खाद्य वस्तुओं की महंगाई? - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

खाद्य वस्तुओं की महंगाई?

देश में खाद्य व उपभोक्ता वस्तुओं की खुदरा महंगाई जिस तरह बढ़ रही है वह निश्चित रूप से चिन्ता का विषय इसलिए है कि कुल 140 करोड़ की आबादी वाले इस देश में 81 करोड़ के लगभग लोग प्रति माह पांच किलो मुफ्त भोजन के आसरे अपना जीवन यापन करने को मजबूर हैं। भारत की कुल आबादी के 50 प्रतिशत लोग जीएसटी शुल्क में 60 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी करते हैं। जबकि हाल ही में जो अधिकृत एजेंसियों के आंकड़े आये हैं उनमें यह बताया गया है कि देश के युवा लोगों में बेरोजगारी की दर 40 प्रतिशत के आसपास पहुंच गई है। विगत दिसम्बर महीने में खुदरा महंगाई की दर 5.69 प्रतिशत पहुंच गई जो कि पिछले चार महीनों में सर्वाधिक है। यह आंकड़ा राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (एनएसओ) का है। इसके साथ ही सांख्यिकी संगठन ने यह आंकड़ा भी दिया है कि विगत नवम्बर महीने में फैक्ट्रियों का उत्पादन पिछले आठ महीने में सबसे कम 2.4 प्रतिशत ही रहा जबकि अक्टूबर महीने में यह 11.6 प्रतिशत था और साल भर पहले यह 7.6 प्रतिशत था।
चिन्ता की बात यह है कि सबसे ज्यादा महंगाई खाद्य वस्तुओं में हो रही है। यदि खुदरा महंगाई का वार्षिक आधार पर हिसाब लगाया जाये तो यह वृद्धि दिसम्बर महीने में 9.53 प्रतिशत बढ़ती है और नवम्बर में 8.70 प्रतिशत बढ़ती है जबकि पिछले वर्ष यह 4.19 प्रतिशत रही थी। आम आदमी की खाद्य वस्तुओं दाल से लेकर आटा व साग-सब्जियों में जिस रफ्तार से तेजी आ रही है उससे उसका जीवन और कष्टमय ही होगा क्योंकि उसकी आमदनी में वृद्धि का कोई आसार नजर नहीं आ रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने महंगाई की दर 4 से 6 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान रखा था। मगर दिसम्बर महीने के दौरान शहरों में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में 10.42 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि ग्रामीण इलाकों के बाजारों में इन वस्तुओं के दाम 8.49 प्रतिशत बढ़ गये। नवम्बर-दिसम्बर महीने में सबसे ज्यादा कीमतें दालों व मसालों की हुई। दालों व मसालों के भाव 20 प्रतिशत बढ़ गये। दिसम्बर महीने में सब्जियों के दाम 27.64 प्रतिशत बढ़ गये जबकि नवम्बर महीने में इनके दाम 17.70 प्रतिशत ही बढे़ थे। जबकि दूसरी तरफ गैर खाद्य व गैर ईंधन वस्तुओं के दामों में नरमाई आई है। नवम्बर में इनकी दर 4.1 प्रतिशत थी जो दिसम्बर में घटकर 3.9 प्रतिशत रह गई। इसका सम्बन्ध फैक्ट्रियों के उत्पादन से होता है जो कि दिसम्बर महीने में काफी घट गया। अब यह रिजर्व बैंक को देखना है कि वह वित्तीय स्तर पर क्या कदम उठाता है जिससे खुदरा महंगाई की दर नीचे की तरफ जाए। जहां तक दलहन से लेकर गेहूं-चावल के उत्पादन का सम्बन्ध है तो इनका उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। किसान दूसरी तरफ न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए लगातार शोर मचा रहे हैं और कृषि जन्य वस्तुओं के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
मजबूत अर्थव्यवस्था में इन तीनों के बीच सन्तुलन समीकरण का बनना बहुत आवश्यक है जिससे खाद्य वस्तुओं के दाम सर्वदा सामान्य नागरिक की पहुंच के भीतर रहें और सालाना मुद्रास्फीति को देखते हुए उसकी आय में भी समानुपाती वृद्धि हो सके। महंगाई का असर आम आदमी पर तभी होता है जबकि उसकी आय वृद्धि दर महंगाई की दर से नीचे होती चली जाती है। परन्तु यह भी कम आश्चर्य नहीं है कि एेसे माहौल में शेयर बाजार रोज कुलांचे मार रहा है और चुनिन्दा कम्पनियों के शेयर उड़ान भर रहे हैं। इसके साथ ही सोने के दाम भी अच्छी खासी ऊंचाई लेते जा रहे हैं। तीसरी तरफ डालर का भाव रुपये के मुकाबले नीचे आने का नाम नहीं ले रहा है।
भारत के यदि चालू खाते को देखा जाये तो इसका घाटा कम नहीं हो रहा है। इसका मतलब है कि आयात लगातार बढ़ रहा है और निर्यात में समानुपाती वृद्धि नहीं हो रही है। यह जिम्मेदारी भी रिजर्व बैंक की बनती है कि वह अपनी वित्तीय नीतियों में किस प्रकार की घट-बढ़ करे कि अर्थव्यवस्था के सभी मानक सन्तुलनकारी बनें। जहां तक खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ने का सवाल है तो जाहिर है कि बिचौलियों की मौज आ रही है क्योंकि इनका उत्पादक किसान भी रो रहा है और उपभोक्ता भी आंसू बहा रहा है। बाजार के हाथ में सारी सत्ता सौंपने का यही सबसे बड़ा नुकसान होता है। बाजार की शक्तियां केवल मुनाफे के गणित पर काम करती हैं । लोककल्याण उनके लिए कुछ मायने नहीं रखता। इसी वजह से लोकतान्त्रिक देशों में सरकारें बाजार हस्तक्षेप के लिए अपने हाथों में कुछ शक्तियां संग्रहित करके रखती हैं जिससे जरूरत पड़ने पर आम आदमी की रक्षा की जा सके। रिजर्व बैंक का यह दायित्व बनता है कि वह फैक्ट्रियों में उत्पादन को गति देने के लिए खुदरा महंगाई को रोकने के उपाय भी करे जिससे रोजगार के अवसर कम न हो सकें। युवा वर्ग में 40 प्रतिशत की बेरोजगारी दर निश्चित रूप से चिन्तित करने वाली है क्योंकि इसका सीधा सम्बन्ध देश के सकल विकास से है और औद्योगिक व सेवा क्षेत्र समेत अन्य क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ने से है।

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