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दुनिया के सामने मानवीय संकट

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुए आज 20 दिन हो गए हैं।

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुए आज 20 दिन हो गए हैं। अब तक रूसी सैन्य टुकडि़यों ने नुक्सान झेलकर भी यूक्रेन के कई शहरों और  गांवों पर कब्जा कर लिया है। हालात बहुत भयानक हो चुके हैं। शहर खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं। युद्ध के बीच भारत ने एक बड़ा फैसला करते हुए यूक्रेन ​स्थित अपने दूतावास को पड़ोसी देश पोलैंड में शिफ्ट कर दिया है। यह निर्णय तब लिया गया जब यूक्रेन संकट को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उच्चस्तरीय बैठक की थी। प्रधानमंत्री मोदी ने युद्धरत राष्ट्रों के नेताओं व्लादिमीर पुतिन और  जेलेंसकी से बातचीत भी की है। भारत चाहता है कि रक्तपात और विनाश को समाप्त करने के लिए दोनों देश वार्ता और कूटनीति की ओर वापस लौट आएं। यद्यपि रूस और यूक्रेन में बातचीत हो भी रही है ताकि यूक्रेन का मनोबल टूट जाए और वह ​हथियार डाल दे। यूक्रेन की सेना पूरी ताकत से रूसी हमलों का जवाब भी दे रही है लेकिन रूसी मिसाइलों और बमों के सामने वह कितने दिन टिक पाएगी, यह बड़ा सवाल है।
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंसकी अमेरिका और पश्चिमी देशों की धोखाधड़ी का शिकार हो चुके हैं। अगर सब कुछ गवां के होश में आए तो क्या फायदा। जेलेंसकी भले अपने देश के नागरिकों के जज्बे और हौंसले को बुलंद बनाए हुए हैं लेकिन अब काफी देर हो चुकी है। यूक्रेन की राजधानी कीव, खारकीव और अन्य शहरों में ​विध्वंस की जो तस्वीरें सामने आ रही हैं उनसे पता चलता है कि यह देश बहुत बड़े मानवीय संकट से ​घिर चुका है। शहरों में फंसे लोग मदद की गुहार लगा रहे हैं, उनके पास खाने-पीने के लिए कुछ नहीं बचा। सर्द मौसम में खाद्य संकट और भी गहरा जाएगा। बिजली-पानी सप्लाई अवरुद्ध हो चुकी है,सड़कों पर शव पड़े हुए हैं। मारियूपोल समेत अनेक शहरों में सबसे विकट ​स्थित मानवीय संकट से जुड़ी है। लोग बेसमेंटों में रह रहे हैं और सूचनाओं का आदान-प्रदान करने का कोई रास्ता नहीं बचा है। यूक्रेन के लोग द्वितीय विश्वयुद्ध के इतिहास को याद कर रहे हैं जब लेनिनग्राद की घेराबंदी को याद करते हैं जब जर्मनी के सैनिकों ने 28 महीने तक शहर को घेर कर रखा था।
दुनिया के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा समेत कई देशों द्वारा रूस के खिलाफ लगाए गए आ​र्थिक  प्रतिबंध से युद्ध रुक जाएगा। रूस पहला ऐसा देश नहीं है जिस पर आ​र्थिक पाबंदियां लगाई गई हैं। इससे पहले क्यूबा, दक्षिण  अफ्रीका और उत्तर कोरिया पर भी इस तरह दबाव बनाया गया था। अब तक जिन देशों पर प्रतिबंध लगे उनमें कोई बदलाव नहीं दिखा। लोग सवाल उठा रहे हैं कि यूक्रेन-रूस संघर्ष में अमेरिका और  पश्चिमी देशों ने क्या आग में घी डालने का ही काम किया। अमेरिका ने ईरान को भी इराक बनाने की कोशिश  की लेकिन ईरान ने इराक के उत्तरी शहर इनबिल में अमेरिका वाणिज्य दूतावास पर 12 मिसाइलें दाग कर तबाही मचा दी। इसी हमले से मध्य पूर्व में भी युद्ध की चिंगारियां सुलगने लगी हैं। यह मिसाइल हमला सीरिया के दमिश्क के पास इस्राइली हमले के बाद हुआ। इस हमले में ईरान के दिवोल्यूशनी गार्ड के दो सदस्य मारे गए थे। अमेरिका के पास ईरान पर और  प्रतिबंध लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं।
आज के दौर में युद्ध उन्माद पर युद्ध का पागलपन जायज नहीं ठहराया जा सकता। अब तक 18 लाख से ज्यादा लोग यूक्रेन से पलायन कर पड़ोसी देशों में शरण लिए हुए हैं। बच्चों के लिए भविष्य भी दुनिया में अंधकारमय हो चुका है। यह पहला ऐसा युद्ध है जो मिसाइलों और बम हमलों के धमाकों  और लगातार गूंजते सायरन के बीच सोशल मीडिया पर भी लड़ा जा रहा है। 
जो कुछ सामने आ रहा वह अर्धसत्य ही है। बेगुनाह नागरिकों  की सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए। हमलों में बेगुनाह लोग मारे जा रहे हैं। बच्चों और महिलाओं का क्रन्दन कलेजा फाड़ रहा है। आर्थिक प्रति​बंधों के खेल में लोग ही पिस जाते हैं। युद्ध 21वीं सदी की दुनिया पर सबसे बड़ा कलंक है। यूक्रेन अब गंभीर मानवीय संकट की ओर बढ़ चला है। यह संकट केवल यूक्रेन का नहीं बल्कि  पूरी दुनिया का है। क्या अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस संकट का सामना करने को तैयार है? इतनी बड़ी आजादी का पुनर्स्थापन आसान नहीं होता। इनकी जिम्मेदारी कौन लेगा। युद्ध छेड़ना बहुत आसान होता लेकिन परिणामों को झेलना काफी मुश्किल होता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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