हाशिमपुरा नरसंहार : जिन्दा है इन्साफ - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

हाशिमपुरा नरसंहार : जिन्दा है इन्साफ

NULL

22 मई, 1987 की रात को जो भी हुआ वह इतना खौफनाक था कि उसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। हाशिमपुरा नरसंहार पर गाजियाबाद के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विभूति नारायण राय की किताब “Hashimpura 22 May: The Forgotten Story of India’s Biggest Custodial Killings” को पढ़ने से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। फरवरी 1986 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने अयोध्या में विवादित ढांचे के द्वार खोलने का फैसला किया। इसके बाद तो साम्प्रदायिकता की आग को मानो पैट्रोल मिल गया। उत्तर प्रदेश के कई शहरों में दंगे भड़क उठे थे। मेरठ साम्प्रदायिक मामले में शुरू से ही संवेदनशील रहा है। मेरठ में दंगों का ​इतिहास रहा है। अप्रैल 1987 में दंगों की आग मेरठ तक पहुंच गई।

21 मई, 1987 को एक युवक की हत्या कर दी गई जिसके बाद तनाव फैल गया और हाशिमपुरा इलाका दंगों की चपेट में आ गया। दुकानें जलाई जाने लगीं। तब पुलिस, पीएसी और सेना ने सर्च अभियान चलाया था। यहां रहने वाले किशोर, युवाओं और बुजुर्गों समेत सैकड़ों लोगों काे ट्रकों में भरकर पुलिस लाइन ले जाया गया था। एक ट्रक को दिन छिपते ही पीएसी जवान दिल्ली रोड पर गंगनहर पर ले गए थे। रात के समय इनकी गोली मारकर हत्या कर दी और शव हिंडन नदी में फैंक दिए। इनमें से कुछ लोग गोली लगने के बाद बच गए और उन्होंने गाजियाबाद लिंक रोड थाने पहुंचकर रिपोर्ट दर्ज कराई जिसके बाद हाशिमपुरा कांड पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया। मारे गए लोग कोई आतंकवादी नहीं थे, वे आम नागरिक थे। इस नरसंहार से न तो इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण स्थापित हुआ जिस पर राष्ट्र गर्व कर सके। अगर कुछ हासिल हुआ तो वह थी वीभत्सता और हताशा। इस भयंकर कांड के बाद राजीव गांधी हाशिमपुरा के दौरे पर पहुंचे और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह से जवाब तलबी की।

जस्टिस राजिंदर सच्चर, आई.के. गुजराल की सदस्यता वाली जांच समिति बनी। 1994 में समिति ने अपनी फाइनल रिपोर्ट दी। एक जून, 1995 को 19 जवानों को दोषी मानकर मुकद्दमा चलाया गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केस गाजियाबाद से तीस हजारी कोर्ट दिल्ली ट्रांसफर किया गया। हैरानी की बात तो यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 2006 तक इस केस की पैरवी के लिए वकील ही नियुक्त नहीं किया गया। 2015 तक आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। कोर्ट के फैसले पर हर कोई हैरान था कि आखिर 42 लोगों का हत्यारा कौन है? देश में हुए दंगों में आमतौर पर न्याय नहीं मिल पाया। लम्बी कानूनी प्रक्रिया, सरकारों की संवेदनहीनता, राजनीति से न्याय की प्रक्रिया को बाधित किए जाने से लोगों को पूरा न्याय मिला ही नहीं। हाशिमपुरा नरसंहार भी उन्हीं केसों की लम्बी सूची में एक और कड़ी बन गया था लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने तीस हजारी कोर्ट का फैसला पलटते हुए हाशिमपुरा कांड के आरोपी 16 पीएसी जवानों को उम्रकैद की सजा सुनाई। इनमें से कुछ तो रिटायर हो चुके हैं।

फैसला सुनाने वाली पीठ ने इस मामले को हिरासत में हत्या का मामला बताया जहां मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वालों के प्रभावी अभियोजन में कानूनी तंत्र नाकाम रहा। अदालत ने कहा कि वह यह समझती है कि इस नरसंहार में मारे गए लोगों के परिवार के लिए यह बहुत देर बाद बहुत थोड़ी राहत है। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से यह तो प्रमा​िणत हो गया कि 31 वर्ष बाद ही सही, कहीं न कहीं इन्साफ जिन्दा है लेकिन यह फैसला पीड़ितों के साथ अन्याय जैसा ही है। जरा सोचिये, न्याय की इंतजार और उम्मीद की सीमा क्या हो सकती है? तीन दशक तक न्याय का अस्तित्व ही नहीं था।

मृतकों के परिजन इन्साफ के लिए लड़ते रहे और अन्ततः जीत गए। पीड़ितों के परिजनों को अब तक पर्याप्त मुआवजा भी नहीं मिला। पीएसी का साम्प्रदायिक चेहरा बार-बार सामने आया। सजा पाने वाले सुप्रीम कोर्ट में भी जाएंगे वहां भी पीड़ितों के परिजनों को लड़ाई लड़नी पड़ेगी। उनकी आंखों में आज भी आंसू हैं, दिल में दर्द है। वृद्ध महिलाएं आज भी अपने बच्चों के चित्र लेकर खड़ी हैं। सभी लोग व्यवस्थागत खामियों को लेकर बहुत सारे सवाल खड़े कर रहे हैं। आखिर पीएसी के जवान इतने निष्ठुर और क्रूर कैसे हो सकते हैं। आज भी पुलिस बलों को साम्प्रदायिक आधार पर बांटने की कोशिशें की जा रही हैं जो न्याय व्यवस्था के लिए घातक हो सकती है। किसी भी समाज का साम्प्रदायिक आधार पर विभाजन खतरनाक होता है। न्यायपालिका की गरिमा इसलिए बनी हुई है क्योंकि उसने इन्साफ को जीवित रखा हुआ है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

16 − four =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।