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ऊर्जा संकट और कोयला

पिछले दो वर्षों में कोरोना महामारी के चलते कोई दिन ऐसा नहीं गुजरा जब कोई नया घाव न लगा हो। एक भरा नहीं कि दूसरा पहले से भी गहरा। दूसरा संभला नहीं की तीसरा।

पिछले दो वर्षों में कोरोना महामारी के चलते कोई दिन ऐसा नहीं गुजरा जब कोई नया घाव न लगा हो। एक भरा नहीं कि दूसरा पहले से भी गहरा। दूसरा संभला नहीं की तीसरा। अर्थव्यवस्था का भी यही हाल रहा, एक के बाद एक झटके। कहीं रोजगार का संकट तो कहीं भविष्य में संभलने की चिंता। आर्थिक गतिविधियां धीरे-धीरे शुरू हुई तो सामने आ खड़ी हुई महंगाई। अब जो रोशनी राहत दे रही थी, वह अब डराने लगी है। अब सामने है ऊर्जा संकट। वैसे तो दुनियाभर में ऊर्जा संकट आ खड़ा हुआ है। देश में कोयले के संकट पर बवाल मचा हुआ है। हालांकि ऊर्जा मंत्रालय ने भरोसा दिलाया है कि देश में कोयले की कोई कमी नहीं, इसे शीघ्र दूर कर लिया जाएगा। अब सवाल यह है की ये संकट उत्पन्न क्यों हुआ। इसके पीछे कई कारण हैं। पहला तो यह कि कोरोना की दूसरी लहर के शांत होने पर आर्थिक गतिविधियां शुरू हुई तो बिजली की मांग बढ़ गई। दूसरा सितम्बर में कोयला खदानों के आसपास ज्यादा बारिश होने से कोयले का उत्पादन और सप्लाई प्रभावित हुई। कोरोना काल में मानसून की शुरूआत से पहले कोयले का स्टाक रखा ही नहीं गया। चौ​था बड़ा कारण यह रहा कि विदेशों से आयात किया जाने वाला कोयला महंगा हो गया। इससे घरेलू कोयले पर निर्भरता बढ़ गई। 
आंकड़ों के अनुसार बिजली की खपत शनिवार को लगभग दो प्रतिशत घटकर 7.2 करोड़ यूनिट से घटकर 382.8 करोड़ यूनिट हो गई। जो एक दिन पहले 390 करोड़ यूनिट थी। जैसे-जैसे कोयले की सप्लाई बढ़ती जाएगी त्यों-त्यों स्तिथि में सुधार होता जाएगा। उत्तर प्रदेश, पंजाब, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान समेत कई राज्यों के बिजली उत्पादन संयंत्रों में कोयले का स्टॉक काफी कम रह गया था। उत्तर प्रदेश में तो ​बिजली की मांग और सप्लाई का अंतर रविवार को बढ़ गया था। 18 हजार मेगावाट मांग के मुकाबले 14 हजार मेगावाट की सप्लाई की गई। बिजली कटौती का केंद्र ग्रामीण और कस्बाई शहर बने हुए हैं। शेड्यूूल से चार से 9 घंटे तक कम बिजली दी गई। बिजली की कमी को पूरा करने के लिए हर रात में पावर कार्पोरेशन आपात ​स्थिति में अतिरिक्त बिजली खरीद रहा है। एक ही रात में दो करोड़ की बिजली खरीद की गई। पंजाब में भी बिजली कटौती की जा रही है। भारत यूं तो दुनिया में कोयले का चौ​था सबसे बड़ा भंडार है लेकिन खपत की वजह से भारत कोयला आयात करने में दुनिया में दूसरे नम्बर पर है। बिजली संयंत्र जो आमतौर पर आयात किये गए कोयले से चलते थे अब वह देश में उत्पादित हो रहे कोयले पर निर्भर हो चुके हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अधिक कोयला आयात करके जरूरतों को पूरा करना इस समय भारत के लिए आधा विकल्प नहीं है। यह संकट कई महीनों से पैदा हो है रहा है क्योंकि दुनिया भर में कोयले के दाम 40 फीसदी तक बढ़े हैं, जबकि भारत का कोयला आयात दो साल में सबसे निचले स्तर पर है। अगर महंगा कोयला आयात किया गया तो लोगों पर बिजली की दरों के बढ़ने की मार पड़ेगी। इस समय भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों ने पहले ही लोगों को परेशान कर रखा है जिससे लगभग हर चीज महंगी हो गई है। यदि स्थिति ऐसी ही बनी रही तो एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। ऐसे में पूरा उत्पादन सैक्टर सीमेंट, निर्माण सब कोयले की कमी से प्रभावित होते हैं। ऊर्जा संकट की समस्या काफी बड़ी है और दूसरा कोई अल्पकालिक हल नहीं निकाला जा सकता है। यद्यपि कोयला मंत्री का कहना है कि घबराने की जरूरत नहीं है। हमारे पास 24 दिन का स्टॉक है। कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी का भी कहना है कि तीन-चार दिन में स्तिथि सामान्य हो जाएगी लेकिन मौजूदा हालात भारत के लिए एक चेतावनी की तरह हैं। यह चेतावनी कहती है कि भारत कोयले पर अपनी निर्भरता कम करे और अक्षय ऊर्जा की रणनीति पर आगे बढ़े। 135 करोड़ की आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कोयले की व्यवस्था करनी पड़ती है। जबर्दस्त पोल्यूशन फैलाने वाले कोयले की निर्भरता कैसे कम की जाए यह सवाल भारत की सरकार के लिए एक चुनौती बना रहा है। ऊर्जा विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को कोयले और स्वच्छ ऊर्जा की मिलीजुली नीति पर काम करना होगा। एक झटके में अक्षय ऊर्जा पर शिफ्ट हो जाना संभव ही नहीं है। बिना किसी ठोस बैकअप के हम पूरी तरह अक्षय ऊर्जा पर निर्भर नहीं हो सकते। दुनिया भले ही यह कहे कि कोयले का खनन कम किया जाए परंतु भारत जैसे विकासशील ​देश में महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारत के कोयला उद्योग से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 40 लाख लोग जुड़े हुए हैं जिन्हें इससे रोजगार मिलता है। भारत का अधिकतर कोयला भंडार झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा राज्यों में है। इन राज्यों में कोयला ही अर्थव्यवस्था का आधार है और स्थानीय समुदायों की लाइफ लाइन भी है। जो भारत के सबसे गरीब लोगों में से एक है। ऊर्जा संकट से निजात पाने के लिए सरकार को दीर्घकालीन नीतियां अपनानी होंगी और लोगों को भी चाहिए कि बिजली का इस्तेमाल सोच-समझकर करें। वैसे सर्दियो के मौसम में ऊर्जा की खपत कम हो जाने से राहत के आसार तो हैं ही। 

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