आज का युग जिसमें हर तरफ टैक्नोलॉजी का जोर है और हर तरफ डिजिटल तेजी से प्रचलन में आ रहा है ऐसे में देखने वाली बात यह है कि हम इसका प्रयोग कैसे करते हैं। जीवन के हर क्षेत्र में हर चीज सीमा के दायरे में अच्छी लगती है। कम या ज्यादा प्रयोग घातक हो सकता है। आज के तनाव भरे माहौल से मुक्ति पाने के लिए नई-नई चीजें निकल आयी हैं। अगर कोई चीज बुरी है और आप सुनना नहीं चाहते या कोई बुरी चीज बुरी है, पर आप बोलना नहीं चाहते तथा अगर बुरी चीज आप देखना नहीं चाहते तो इसके तीन रास्ते सुझाए गये थे कानों पर हाथ रख लो, मुंह पर हाथ रख लो या फिर आंखों पर हाथ रख लो।
यह कल तक की बात थी लेकिन आज जमाना टैक्नोलॉजी का है। आप कोई शोरशराबा नहीं चाहते और अपने में मस्त रहना चाहते हैं तो आपके मोबाइल में सैकड़ों गीत हैं अपने ईयरफोन को उनसे कनेक्ट कीजिए और मस्त हो जाईये। अपने आपको मस्त रखने का यह एक अच्छा तरीका है लेकिन अगर चार-चार पांच-पांच घंटे आप कानों पर ईयरफोन लगाकर रखेंगे तो यह ठीक नहीं। यह निष्कर्ष हमारा नहीं अमरीका से उन वैज्ञानिकों की रिपोर्ट का है जिसमें कहा गया है कि एक दिन में दो घंटे से ज्यादा ईयरफोन का प्रयोग मानव शरीर पर प्रभाव डाल सकता है। अगर उम्र पचास वर्ष से ज्यादा है और आप एक दिन में दो घंटे से ज्यादा ईयरफोन कानों में लगाकर रखते हैं तो यह सुनने की शक्ति को भी प्रभावित कर सकता है। साथ ही वैज्ञानिकों ने परामर्श दिया है कि टैक्नोलॉजी का प्रयोग निश्चित अवधि के लिए ही किया जाये तो अच्छा है। उदाहरण दिया है कि अगर चौबीस घंटे आप जागने का काम करेंगे और आंखों को आठ घंटे का विश्राम नहीं देंगे तो सबकुछ प्रकृति के खिलाफ जायेगा। शरीर के हर अंग का अपना महत्व है और अपना सिस्टम है। अब आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिए कि हमारे यहां मोबाइल से लेकर ईयरफोन तक आजकल कौन कितनी देर तक इनका प्रयोग करता है।
छोटे बच्चों को मां की लोरी के बजाय विदेशों में कानों में ईयरफोन के माध्यम से मधुर धुन लगा दी जाती है और बच्चा आराम से सो जाता है। बचपन से ऐसी आदतें अगर टैक्नोलॉजी के माध्यम से पड़ जायेगी तो जीवन कैसे चलेगा? टैक्नोलॉजी का प्रयोग करना और नियम के अनुसार चलना जीवन में इसका महत्व होना चाहिए। अब बात मोबाइल की ही करते हैं कि किस प्रकार फेसबुक, व्हाट्सएप या फिर इंस्टाग्राम का प्रचलन हमारे जीवन में हो गया है, बहुत सी अन्य शारीरिक गतिविधियां खत्म होकर रह गई हैं। सैर करने से लेकर दफ्तर के कामकाज तक, भोजन करने से लेकर बेड पर जाने तक हर वक्त मोबाइल हाथ में रहता है। किसी भी चीज का जरूरत से ज्यादा प्रयोग घातक ही है। कोरोना ने हमें बहुत प्रभावित किया है। मेरा अपना मानना है कि हमने कोरोना को एक चैलेंज के रूप में लिया और टैक्नोलॉजी के माध्यम से अपने एजुकेशन सिस्टम को ऑनलाइन के माध्यम से आगे बढ़ाया लेकिन यह सब निश्चित अवधि के लिए था।
आज की तारीख में अगर टैक्नोलॉजी का अधिक प्रयोग हमारे शरीर को प्रभावित करने लगे तो फिर सावधान हो जाना चाहिए। एक स्वस्थ शरीर के लिए एक्सरसाइज का बहुत महत्व है। शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए योग का महत्व है। फिटनेस होनी चाहिए चाहे कोई जिम जाये या फिर पार्क में सैर करें लेकिन बात खुद के रिलेक्स करने की है। अगर फिटनेस के लिए हम जो एक्सरसाइज करते हैं उस दौरान भी कानों में ईयरफोन लगे हुए हैं तो यह अत्याधिक प्रयोग ही माना जायेगा। इस एक्सेस प्रयोग को लेकर सोशल मीडिया पर भी चर्चा खूब हो रही है। हमारे यहां भी एक्सपर्ट्स कहने लगे हैं कि टैक्नोलॉजी का उतना ही प्रयोग करना चाहिए जितनी उसकी जरूरत है। खुद हमारे सीनियर सीटीजंस ने कोरोना के दिनों में दो-दो तीन-तीन घंटे ऑनलाइन मनोरंजक कंपीटीशन किये हैं लेकिन हमने सबकुछ एक लिमिट में रहकर किया है। सबकुछ लिमिट में ही किया जाना चाहिए। अपने स्वास्थ्य को बचाकर हमें यह करना है। जीवन में हैल्थ सबकुछ है। चीन के बारे में इसी टैक्नोलॉजी को लेकर शंघाई से आई रिपोर्ट भी चौंकाने वाली है जिसमें 40 फीसदी बच्चे ईयरफोन के बगैर सो नहीं सकते, का उल्लेख आया है जो सचमुच चौंकाने वाला है। इसे लेकर वहां विशेषज्ञ और वैज्ञानिक बहुत गंभीर हैं। स्वाभाविक चीज स्वाभाविक ही है। हर चीज का मजा मर्यादा में ही है। वह हमारी परंपरागत चीजें हो या टैक्नोलॉजी हो एक लिमिट तो होनी ही चाहिए। समय आ गया है अब इसके बारे में सोचा जाना चाहिए। ईयरफोन हो, मोबाइल हो या कोई भी आधुनिक सुविधा हो उसके प्रयोग को लेकर मर्यादाओं और लिमिट का ध्यान रखना चाहिए।