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चुनावी मुकाबला शुरू

लोकसभा चुनाव की चौसर अब बिछ गई लगती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इन चुनाव में असली मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी गठबंधन इंडिया के बीच ही होगा। भाजपा ने जहां प्रत्याशी घोषित करने में बढ़त ले ली है वहीं इंडिया गठबंधन अभी बहुत पीछे लगता है परंतु लोकतंत्र में चुनाव अंत में जनता ही लड़ती है और जनता ही यह तय करती है कि वह किसके हक में खड़ी हुई है। पिछले दो लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में हमने देखा की आम मतदाताओं ने भारतीय जनता पार्टी को खुले दिल से समर्थन किया और लगभग डेढ़ दशक बाद एक पार्टी की मजबूत सरकार बनाई परंतु लोकतंत्र में मजबूत सरकार का मतलब किसी एक दल या पार्टी की सरकार से नहीं होता बल्कि नीति और नियत के मोर्चे पर मजबूती के साथ लोक कल्याण में जुटी सरकार के लिए होता है। कहने को कहा जा सकता है कि भारत में 1996 से लेकर 2014 तक केंद्र में साझा सरकारों का दौर चला। इनमें से कुछ सरकारें अपना कार्यकाल पूरा कर सकीं और केवल 1996 से 98 तक की सरकार अपना कार्यकाल केवल 2 साल ही चल सकी। अतः भारत के लोगों ने गठबंधन सरकारों का दौर भी देखा है और एक दल की लंबी सरकारों का भी दौर देखा है। 60 वर्ष तक कांग्रेस ही शासन करती रही वह भी एक दल की सरकार थी, आजकल बीजेपी की भी एक दल की ही सरकार है। सवाल यह है की चुनाव में किस पार्टी या पक्ष का विमर्श लोगों को आकर्षित करता है जो विमर्श लोगों के मन को भा जाता है उस विमर्श को देने वाले गठबंधन या पार्टी की सरकार हुकूमत में आ जाती है।
भाजपा जो विमर्श दे रही है वह राष्ट्रवाद और बाजार मूलक अर्थव्यवस्था के बीच विकास का है। इस विकास को विपक्षी गठबंधन इंडिया एक पक्षीय बता रहा है और कह रहा है कि पिछले 10 वर्षों में अमीर आदमी और अमीर हुआ है और गरीब और गरीब हुआ है। आधारभूत ढांचे के क्षेत्र में देखें तो भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है। पूरे देश में सड़कों का जाल बिछा है नई ट्रेनों की संख्या बढ़ी है तथा उद्योग-धंधे भी पनप रहे हैं परंतु विपक्ष का कहना है कि यह विकास अधूरा विकास है क्योंकि महंगाई बढ़ी है और बेरोजगारी पिछले कई दशकों में सबसे ज्यादा है। जहां तक अर्थव्यवस्था का प्रश्न है तो यह कोरोना काल के बाद मजबूत होती हुई दिखाई दे रही है परंतु जमीन पर इसका असर हमें आम लोगों की हालत देखने से ही लगेगा। देश में इस समय भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार की बागडोर थामी हुई है। उन्हीं के नेतृत्व में भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने जा रही है। इसके जवाब में इंडिया गठबंधन के पास कोई एक ऐसा नेता नहीं है जिसके नेतृत्व में वह भाजपा को आमने-सामने ले सकें। भाजपा इस समय देश की सबसे बड़ी पार्टी कहलाई जाती है। इसे कुछ राजनीतिक विश्लेषक चुनाव मशीन भी बताते हैं इसके पास कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है, इसका पूरा नेटवर्क देश में फैला हुआ है और इसे देखते हुए ही भाजपा ने अपना लक्ष्य 370 सीटें जीतने का रखा है। यह लक्ष्य कितना यथार्थवादी है यह तो समय ही बतायेगा परंतु इतना निश्चित है कि विपक्षी इंडिया गठबंधन फिलहाल ऐसी स्थिति में नहीं है कि वह दावा कर सके कि वह अपने विभिन्न 27 सहयोगी दलों के साथ पूर्ण बहुमत में आने की तैयारी कर रहा है। इस गठबंधन की तैयारी टुकड़ों में लगती है। कल जिस प्रकार से पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में बिहार के प्रमुख विरोधी दल राष्ट्रीय जनता दल की जन विश्वास रैली हुई वह भाजपा की नींद उड़ाने के लिए काफी है।
एक अनुमान के अनुसार इस रैली में कम से कम 7 लाख लोग एकत्रित हुए थे। इस पार्टी के नेता श्री लालू यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव फिलहाल बिहार के हीरो कहे जा सकते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पलटी मारने से पहले वह उप मुख्यमंत्री थे और अपने नेतृत्व में उन्होंने जिस प्रकार बेरोजगारों को 5 लाख सरकारी नौकरियां दी वह स्वयं में बिहार में एक रिकॉर्ड माना जा रहा है। उनकी यह उपलब्धि कोई छोटी उपलब्धि नहीं कहीं जा सकती क्योंकि बिहार में बेरोजगारी की दर राष्ट्रीय औसत दर से बहुत ज्यादा है। इस रैली में कांग्रेस अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस नेता राहुल गांधी व स्वयं लालू यादव समेत वामपंथी पार्टियों के सीताराम येचूरी व डी राजा भी उपस्थित रहे। इन सभी नेताओं का यह आह्वान रहा कि लोग बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी व समाज में फैले नफरत के वातावरण को मिटाने के लिए इंडिया गठबंधन के घटक दलों के प्रत्याशियों को वोट दें।
यह विमर्श कितना कारगर होगा यह हमें चुनाव में पता चलेगा मगर इस रैली में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव ने यह आह्वान किया कि यदि उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों और बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर ही भाजपा को हरा दिया जाए तो केंद्र में उनकी सरकार पुनः नहीं आ सकती है। यह आकलन राजनीतिक अतिश्योक्ति हो सकती है परंतु इसमें केवल तथ्य यह है कि बिहार में हाल में जो राजनीतिक खेल हुआ है उसके खिलाफ लोगों में गुस्सा दिखाई पड़ता है जिसका फायदा इंडिया गठबंधन को हो सकता है लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसे हालात हैं यह नहीं कहा जा सकता। चुनाव की घोषणा होने से पहले ही जो तस्वीर उभर रही है वह यह है कि भाजपा बड़े सुगठित तरीके से चुनाव लड़ने की तैयारी में है जबकि इंडिया गठबंधन टुकड़ों में बंट कर यह चुनाव लड़कर जीतना चाहता है। फिर भी भारत में ऐसे उदाहरण मौजूद हैं कि देश की जनता चुनाव में आमने-सामने का बराबर का मुकाबला ना होने के बावजूद अपना वजन हल्के समझे जाने वाले पक्ष के खेमे को भी देती रही है इसलिए भाजपा को भी बहुत संभल कर चुनावी मैदान में उतरना पड़ेगा। जहां तक इंडिया गठबंधन का सवाल है तो यह फिलहाल कमजोर दिख रहा है। भाजपा के पक्ष में मजबूत नेतृत्व इसकी एक बहुत बड़ी संपत्ति मानी जा रही है जबकि विपक्ष की कमजोरी इसका बिखरा हुआ नेतृत्व माना जा रहा है। देखना यह होगा कि जनता इस स्थिति को किस नजरिए से लेती है।

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