भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला

‘ये राह जिस पर चल कर तू अपराजेय बना है, उन पर अब भी मेरे पैरों के निशां हैं
वह सीढ़ियां मैंने ही लगाई थी, जिस पर चढ़ कर आज तू इस आसमां का गुमां है’
राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम का निमंत्रण भाजपा के वरिष्ठ व वयोवृद्ध नेता 96 वर्षीय लाल कृष्ण अडवानी को भी दिया गया था, पर चंपत राय ने अडवानी की उम्र व उनके स्वास्थ्य को देखते हुए उनके परिवार को सलाह दी थी कि ‘22 जनवरी को अडवानी को अयोध्या आने की कोई खास जरूरत नहीं।’ पर अडवानी की पुत्री प्रतिभा और निजी सचिव दीपक चोपड़ा की अपनी राय थी कि ‘दादा यानी अडवानी को प्राण प्रतिष्ठा के इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में अवश्य ही सम्मिलित होना चाहिए।’
इसके बाद ही प्रतिभा व दीपक चोपड़ा ने उत्तर प्रदेश प्रशासन से संपर्क साधा और उससे जानना चाहा कि ‘अगर 22 जनवरी के कार्यक्रम में अडवानी अयोध्या पधारते हैं तो प्रोटोकॉल में उन्हें पीएम से कितनी दूरी पर बिठाया जाएगा?’ अडवानी परिवार की ओर से प्रशासन को यह जानकारी भी दी गई है कि उक्त कार्यक्रम में अडवानी के साथ उनके पुत्र जयंत, पुत्री प्रतिभा और उनके निजी सचिव दीपक चोपड़ा भी अयोध्या आएंगे। अडवानी को अभी चलने-फिरने में कुछ दिक्कत आ रही है, इसके मद्देनज़र भी उनके सीटिंग अरेंजमेंट को जांचा परखा जा रहा है।
सनद रहे कि अडवानी ही राम मंदिर आंदोलन के मुख्य सूत्रधार में शुुमार होते हैं, अभी हालिया दिनों में उन्होंने संघ की पत्रिका ‘राष्ट्र धर्म’ में एक लेख के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए लिखा है-‘राम मंदिर निर्माण एक दिव्य स्वप्न की पूर्ति है।’ अडवानी ने ही 1990 में विहिप द्वारा शुरू किए गए राम मंदिर आंदोलन को एक राजनीतिक आंदोलन बना दिया था। गुजरात के सोमनाथ मंदिर से शुरू हुई रथयात्रा के रथी तब नरेंद्र मोदी ही थे, तब वे भगवा फलक पर किंचित एक अनजाने से चेहरे थे, पर अपने प्रबंधन कौशल से वे तब भाजपा के एक प्रमुख नेता के तौर पर उभर कर सामने आए। भले ही तीन गुंबदों वाला ढांचा इस आंदोलन के दौरान ध्वस्त हो गया था, पर बीच वाले ढांचे के अंदर ही 1949 में रामलला प्रकट बताए जाते हैं, अब उसी जगह से 150 मीटर की दूरी पर राम मंदिर निर्माण हो चुका है।
अयोध्या आने के लिए धमाचौकड़ी
इस 22 जनवरी को राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के लिए अयोध्या आने के लिए आम और खास लोगों में होड़ मची है। जहां खास लोगों को पहले से निमंत्रण मिल गया है, वहीं आम लोग इस कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए हजारों की संख्या में चंपत राय के पास अर्जियां लगा रहे हैं। चंपत राय ने अर्जी लगाने वालों से यह स्पष्ट करने को कहा है कि ‘उनका उक्त रोज अयोध्या आना क्यों जरूरी है इस पर प्रकाश डालें।’ एक से बढ़ कर एक चिट्ठी संदर्भों में डूबी उनके पास पहुंची है। एक व्यक्ति खुद को कारसेवक बताते हुए क्लेम करता है कि ‘वहां के विवादास्पद ढांचे को ढहाने के लिए कार सेवकों को हथौड़े उनके परिवार ने ही मुहैया कराए थे।’ कुछ ने अपनी अर्जियों में कहा है कि ‘कारसेवक उनके घर रुके थे और ठहरने से लेकर भोजन-पानी का प्रबंध उनके परिवार द्वारा ही किया गया था।’ अर्जियों की इस फेहरिस्त में 90 के दशक के कुछ स्थानीय पत्रकार भी शामिल हैं जिन्होंने अपने पत्र में कहा है कि ‘वे पुलिस की गोलियों की परवाह किए बगैर घटना स्थल पर डटे रहे और अपनी जान की बाजी लगा कर भी रिपोर्टिंग करते रहे, उनकी खबरें ही राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय जगत की सुर्खियां बनीं, क्योंकि उस वक्त सोशल मीडिया नहीं हुआ करता था। सो उनकी खबरों ने ही राम मंदिर के महत्व को सुर्खियां दी इस नाते उनका भी प्राण प्रतिष्ठा समारोह में निमंत्रण पाने का हक बनता है।’
