डीआरडीओ का रामबाण - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

डीआरडीओ का रामबाण

कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी है। जब जरूरत पड़ती है तो संकट से जूझने के लिए आविष्कार भी होते रहे हैं और करिश्मे भी।

कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी है। जब जरूरत पड़ती है तो संकट से जूझने के लिए आविष्कार भी होते रहे हैं और करिश्मे भी। भारत में अभी तक गम्भीर मरीजों के इलाज में रेमडेसिविर, फेबिफ्लू जैसी दवाओं के साथ कुछ नेजल स्प्रे को भी डाक्टरी सलाह और कोविड प्रोटोकॉल के तहत इस्तेमाल किया जा रहा है। अप्रैल के बाद से कोरोना के नए मामलों की सुनामी सी आ गई है और इस कारण दिल्ली से बेंगलुरु तक के अस्पतालों में आक्सीजन का संकट गहराया है। आक्सीजन और रेमडेसिविर की कालाबाजारी हो रही है और प्रशासन भी इसे रोकने में आंशिक रूप से सफल भी हो रहा है लेकिन समाज में बैठे रक्तपिपासु अपना खेल जारी रखे हुए हैं। भारत को ऐसी दवा की जरूरत है जो मरीजों में आक्सीजन की जरूरत को कम करती हो और मौजूदा संकट में मददगार साबित हो।
यह करिश्मा कर दिखाया है रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया यानी भारत के औषधि महानियंत्रक ने कोविड का मुकाबला करने के डीआरडीओ की लैब इनमास और हैदराबाद की डा. रैड्डीज लैब द्वारा तैयार की गई दवा 2-डीजी के आपात इस्तेमाल की स्वीकृति दे दी है। इस दवा को कोरोना मरीजों के लिए रामबाण माना जा रहा है क्योंकि यह मरीजों को तेजी से स्वस्थ होने में मदद करती है और आक्सीजन पर उसकी निर्भरता काे कम करती है। यह दवा कोरोना के मध्यम आैर गम्भीर मरीजों को दी जा सकती है।
डीआरडीओ के इंस्टीच्यूट ऑफ न्यूमिलयर मेडिसिन एंड अलायड साइसेंज आैर डा. रैड्डीज लैब पिछले  वर्ष अप्रैल से ही लगातार ट्रायल कर रही थी। तीनों ट्रायल के बाद दवा काफी कारगर पाई गई। मरीजों में तेजी से रिकवरी पाई गई। ट्रायल दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र,  आंध्र,  तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु में किए गए। यह एक जैनेरिक मोकियल है और ग्लूकोज का एक ऐनोलोग है, इसलिए यह भरपूर मात्रा में मार्केट में उपलब्ध है। यह एक सैशे में पाउडर फार्म में है और पानी में घोल कर पी जा सकती है। तीसरे दिन ही यह दवाई असर दिखाती है, जबकि दूसरी दवाइयों के साथ मरीजों को आक्सीजन देनी पड़ती है। 65 वर्ष से अधिक आयु वाले कोविड मरीजों पर तो यह काफी कारगर सा​बित हुई। 2- डीजी दवाई कोविड से ग्रस्त मरीज के शरीर में वायरस के साथ घुल जाती है ​जिससे वायरस की ग्रोथ नहीं हो पाती, इसके वायरस के साथ मिल जाना ही इस दवाई को अलग बना देता है। शुरुवात में यह दवाई अस्पतालों के मरीजों को ही मिल सकेगी।मोकियल 
डीआरडीओ की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन के तौर पर की गई थी। यह प्रतिष्ठित संस्थान 52 प्रयोगशालाओं का एक समूह है जो रक्षा प्रौद्योगिकी के​ विभिन्न क्षेत्र जैसे वैमानिकी, शस्त्र इलैक्ट्रानिक्स, लड़ाकू विमान, इंजीनियरिंग प्रणालियां, मिसाइलें, उन्नत कम्प्यूटरिंग और सिम्रलेशन, सेना के लिए विशेष सामग्री, नौसेना प्रणाली, सूचना प्रणाली तथा कृषि में कार्य करता है। देश की सुरक्षा में उसके द्वारा तैयार सामग्री का बहुत योगदान है। एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम में उसने आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है। पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, आकाश और टैंक भेदी नाग मिसाइल इसकी उपलब्धियां हैं। ब्रह्मोस, निर्भय, पन्नडुब्बी सागरिका, शौर्य, धनुष, अस्त्र, प्रहार सब इसकी उपलब्धियां हैं।
बलस्य मूलम विज्ञानम यानि शक्ति का स्रोत विज्ञान है जो शांति और युद्ध में राष्ट्र को संचालित करता है। डीआरडीओ ने ​विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के मामले में राष्ट्र को मजबूत और आत्मनिर्भर तो बनाया है लेकिन महामारी से निपटने के लिए  दवा ईजाद करके यह साबित किया कि वह मानवता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। इसके अलावा डीआरडीओ ने देशभर में अस्थाई कोविड अस्पताल शुरू किए हैं और आक्सीजन प्लांट स्थापित करने में भी बड़ी भूमिका निभा रहा है। डीआरडीओ की दवा अदृश्य कोरोना वायरस का काल बनेगी, जिस तरह उसकी मिसाइलें दुश्मन पर स्टीक निशाना बनाने में सफल रहती हैं। 
कोराेना काल में डीआरडीओ ही नहीं बल्कि सेना के तीनों अंग भी जमीन-आसमान एक किये हुए हैं। एक न एक दिन तो वायरस हारेगा ही लेकिन यह राष्ट्र प्रतिष्ठित संस्थाओं की भूमिका को कभी भुला नहीं पाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

16 − ten =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।