किसान आन्दोलन की समाप्ति - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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किसान आन्दोलन की समाप्ति

एक वर्ष से अधिक तक चले किसान आदोलन को आज इसके नेताओं ने वापस लेने का ऐलान कर दिया।

एक वर्ष से अधिक तक चले किसान आदोलन को आज इसके नेताओं ने वापस लेने का ऐलान  कर दिया। किसानों का आन्दोलन तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के मुद्दे पर शुरू हुआ था जिन्हें स्वयं प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने विगत 19 नवम्बर को राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए रद्द करने की घोषणा कर दी थी परन्तु किसानों ने आन्दोलन वापसी की शर्त यह रख दी थी कि तीनों कानून जब तक संसद द्वारा रद्द नहीं किये जाते तब तक वे धरने पर बैठे रहेंगे। संसद के चालू सत्र में इन तीनों कानूनों के रद्द हो जाने के बाद किसानों ने यह मांग रख दी कि आन्दोलन के दौरान किसानों के विरुद्ध दायर हुए सभी मुकदमे वापस लिये जाने चाहिए और इस दौरान आन्दोलनरत मृत हुए सभी किसानों के परिवारों को मुआवजा दिया जाना चाहिए। इस बाबत किसान संगठनों ने प्रधानमन्त्री के नाम खुला पत्र लिख कर अपनी नई छह मांगें भी रख दीं जिनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नया कानून बनाने की मांग भी थी। सरकार ने इस बारे में पहले ही घोषणा कर दी थी कि वह समर्थन मूल्य के बारे में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन करेगी जिसमें किसानों के प्रतिनिधि भी शामिल भी होंगे।  इस बाबत सरकार ने किसानों से उनके पांच प्रतिनिधियों के नाम भी मांगे।
 आन्दोलकारी किसानों ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया और पांच नाम देने पर रजामन्दी जाहिर कर दी। इसके साथ ही केन्द्र सरकार ने सभी राज्यों में आन्दोलनरत किसानों से मुकदमे वापस लेने की मांग भी मान ली और बाद में मृत किसानों के परिवारों को मुआवजा देने पर भी सहमति व्यक्त कर दी। इससे स्पष्ट है कि सरकार ने किसानों की लगभग सभी मांगें मान कर कृषि क्षेत्र में उत्पादन का माहौल बनाने की पहल की है। मगर सवाल यह है कि एक वर्ष से अधिक चले आन्दोलन के अंत में किसानों ने क्या हासिल किया। कृषि अर्थशास्त्रियों की मानें तो केन्द्र सरकार जो नये कृषि कानून लाई थी वे कृषि क्षेत्र को सीधे बाजार मूलक अर्थव्यवस्था से जोड़ने में इस प्रकार सहायक होते कि किसान अपनी उपज के मूल्य आंकलन बाजार की परिस्थितियों के अनुरूप कर पाते मगर इनका विरोध जिस व्यापक स्तर पर हुआ उसे देखते हुए सरकार को ये कानून वापस लेने पड़े। इससे यह तो सिद्ध होता है कि नये कानून बनाने से पहले कृषि क्षेत्र की राय नहीं ली गई और न ही उन्हें यह समझाया जा सका कि आने वाले समय में कृषि क्षेत्र को ऐसे  उपाय करके ही किसानों की आमदनी बढ़ाने का जरिया खोजा जा सकता है क्योंकि देश के विभिन्न राज्यों में ठके पर खेती कराने की प्रथा आज भी जारी है और किसान अपनी उपज को मनचाही मंडियों में बेचने के लिए भी स्वतन्त्र हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप जिस तरह बदल रहा है और यह वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनती जा रही है उसे देखते हुए कृषि क्षेत्र का आधुनिकीकरण भी जरूरी है मगर इसमें हमें यह ध्यान रखना होगा कि भारत के किसानों को भी विकसित देशों के किसानों की भांति वे सभी सुविधाएं प्राप्त हों जिससे एक तरफ उनका उत्पादन बढ़ता जाये और दूसरी तरफ इस क्षेत्र में कम से कम लोग लगें। कोई भी देश तभी विकसित बनता है जब उसमें खेती पर आश्रित लोगों की संख्या कम होती है। यही वजह थी कि जब मनमोहन सिंह की पहली सरकार के दौरान विश्व व्यापार संगठन की बैठक में भारत व इस जैसे अन्य कृषि प्रधान देशों पर यह दबाव बनाने की कोशिश की गई थी कि भारत को अपने किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी में भारी कटौती करनी चाहिए तो बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले तत्कालीन वाणिज्यमन्त्री श्री कमलनाथ ने भारत के नेतृत्व में अपने जैसे अन्य देशों को एक मंच पर लाकर इस मांग को यह कह कर ठुकरा दिया था कि जब तक भारत के किसानों की माली हालत यूरोप के किसानों जैसी नहीं हो जाती तब तक व्यापार संगठन की इस शर्त को नहीं माना जा सकता। मगर हमें सोचना होगा कि कृषि जन्य उत्पादों के आयात-निर्यात से पारिमाणिक या मिकदार मूलक प्रतिबन्ध समाप्त हो चुके हैं। यह कार्य लगभग 20 साल पहले ही हो चुका है अतः भारत को कृषि क्षेत्र में वैश्विक बाजार मूल्यों की प्रतियोगिता में एक न एक दिन आना ही पड़ेगा जिसे देखते हुए हमें इसके तार बाजार मूलक अर्थव्यवस्था से उसी प्रकार जोड़ने होंगे जिस प्रकार हमने पेट्रोल व डीजल के भाव अन्तर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के भावों से जोड़े हैं। मगर यह कार्य तभी हो सकता है जब खेती का बाजार मांग को देखते हुए यथानुरूप विविधीकरण किया जाये जिससे किसान स्वयं ही अपनी उपज का मूल्य निर्धारित करने के लायक बन सके। क्योंकि भारत अब अन्न उत्पादन की कमी वाला देश नहीं बल्कि बहुतायत वाला देश बन चुका है। मगर आज का दिन किसानों और सरकार दोनों का स्वागत करने का है क्योंकि देश की आजादी के बाद सबसे लम्बा चला कोई आन्दोलन समाप्त हुआ है। लोकतन्त्र में अन्तिम इच्छा जनता की ही होती है जिसे देखते हुए सरकार ने तीनों कानूनों को रद्द किया। 
 आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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