राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के इर्द-गिर्द घूमता चुनाव प्रचार - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के इर्द-गिर्द घूमता चुनाव प्रचार

आम चुनाव में पहले चरण का मतदान हो चुका है। चुनावी मंचों से मुद्दे गायब हैं। असल में इस चुनाव में राजनीतिक दलों ने कोई मुद्दा तय ही नहीं किया। अलग-अलग क्षेत्रों में राज्यों के साथ ही लोकसभा चुनाव तक में अलग-अलग मुद्दे दिख रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में मुद्दों का यह बिखराव क्या असर डालेगा? अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग मुद्दे दिखाई दे रहे हैं। असल में इस बार का आम चुनाव वादों और दावों की जगह गारंटी और भरोसे का है। हालांकि पहले चरण का मतदान बेहद सुस्त रहा है। अभी चुनाव के छह चरण बाकी हैं, इसके बावजूद केंद्रीय मुद्दों और प्रभावी नारों के अभाव में चुनाव प्रचार में उफान नहीं दिख रहा। शांत मतदाता न तो गारंटी की ओर भरोसे से देख रहे हैं और न ही भरोसे पर गारंटी देने का संकेत दे रहे हैं। न तो किसी मुद्दा विशेष पर देश में बहस छिड़ी है और न ही कोई ऐसा नारा है, जो लोगों की जुबान पर चढ़ा हो।
2019 का आम चुनाव इस चुनाव से बिल्कुल अलग था। चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पूर्व ही सियासी मैदान भ्रष्टाचार बनाम राष्ट्रवाद का रूप ले चुका था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी राफेल सौदे में भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर चैकीदार चोर है, के नारे लगवा रहे थे, जबकि भाजपा पुलवामा आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान के खिलाफ हुई एयर स्ट्राइक को मोदी है तो मुमकिन है नारा लगा रही थी। राफेल मामले में पीएम पर व्यक्तिगत हमले को भाजपा गरीब पर हमले से जोड़ रही थी। इन दोनों ही मुद्दों पर तब राष्ट्रव्यापी चर्चा शुरू हो चुकी थी।
असल में इस चुनाव में यह नहीं कहा जा सकता है कि हर जगह एक ही मुद्दा चल रहा है। कहीं जाति की बात हो रही है तो कहीं रोजगार की बात हो रही है। सनातन की बात भी कई मतदाता कर रहे हैं। दक्षिण भारत के मुद्दे कुछ अलग हैं और वहां के मुद्दे अलग ढंग से उठाए गए हैं। इसी तरह नॉर्थ ईस्ट के मुद्दे अलग हैं। महिलाओं की जहां तक बात है तो उन्हें यह चाहिए कि उनके लिए क्या-क्या किया गया यह भी मुद्दा है। मुद्दे बनाना विपक्ष का काम होता है। सरकार ये कहती है कि हमने बहुत अच्छा काम किया, हमने यह बना दिया इतनी सड़कें बना दीं, इतना रोजगार दे दिया हमें वोट दीजिए। अगर विपक्ष की बात करेंगे तो पिछले एक साल में मुद्दा बनाने की जगह विपक्ष गठबंधन बना रहा है नहीं बना रहा इसी पर उलझा रहा।
सरकार की बात करेंगे तो वह कह रही है कि हमने राम मंदिर बनाने की बात कही थी हमने बना दिया। विपक्ष ने जितने मुद्दे उठाए वो सभी चूचू का मुरब्बा निकले। हर चुनाव में विपक्ष ईवीएम का मुद्दा उठाता है। अगर यह इतना बड़ा मुद्दा होता तो विपक्ष चुनाव का बहिष्कार कर देता। देश के राजनीतिक दल विजन से ज्यादा टेलीविजन पर निर्भर हैं। टेलीविजन प्रभावित जो राजनीति हो गई है उसकी वजह से विजन कहीं मिसिंग है। जहां तक घोषणा पत्र की बात है तो भाजपा का घोषणा पत्र अच्छा है और कांग्रेस का भी घोषणा पत्र अच्छा है, लेकिन देश में घोषणा पत्र पर कभी चुनाव नहीं हुए। यह बस औपचारिकता भर रह गया है।
घर-घर गारंटी अभियान की शुरुआत कर चुकी कांग्रेस पहली नौकरी पक्की, भर्ती भरोसा, पेपर लीक मुक्ति, वर्कर सुरक्षा और युवा रोशनी गारंटी के रूप में अलग-अलग वर्गों को साधने की कोशिश की है। इसके अलावा पार्टी ने महिला, किसान, श्रमिक और हिस्सेदारी न्याय के तहत अलग-अलग वर्गों के लिए कई वादे किए हैं। हालांकि पार्टी का घोषणापत्र अब तक जारी नहीं हुआ है। एनडीए के लिए अबकी बार चार सौ पार, तो अपने लिए 370 सीटें जीतने का दावा कर रही भाजपा ने मतदाताओं को साधने के लिए ब्रांड मोदी को हथियार बनाया है। पार्टी युवाओं के विकास, महिलाओं के सशक्तीकरण, किसानों के कल्याण और हाशिये पर पड़े कमजोर लोगों के सशक्तीकरण के लिए मोदी गारंटी दे रही है। जबकि विकसित भारत के निर्माण और देश की तीसरी अर्थव्यवस्था बनाने की गारंटी दे रही है।