कांग्रेस को मिला पैसा कहां गया?
राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ शुरू हो चुकी है, पर यह यात्रा अयोध्या में भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की वजह से यह सुर्खियां नहीं बटोर पा रही। वैसे भी इन दिनों देश की यह सबसे पुरानी पार्टी फंड की कमी से जूझ रही है, एक अनुमान के अनुसार राहुल की इस यात्रा के लिए ही ढाई सौ करोड़ रुपयों से ज्यादा की जरूरत है। कॉरपोरेट जगत कांग्रेस को लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिखा रहे, सो पार्टी रणनीतिकारों ने फंड जुटाने के लिए ‘क्राउड फंडिंग’ करने की जुगत भिड़ाई, इसके लिए बकायदा एक क्यूआर कोड भी जारी किया गया और क्यूआर वाले इस पम्फलेट को जनता के बीच बांटा भी गया, कांग्रेस परिवारों से भी दान देने की अपील हुई। यह पूरी मुहिम 28 दिसंबर से शुरू होकर 10 जनवरी तक चली। पर इस बात को लेकर खासा बवाल मचा हुआ है कि क्यूआर कोड को लेकर कुछ फर्जीवाड़ा हो गया है, बकायदा इस बात को लेकर तेलंगाना में मुकदमा भी दर्ज कराया गया है। सूत्र बताते हैं कि असल क्यूआर कोड ‘डोनेट आईएनसीडॉटइन’ था, पर ज्यादातर पैसा ‘डोनेटआईएनसीकोडॉटइन’ पर चला गया, यह रकम करोड़ों में बताई जाती है। कहा जाता है कि यह सारा पैसा दिल्ली में ही ट्रांसफर हुआ है, पर कहां? किसके पास? कौन हैं लाभार्थी? अभी इन बातों का कुछ पता नहीं चल पाया है या पार्टी की ही इस लाभार्थी को ढूंढने में कोई खास दिलचस्पी नहीं है।
ईरान से क्यों परेशां है हिन्दुस्तान
इसी 15 जनवरी को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर अपनी दो दिवसीय ईरान यात्रा पर तेहरान पहुंचे थे, जहां उनकी मुलाकात ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और वहां के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहयान से हुई। बातचीत का मसला चाबहार पोर्ट पर ही केंद्रित था जिसे भारत को नया रूप रंग देना था। ईरान के राष्ट्रपति इस प्रोजेक्ट में हो रही देरी से नाखुश बताए जाते हैं, उन्होंने दो टूक लहजे में जयशंकर से पूछा कि ‘आप इस प्रोजेक्ट की डेडलाइन बताइए?’
सनद रहे कि ईरान के तटीय शहर चाबहार के विकास के लिए भारत व ईरान के बीच आज से दो दशक पहले 2003 में सहमति बनी थी, 2016 में इस समझौते को मंजूरी मिली थी।
यह बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए इंटरनेशनल नार्थ-साउथ कोरिडोर के तौर पर काफी अहम है। पर इस बार भारत में आयोजित हुए जी-20 सम्मेलन में नए ट्रेड रूट बनाने पर सहमति बनी है जिससे भारत के लिए चाबहार आईएनएसटीसी और आईएमईसी में निवेश करना उतना आसान नहीं रह जाएगा। इससे पूर्व कुछ ऐसा ही श्रीलंका के हब्बन टोटा बंदरगाह को लेकर भी हुआ था, पहले भारत को ही इस पोर्ट को विकसित करना था, उस वक्त महिंद्रा राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति थे और उनके भाई वहां के विदेश मंत्री। तब ये दोनों भाई एक चीनी डेलीगेट्स के संपर्क में आए और चीन ने हब्बनटोटा में दिलचस्पी दिखाई और भारत के हाथ से यह प्रोजेक्ट चला गया था जो पोर्ट रणनैतिक रूप से हमारे देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण था, क्या अब चाबहार भी उसी रास्ते चल निकला है? क्या इस प्रोजेक्ट पर भी चीन की नज़र है?

– त्रिदीब रमन

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