जम्मू-कश्मीर की बढ़ी सीटें - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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जम्मू-कश्मीर की बढ़ी सीटें

जम्मू-कश्मीर चुनाव क्षेत्र परिसीमन आयोग के प्रस्तावित मसौदे पर इस राज्य की क्षेत्रीय पार्टियों ने गहरा एतराज जताया है। इन पार्टियों में नेशनल कान्फ्रेंस से लेकर पीडीपी व पीपुल्स कान्फ्रैंस व जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी तक शामिल हैं। आयोग ने अपनी बैठकों के बाद प्रस्ताव किया है

जम्मू-कश्मीर चुनाव क्षेत्र परिसीमन आयोग के प्रस्तावित मसौदे पर इस राज्य की क्षेत्रीय पार्टियों ने गहरा एतराज जताया है। इन पार्टियों में नेशनल कान्फ्रेंस से लेकर पीडीपी व पीपुल्स कान्फ्रैंस व जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी तक शामिल हैं। आयोग ने अपनी बैठकों के बाद प्रस्ताव किया है कि राज्य विधानसभा की सदस्य संख्या बढ़ा कर 90 कर दी जाये जिनमें नौ सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए व सात सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित की जायें। इसके साथ ही जम्मू क्षेत्र में छह सीटें बढ़ाई जायें व कश्मीर वादी में एक सीट बढ़ाई जायें। क्षेत्रीय दलों के नेताओं का कहना है कि राज्य में 2011 में हुई जनगणना के आधार पर सीटों का इस तरह बढ़ाया जाना उचित नहीं हैं खास कर इनका विरोध जम्मू क्षेत्र में बढ़ाई गई छह सीटों को लेकर है। इस मामले में यह ध्यान दिये जाने की जरूरत है कि विधानसभा या लोकसभा सीटों के परिसीमन का पैमाना केवल आबादी ही नहीं होती है बल्कि क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति भी होती है जिससे नागरिकों का प्रतिनिधित्व समुचित तरीके से चुने हुए सदन में हो सके। इसके बहुत से उदाहरण भारत में हैं जहां किसी चुनावी सीट का क्षेत्रफल बहुत बड़ा होता है मगर आबादी कम होती है। इसके विपरीत एेसे भी क्षेत्र हैं जहां क्षेत्रफल बहुत कम होता है मगर आबादी बहुत घनी होती है। इसका प्रमाण राजधानी दिल्ली ही है जहां से लोकसभा की सात सीटें हैं। जबकि पहाड़ी व दुर्गम क्षेत्रों में क्षेत्रफल बहुत बड़ा होता है मगर आबादी कम होती है।
जाहिर है कि चुनाव परिसीमन आयोग के पास न्यायिक अधिकार भी होते हैं और इसके फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में भी चुनौती नहीं दी जा सकती। फिर भी आयोग ने इसके राजनीतिक सदस्यों से प्रस्ताव पर अपनी राय आगामी 31 दिसम्बर तक देने के लिए कहा है जिससे वह निश्चित समयावधि में अपनी अन्तिम रिपोर्ट तैयार कर सके। जाहिर है कि आयोग राजनीतिक सदस्यों की राय आने के बाद अपनी अन्तिम रिपोर्ट या प्रस्ताव तय करेगा जिसके आधार पर बाद में राज्य विधानसभा के चुनाव होंगे। यह कोई छिपा हुआ रहस्य नहीं है कि फिलहाल केन्द्र प्रशासित अर्ध राज्य का दर्जा प्राप्त जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का स्तर तभी दिया जायेगा जब परिसीमन आयोग अपनी अन्तिम रिपोर्ट दे देगा। इस बारे में केन्द्र की मोदी सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि पूर्ण विधानसभा के रूप में चुनाव तभी होंगे जब परिसीमन का काम पूरा हो जायेगा। इस काम के लिए अवकाश प्राप्त न्यायाधीश श्रीमती रंजना प्रसाद देसाई के नेतृत्व में जो आयोग गठित किया गया था उसे एक वर्ष का समय दिया गया था मगर इसने अपना कार्यकाल एक और वर्ष के ​िलए बढ़ाने की अनुशंसा की थी।  अतः नेशनल कान्फ्रैंस से तीन और भाजपा से दो सांसद इसमें लिये गये थे। इनमें से भाजपा के दो सांसदों ने तो प्रस्ताव या प्रारम्भिक सिफारिश का समर्थन किया है परन्तु नेशनल कान्फ्रेंस के तीनों सदस्यों ने इसका विरोध किया है जिनमें स्वयं डा. फारूक अब्दुल्ला भी शामिल हैं। इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि पहले जम्मू-कश्मीर राज्य में केवल 12 जिले ही होते थे जिनकी संख्या बढ़ कर अब 20 हो चुकी है और तहसीलें मात्र 52 होती थीं जो अब बढ़ कर 207 हो चुकी हैं। 
सूबे में राज करने वाले राजनीतिक दलों की सरकारों ने ही जिलों और तहसीलों की यह संख्या बढ़ाई थी। अतः यह सवाल वाजिब तौर पर खड़ा हो सकता है कि इन जिलों व तहसीलों को बनाते समय जनसंख्या व अन्य नागरिक सुविधाओं के साथ इनकी भौगोलिक परिस्थितियों का भी ध्यान रखा गया होगा। इसके अलावा आयोग के सामने अनुसूचित जातियों व जनजातियों की जनसंक्या के अनुरूप उनके लिए पर्याप्त सीटों का आरक्षण करने की भी जिम्मेदारी थी। राज्य में यह काम पहली बार हो रहा है। इससे पूर्व 5 अगस्त, 2019 से पहले राज्य में जम्मू-कश्मीर का संविधान लागू था जिसमें अनुसूचित जातियों व जन जातियों के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था। इसी दिन संसद में प्रस्ताव पारित करके राज्य को दो हिस्सों लद्दाख एवं जम्मू-कश्मीर में विभक्त करके भारत का संविधान एकरूपता में लागू किया गया था। कश्मीर में इनका बसेरा गन्दरबल, अनन्तनाग व बांदीपुरा के इलाकों में हैं। इसके साथ ही अनुसूचित जातियों के लोगों को भी सात सीटें दी जानी थीं। अतः भारतीय संविधान के अनुसार समाज के दबे व पिछड़े लोगों को प्रतिनिधित्व देने के लिए उनकी इलाकेवार आबादी की बहुलता को देखते हुए नई सीटों के निर्माण की जरूरत किसी भी तरह से नाजायज नहीं कही जा सकती। पिछले 74 साल से इन लोगों को उनके मौलिक व जायज हक से महरूम रखा गया है जो भारत का संविधान इन्हें देता है। अतः सूबे के क्षेत्रीय दलों को अपने विशेष रुतबे वाली मानसिकता का परित्याग करके दलितों व जनजातियों के लोगों की हक की लड़ाई लड़नी चाहिए। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आयोग ने पाक अधिकृत कश्मीर इलाके के लोगों के लिए 24 सीटें छोड़ने का प्रावधान भी बाकायदा बरकरार रखा है।

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