किसी एक मुद्दे को केंद्र में लाने की सत्तारूढ़ और विपक्षी गठबंधन की तमाम कोशिशें सिरे नहीं चढ़ी हैं। विपक्षी गठबंधन के नेता लालू प्रसाद की पीएम मोदी पर व्यक्तिगत टिप्पणी के खिलाफ भाजपा ने मोदी का परिवार अभियान चलाया। भाजपा इंदिरा सरकार के समय तमिलनाडु से सटे कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को दिए जाने के मुद्दे पर आक्रामक है। वहीं, विपक्षी गठबंधन कभी केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग, कभी चुनावी बॉन्ड में भ्रष्टाचार, तो कभी केंद्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है। चुनाव प्रचार के उफान पर न आने का सबसे बड़ा कारण मुद्दों को लेकर विपक्ष में निरंतरता प्रदर्शित करने का अभाव है। खासतौर से विपक्षी गठबंधन बनने के बाद भी विपक्ष मैदान में खुलकर उतरने के बदले सीट बंटवारे की गुत्थी सुलझाने में ही उलझा है। भले ही यह गठबंधन दो बार एक मंच पर आने में सफल रहा है, मगर राहुल गांधी, प्रियंका गांधी या कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे मोदी, शाह, नड्डा की तुलना में बहुत कम जनसभाओं को संबोधित कर रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि चुनाव में आम जनता से संबंधित मुद्दों का सर्वाधिक महत्व होना चाहिए। हालांकि राजनीतिक नूरा-कुश्ती में ऐसा हो नहीं पाता है। लोकसभा चुनाव का पूरा माहौल राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के इर्द-गिर्द सिमटकर रह जाता है।
इस बार भी कमोबेश वैसी ही तस्वीर दिख रही है। पूरे देश के नागरिकों के लिए पांच साल में एक बार यह मौका आता है। इस मौके पर वे अपनी बात और अपने मुद्दे पुरजोर तरीके से अपने होने वाले जनप्रतिनिधियों के सामने रख सकते हैं। राजनीतिक दलों और उनके नेताओं से अतीत में किए गए वादों पर सवाल पूछ सकते हैं। रोजमर्रा की समस्याओं को उठा सकते हैं। देश के आम लोग राजनीतिक जिम्मेदारी और जवाबदेही को लेकर अपने नेताओं को कटघरे में खड़े कर सकते हैं। बेरोजगारी और महंगाई जनता के सामने सबसे बड़ी समस्या है जिसका निदान होना चाहिए। साथ ही पर्यावरण भी चुनावी मुद्दा बनना चाहिए क्योंकि इसके बगैर हमारा जीवन मुश्किल हो सकता है।
आज चुनाव आकर्षक वादों और आधारहीन दावों के बल पर लड़ा-लड़ाया जा रहा है। जनता से जुड़े मुद्दों को नजरंदाज कर विकास के दावे किए जा रहे हैं। मतदाता को राजनीतिक दलों से उनके दावों और वादों के आधार के बारे में पूछना चाहिए। एक तरफ तो पांचवें पायदान से तीसरे पायदान पर पहुंचने के दावे और वादे किए जा रहे हैं और दूसरी ओर देश की अस्सी करोड़ जनता को मुफ्त अनाज देने की आवश्यकता पड़ रही है, यह कैसा विकास है? वास्तविकता तो यह है कि चुनावी मुद्दों के नाम पर अनावश्यक मुद्दे उछाल कर जनता का ध्यान विकेंद्रित किया जा रहा है।
जहां तक मुद्दे की बात है तो यह पूरा चुनाव विकेंद्रित हो गया है। जैसे जम्मू-कश्मीर के मुद्दे जो हैं वो वहां के लोगों के मुद्दे हैं। यहां तक कि चुनाव क्षेत्र तक के हिसाब से मुद्दे विकेंद्रित हो गए हैं। 2014 और 2019 के चुनाव हमने राष्ट्रीय मुद्दे पर देखे। इस बार का चुनाव स्थानीय
मुद्दे पर हो रहा है। विपक्ष अगर कमियां गिनाएगा तो वह किसे इसके लिए जिम्मेदार बताएगा। राजनीतिक दलों को देश के सामने आने
वाले समय का रोडमैप रखना चाहिए, और व्यक्तिगत हमलों और देश को बांटने वाले मुद्दों से परहेज करना चाहिए।

– राजेश माहेश्वरी 

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