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भारत का दोस्त मिस्र

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका की ऐतिहासिक राजकीय यात्रा के बाद मिस्र की अपनी पहली यात्रा पर काहिरा पहुंच गए हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका की ऐतिहासिक राजकीय यात्रा के बाद मिस्र की अपनी पहली यात्रा पर काहिरा पहुंच गए हैं। मिस्र के राष्ट्रपति अल सीसी पिछले वर्ष भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए थे। उसी समय उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को मिस्र आने के​ लिए न्यौता दिया था। भारत और मिस्र के बीच रक्षा और सामरिक संबंध पिछले कुछ वर्षों से काफी मजबूत हुए हैं। दोनों देशों की सेनाओं ने इस वर्ष जनवरी में पहला सैन्य युद्ध अभ्यास भी किया था। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से इस बात का पता चलता है कि मिस्र का भारत के​ लिए क्या महत्व है।
मिस्र के साथ भारत के संबंध हमेशा से ही सौहार्दपूर्ण रहे हैं। 15 अगस्त, 1947 को भारत को आजादी मिलने के अगले तीन दिनों में दोनों देशों ने औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर के बीच गहरे दोस्ताना संबंध थे। दोनों नेताओं ने यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज टीटो के साथ मिलकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी। रणनीतिक स्तर पर भी दोनों देशों के बीच गहरे संबंध थे। नासिर के कार्यकाल में 1956 के अभूतपूर्व स्वेज संकट के दौरान भारत का मिस्र के प्रति सहयोगात्म रुख रहा। कुल मिलाकर कहे तो 50 और 60 का दशक भारत-मिस्र संबंधों का स्वर्ण काल था।
लेकिन 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध से जब काहिरा ने सोवियत संघ के नेतृत्व वाले गुट से दूरी बनाते हुए अमेरिका के करीब जाना शुरू किया तो भारत-मिस्र संबंधों में भी शून्यता का भाव भरने लगा। घरेलू मुद्दे और जूदा भू-राजनीतिक विचारों की वजह से शून्यता का यह भाव अगले कुछ दशकों तक बरकरार रहा। कमोबेश यही स्थिति होस्नी मुबारक के शासनकाल में रही। कहा जाता है कि होस्नी जब तक सत्ता में रहे तब तक काहिरा-नई दिल्ली संबंध ठंडे बस्ते में ही रहे। हालांकि, शीतयुद्ध के दौरान आए इस ठंडेपन ने रिश्तों की खाई को अधिक गहरा नहीं होने दिया और अलग-अलग दौर के भू-राजनीतिक परिदृश्यों के बीच भारत-मिस्र संबंध कमोबेश आगे बढ़ते रहे। कोविड-19 और उसके बाद आए डेल्टा लहर के भयानक दौर ने द्विपक्षीय संबंधों को ठंडे बस्ते से बाहर निकालने में उत्प्रेरक के तौर पर काम किया। डेल्टा लहर के उस भयावह वक्त में मिस्र उन चंद देशों में से एक था जिसने भारत को मेडिकल ऑक्सीजन की सप्लाई मुहैया करवाई।
भारत ने मिस्र को 6,500 टन गेहूं दिया। इस समय मिस्र और भारत दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है। वक्त बदलने के साथ-साथ अब इस बात की जरूरत भी है कि इन रिश्तों को ओर भी बेहतर बनाया जाए। पिछले वर्ष इस्लामिक देशों के सम्मेलन में पाकिस्तान जब भारत के खिलाफ कश्मीर मुद्दे को लेकर प्रस्ताव लेकर आया था तो मिस्र ने कड़ी आपत्ति जताई थी। राष्ट्रपति अल सीसी ने इस प्रस्ताव का समर्थन करने से इंकार कर दिया था। जिसके चलते प्रस्ताव पारित नहीं हो सका था आैर पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी। 2022 में भाजपा की प्रवक्ता रही नुपूर शर्मा की टिप्पणी के बाद भारत को इस्लामी देशों की नाराजगी झेलनी पड़ी थी। कई अरब देशों ने भी इस मामले पर असंतोष जाहिर किया था लेकिन मिस्र ने इस मामले पर कोई ​टिप्पणी नहीं की थी। मिस्र की इस समय आर्थिक हालत कुछ ज्यादा ठीक नहीं है। उसे भारत से सहायता की जरूरत है। भारत के लिए मिस्र में निवेश का रास्ता बन सकता है। क्योंकि वह पश्चिम एशिया और अफ्रीका की राजनीति में बहुत मजबूत है और एक सैन्य ताकत भी है। मिस्र को भारत से सैन्य मदद भी चाहिए और भारत का रक्षा सैक्टर इस समय निर्यात के लिए तैयार है। प्रधानमंत्री मोदी और अल सीसी राजनयिक और व्यापारिक संबंधों को बढ़ाएंगे और कुछ समझौतों पर हस्ताक्षर होना भी लगभग तय है। सबसे बड़ी बात यह है कि मिस्र एक मुस्लिम देश है लेकिन वो हमेशा से ही पाकिस्तान की नीतियों और आतंकवाद की खिलाफत करता रहा है। भारत मिस्र में सबसे बड़े निवेशक के तौर पर भी उभरा है। दोनों देशों ने एक-दूसरे को मोस्ट फेवर्ट नेशन का दर्जा भी दे रखा है। मोदी की मिस्र यात्रा पर इस्लामिक देशों की नजरें लगी हुई हैं लेकिन इतना तय है कि भारत और मिस्र में संबंधों के नए युग की शुरूआत होगी।

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