इसरो एक्सपोसैट खोलेगा अंतरिक्ष के गहरे राज - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

इसरो एक्सपोसैट खोलेगा अंतरिक्ष के गहरे राज

साल 2024 के पहले ही दिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने इतिहास रच दिया है। दुनिया में अपनी धाक को लगातार बढ़ा रहे भारत ने नए साल पर देशवासियों को खुशी मनाने का मौका दिया है। भारतीय वैज्ञानिकों ने अपने हुनर का लोहा पूरी दुनिया में मनवाया है और दुनिया के शीर्ष देशों ने भारतीय प्रतिभा का दोहन करके विकसित देशों ने मजबूती हासिल की है। वर्तमान में भारतीय वैज्ञानिकों को देश में ही अवसर मिल रहे हैं तो वे देश को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। इसरो की वैज्ञानिक सोच का लोहा दुनिया मान रही है और इसरो ने साल के पहले दिन दुनिया का दूसरा और देश का पहला ऐसा सैटेलाइट लॉन्च कर दिया है जो पल्सर, ब्लैक होल्स, आकाशगंगा और रेडिएशन आदि की स्टडी करेगा। इसका नाम एक्स-रे पोलरिमेट्री सैटेलाइट (एक्सपोसैट) है। इसके साथ ही 10 अन्य पेलोड भी लॉन्च किए गए हैं। स्पेस एजेंसी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन बड़े-बड़े कीर्तिमान स्थापित कर रही है। जो काम अब तक दुनिया की सबसे बड़ी स्पेस एजेंसी नासा करती थी अब वह भारत का इसरो करेगा। 2024 की शुरुआत स्पेस एजेंसी ने एक बड़े धमाके के साथ की है और इस बात के स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि आने वाले वक्त में हिंदुस्तान का नाम स्पेस में और तेज चमकने वाला है। इस मिशन के माध्यम से अमेरिका के बाद भारत ब्लैक होल (आकाशगंगा) और न्यूट्रॉन सितारों का अध्ययन करने के लिए एक विशेष सैटेलाइट भेजने वाला दुनिया का दूसरा देश बन गया। यह मिशन करीब पांच साल का है।
इसरो के चंद्रयान-3 और आदित्य एल1 मिशन के बाद यह देश का अंतरिक्ष अन्वेषण की दिशा में एक नया ऐतिहासिक कदम होगा। ‘एक्स-रे पोलरिमेट्री सैटेलाइट’ (एक्सपोसैट ) एक्स-रे सोर्स के रहस्यों का पता लगाने और ‘ब्लैक होल’ की रहस्यमयी दुनिया का अध्ययन करने में मदद करेगा। इसरो के मुताबिक यह खगोलीय स्रोतों से एक्स-रे उत्सर्जन का अंतरिक्ष आधारित ध्रुवीकरण माप में अध्यन करने के लिए अंतरिक्ष एजेंसी का पहला समर्पित वैज्ञानिक उपग्रह है। इसरो ने बताया कि इस उपग्रह का लक्ष्य सुदूर अंतरिक्ष से आने वाली गहन एक्स-रे का पोलराइजेशन यानी ध्रुवीकरण पता लगाना है। यह किस आकाशीय पिंड से आ रही हैं, यह रहस्य इन किरणों के बारे में काफी जानकारी देते हैं। पूरी दुनिया में एक्स-रे ध्रुवीकरण को जानने का महत्व बढ़ा है। यह पिंड या संरचनाएं ब्लैक होल, न्यूट्रॉन तारे (तारे में विस्फोट के बाद उसके बचे अत्यधिक द्रव्यमान वाले हिस्से), आकाशगंगा के केंद्र में मौजूद नाभिक आदि को समझने में मदद करता है। इससे आकाशीय पिंडों के आकार और विकिरण बनाने की प्रक्रिया को समझने में मदद मिलेगी।
