारत को दुनिया के स्तर पर कैसे सशक्त बनाना है, इस बारे में उनका दृष्टिकोण हमेशा ही स्पष्ट रहा। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और कुशल अर्थशास्त्री के रूप में मनमोहन ने अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी अद्वितीय प्रतिभा को पीवी नरसिम्हा राव ने पहचान लिया था। उनकी सरकार में मनमोहन 1991 से 1996 तक वित्त मंत्री थे, यही वो वक्त था जब भारत ने ग्लोबलाइजेशन की ओर कदम बढ़ाए। भारत में लाइसेंस और परमिट राज कुख्यात था। उसे खत्म कर दिया, उसके बाद भारत की डूबती इकोनॉमी ने कुलांचे भरना शुरू किया जिसे दुनिया में सराहा गया।
2004 में जब वे प्रधानमंत्री बने तो उन्हें ‘एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ भी कहा गया लेकिन आमतौर पर चुप रहने वाले मनमोहन ने इतिहास में दर्ज करा दिया कि वे भारत के श्रेष्ठतम पीएम में से एक हुए। दस वर्षों के अपने कार्यकाल में उन्होंने देश को जो दिशा और गति दी, उसका सुफल हमें आज देखने को मिल रहा है। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है तो निश्चय ही इसमें मनमोहन सिंह की नीतियों का भी योगदान रहा है।
मनमोहन सिंह ने न केवल देश की आर्थिक उन्नति पर ध्यान केंद्रित किया था बल्कि सामाजिक सुरक्षा की कई ऐसी योजनाएं भी शुरू कीं जो कालजयी बन गईं, वे जानते थे कि शिक्षा ही वह माध्यम है जो देश को विकास के पथ पर आगे ले जा सकता है, इसलिए उन्होंने 6 से 14 साल के हर बच्चे के लिए शिक्षा को उसका मौलिक अधिकार बना दिया। उनका विश्वास था कि सब कुछ पारदर्शी हो तो लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी। इसलिए उन्होंने आम आदमी को सूचना का अधिकार दिया। कोई भूख से न मरे इसलिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून बनाया। भूमि अधिग्रहण कानून और वन अधिकार कानून भी उनकी ही देन है। वे प्रत्येक ग्रामीण परिवार को हर साल कम से कम 100 दिन काम के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम लेकर आए। अब मनरेगा नाम की यह योजना दुनिया में अपने तरह की अनोखी रोजगार योजना है, मनमोहन सिंह के जमाने में ही इंदिरा गांधी मातृत्व योजना शुरू हुई। इस योजना के तहत महिलाओं की गर्भावस्था से लेकर प्रसव के बाद मां और बच्चे की देखरेख सुनिश्चित की गई, आर्थिक मदद और अन्य संसाधन सुनिश्चित किए गए।
मेरी नजर में बहुत आगे की सोच वाली एक योजना मनमोहन सिंह ने इस देश को दी जिसे हम सब आधार कार्ड के रूप में जानते हैं। यूनाइटेड नेशन ने आधार कार्ड योजना की काफी तारीफ की लेकिन कमाल की बात है कि देश में उस वक्त आधार कार्ड योजना को लेकर संशय पैदा करने वालों की संख्या बहुतायत में थी। तत्कालीन विपक्ष इसे लेकर हमलावर की स्थिति में था। आम आदमी के मन में यह बात समा गई थी कि यह कार्ड बनाने के लिए सरकार लोगों की जानकारी ले लेगी और यदि इसका दुरुपयोग हुआ तो? लेकिन वो सारी आशंकाएं बेबुनियाद निकलीं। आज आधार कार्ड आम आदमी की जिंदगी का हिस्सा बन गया है। पैन कार्ड हो या मोबाइल नंबर या फिर बैंक खाता, सभी जगह आधार कार्ड अनिवार्य है। वास्तव में हम जिस तेजी से डिजिटलाइजेशन की तरफ बढ़े हैं, उसमें आधार कार्ड का बड़ा योगदान है, हमें इसका श्रेय मनमोहन सिंह को देना ही चाहिए।
मैंने हमेशा यह महसूस किया कि मनमोहन सिंह देश की हर मौजूदा और प्रत्येक संभावित समस्या को जड़ से समाप्त करने का रास्ता ढूंढ़ते रहते थे। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में अमेरिका के साथ भारत की जो न्यूक्लियर डील हुई थी उसे मैंने हमेशा एक माइलस्टोन के रूप में देखा। खुद उन्होंने भी इस डील को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बताया था। उसी डील से यह रास्ता खुला कि भारत परमाणु ईंधन खरीद सकता है और परमाणु संयंत्रों के लिए ईंधन तकनीक भी हासिल कर सकता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के प्रति तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश काफी सहृदय थे। उनकी ईमानदारी हमेशा शक के दायरे से बहुत दूर रही है, भारत के ऐसे लाडले नेतृत्वकर्ता राज्यसभा से विदा होने वाले हैं। डॉक्टर साहब को लंबी उम्र मिले, वे स्वस्थ रहें, यही कामना है।

– डॉ. विजय दर्डा

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