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गांधी की विरासत और हम

आज 2 अक्टूबर है महात्मा गांधी का जन्म दिन। आजाद भारत में जब हम बापू का जन्म दिन मनाते हैं तो यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि राष्ट्रपिता जिन सिद्धान्तों को राजनीति में स्थापित करना चाहते थे उनकी स्थिति आज क्या है

आज 2 अक्टूबर है महात्मा गांधी का जन्म दिन। आजाद भारत में जब हम बापू का जन्म दिन मनाते हैं तो यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि राष्ट्रपिता जिन सिद्धान्तों को राजनीति में स्थापित करना चाहते थे उनकी स्थिति आज क्या है ? बापू ने स्वतन्त्रता  आंदोलन की लड़ाई लड़ते हुए ही कई बार अपने अखबार ‘हरिजन’ में लेख लिख कर स्पष्ट किया था कि राजनीति में आने वाले व्यक्ति का सार्वजनिक जीवन 24 घंटे जनता की जांच में रहना चाहिए वस्तुतः उन्हीं लोगों को राजनीति में आना चाहिए जिनका व्यक्तिगत जीवन भी सार्वजनिक हो। इसकी वजह साफ थी कि बापू राजनीति को कोई व्यवसाय या पेशा नहीं मानते थे बल्कि इसे जनसेवा या मिशन मानते थे। लोकतन्त्र में वह सत्ता पर बैठे लोगों को जनसेवक या सेवादार के रूप में प्रतिष्ठापित होते देखना चाहते थे। सदियों तक राजशाही में रहे भारत पर दो सौ वर्षों तक अंग्रेजों की सत्ता के दौरान आम भारतीयों में जो दास भाव (गुलाम प्रवृत्ति) जागृत हो गई थी उसे मिटाने के लिए बापू ने आजाद भारत में संसदीय लोकतन्त्र प्रणाली को इस वजह से प्रश्रय दिया जिससे आम नागरिक में खुद ही अपनी सरकार का मालिक बनने का भाव जगे और उसमें भारतीय होने का स्वाभिमान पैदा हो।
 लोकतान्त्रिक प्रणाली में सामान्य नागरिक के सम्मान को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के सिद्धान्त के साथ सत्ता में आये लोगों में नागरिकों की सेवा करने का भाव संवैधानिक जिम्मेदारी के रूप में निहित हो। भारत के संविधान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें व्यक्तिगत सम्मान व निजी प्रतिष्ठा की कीमत पर कोई भी अधिकार किसी भी सरकार को नहीं दिया गया है। यह गांधीवाद की समूची मानवता को इतनी बड़ी सौगात है जिसका लोहा पूरी दुनिया मानती है और जिसके आधार पर पूरी दुनिया में नागरिक स्वतन्त्रता की मुहीम समय-समय पर तेज होती रही है। साम्राज्यवाद या उपनिवेशवाद के खात्मे में गांधी के इस सिद्धान्त ने जो भूमिका निभाई उसका प्रमाण आज अफ्रीका समेत अन्य महाद्वीपों के वे देश हैं जिन्हें भारत की आजादी के बाद स्वतन्त्रता मिली। गांधी केवल भारत में ही नहीं बल्कि समूचे विश्व में सामाजिक न्याय के सबसे बड़े पैरोकार थे। दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए उन्होंने रंग भेद के खिलाफ जो लड़ाई लड़ी थी उसका असर यह हुआ कि भारत में कांग्रेस के झंडे के नीचे स्वतन्त्रता आंदोलन शुरू करते हुए उनकी नजर सबसे पहले यहां के दलितों पर पड़ी जिन्हें उन्होंने हरिजन का नाम देकर समाज में उनकी हैसियत को बराबरी पर लाने का पहला कदम उठाया और साथ ही यह भी घोषणा की कि छुआछूत को मिटाना भारत की आजादी के आंदोलन से किसी भी प्रकार कम नहीं है। यही वजह थी कि महात्मा गांधी ने स्वतन्त्र भारत का संविधान लिखने की जिम्मेदारी बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर को दी और इस हकीकत के बावजूद दी कि स्वयं ब्रिटिश सरकार ने तब बहुत बड़े-बड़े अंग्रेज विद्वानों के नाम इस भूमिका के लिए सुझाये थे। गांधी को राष्ट्रपिता कहने पर एक बार खासा विवाद भी खड़ा करने की कोशिश की गई थी मगर जिन लोगों ने विवाद खड़ा किया था वे भारत के इतिहास से अनभिज्ञ थे और यह नहीं जानते थे कि बापू को यह उपाधि सबसे पहले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी आजाद हिन्द सरकार के उस रेडियो भाषण में दी थी जिसे उन्होंने भारतीयों के नाम प्रसारित किया था। महात्मा गांधी ने जीवन के हर पहलू में साधन और साध्य की शुचिता पर विशेष जोर दिया और कहा कि साध्य तब तक पवित्रता नहीं पा सकता जब तक कि उसे पाने का साधन पूरी तरह साफ-सुथरा न हो। इस सिद्धान्त को उन्होंने राजनीति में जिस प्रकार उतारने की ताकीद की उससे लोकतंत्र में सत्ता पर कभी भी अयोग्य व्यक्तियों का अधिपत्य हो ही नहीं सकता।
 भारतीय संविधान में चुनाव आयोग को स्वतन्त्र व संवैधानिक संस्था बनाये जाने के पीछे यही सिद्धान्त था। चुनाव आयोग को सीधे संविधान से ताकत लेकर काम करने का अधिकार इसीलिए दिया गया जिससे वह कभी भी किसी भी राजनीतिक दल की सरकार के प्रभाव में न आ सके। चुनाव आयोग को लोकतन्त्र की आधारभूमि इस प्रकार बनाया गया कि इस पर कार्यपालिका, न्यायपालिका व विधायिका की मजबूत इमारतें खड़ी हो सकें। हम गांधी को आज उनकी जन्म जयन्ती पर याद करेंगे और औपचारिकता पूरी कर देंगे मगर भूल जायेंगे कि जिन सिद्धान्तों के लिए गांधी ने अपना बलिदान दिया उनकी आज किस सीमा तक दुर्गति हो रही है। कुछ नादान लोग गांधी को पाकिस्तान के हक में खड़ा हुआ दिखाने की नाकाम कोशिश भी करते हैं मगर भूल जाते हैं कि बापू ने पाकिस्तान के अस्तित्व को यह कह कर नकार दिया था कि ‘मेरी इच्छा है कि मेरी  मृत्यु पाकिस्तान में हो’  गांधी का यह कथन बताता है कि वह पाकिस्तान के भारतीयता का ही अंश समझते थे। इस 21वीं सदी के दौर में हम एक बार जरूर सोचें कि जिस रास्ते पर आज की राजनीति की भागमभाग हो रही है उसमें गांधी के विचारों का महत्व उस आम आदमी के सन्दर्भ में कितना है जिसके एक वोट से सरकारें बनती बिगड़ती हैं। लोकतन्त्र में उसके मालिकाना हकों को हमने कितना असरदार बनाया है ?

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