एक्सपोसैट का मतलब है एक्स-रे पोलरिमेट्री सैटेलाइट, इसे पीएसएलवी-सी58 रॉकेट की मदद से 650 किमी ऊपर पृथ्वी की निचली कक्षा (लो वर्थ ऑर्बिट) में स्थापित कर दिया गया है। पृथ्वी की निचली कक्षा वह स्थान होता है जहां धरती का अंत होता है और अंतरिक्ष की शुरुआत होती है। यहां से हमारी अंतरिक्ष यात्रा की शुरुआत होती है। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो ) के एक्सपोसैट मिशन का मकसद ब्रह्मांड में मौजूद ब्लैक होल, मृत तारों को और अच्छे से समझना है। मुख्य रूप से अंतरिक्ष में 50 सबसे चमकीले ज्ञात स्रोतों की स्टडी करना है। इसमें पल्सर, ब्लैक होल एक्स-रे बायनेरिज, एक्टिव गैलेक्टिक नाभिक, न्यूट्रॉन तारे और गैर-थर्मल सुपरनोवा अवशेष शामिल हैं। एक्सपोसैट सैटेलाइट अंतरिक्ष में एक्स-रे के अहम डेटा जुटाएगा और ब्रह्मांड को बेहतर तरीके समझने में मदद करेगा। एक्स-रे वह अद्भुत तरंगें होती हैं जो ब्रह्मांडीय स्रोतों से आती हैं। आमतौर पर ऑप्टिकल टेलीस्कोप से हम देख सकते हैं कि कोई खगोलीय पिंड कैसा दिखता है मगर ये पता नहीं चलता कि इसका निर्माण कैसा हुआ और इनका व्यवहार कैसा है। इसीलिए साइंटिस्ट यहां से आने वाली तरंगों के रूप एक्स-रे से जानकारी इकट्ठा करते हैं। एक्स-रे पर रिसर्च से हमें ब्रह्मांड में हो रही रचनाओं और घटनाओं को समझने में मदद मिलेगी, जैसे कि तारों का विस्फोट होना, ब्लैक होल का बनना आदि।
ज्यादातर लोग समझते हैं कि ब्लैक होल अंतरिक्ष में मौजूद कोई बड़ा छेद है लेकिन ऐसा नहीं है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्लैक होल अंतरिक्ष में मौजूद ऐसी जगह हैं, जहां जाने के बाद कोई भी चीज बाहर नहीं आ पाती, यहां तक कि रोशनी भी बाहर नहीं निकल पाती, ये तारे, ग्रह, गैस, प्रकाश कुछ भी निगल सकता है। यहां गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटी) इतना ज्यादा होता है कि ये आसपास की सभी चीजों को अपनी ओर खींच लेता है और उसे अपने भीतर समा लेता है। यहां साइंस के सारे नियम फेल हो जाते हैं। ब्लैक होल आकार में पृथ्वी और सूरज से कई गुना बड़े हो सकते है ।
जब कोई ब्लैक होल और एक तारा नजदीक होते हैं तो अंतरिक्ष में एक अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। इस तरह का नजारा इंसान सीधे अपनी आंखों से नहीं देख सकता है, हालांकि साइंटिस्ट टेलीस्कोप (दूरबीन) की मदद से ये नजारा देख सकते हैं। टेलीस्कोप से ब्लैक होल के आसपास के तारों को भी देखा जा सकता है। वैज्ञानिकों ने साल 2019 में आकाशगंगा के बीच स्थित ब्लैक होल की पहली तस्वीर जारी की थी। इस तस्वीर को इवेंट होरिजन टेलीस्कोप नाम के एक एस्ट्रोनॉमी स्क्वाड ने 10 अप्रैल 2019 को रिलीज किया था जो पृथ्वी से लगभग 5.5 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर है। यह तस्वीर किसी आग के गोले या चक्र की तरह दिखती है। मेसियर 87 नाम का ये पहला ब्लैक होल हमारे सूरज से 6.5 बिलियन गुना से एक हजार गुना ज्यादा बड़ा था। अब भारत भी ब्लैक होल जैसी खगोलीय रचनाओं के रहस्यों से पर्दा उठाएगा। इसमें एक बड़ा अंतर यह है कि भारत के एक्सपोसैट सैटेलाइन की लागत करीब 250 करोड़ रुपये ($30 मिलियन) है, जबकि नासा आईएक्सपीई मिशन की लागत $188 मिलियन है। अंतरिक्ष से जुड़ी पहेलियों का कोई अंत नहीं है। दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए ब्लैक होल आज भी एक रहस्य है। अब भारत का एक्सपोसैट सैटेलाइट अगले पांच साल तक अंतरिक्ष में एक्स-रे स्रोत के रहस्यों और ब्लैक होल की रहस्यमयी दुनिया पर स्टडी करेगा। आकाशगंगा के रहस्यों से पर्दा हटाने में भारतीय वैज्ञानिकों का योगदान सराहनीय है। उम्मीद की जा रही है कि भारत सरकार के सहयोग से इसरो और अन्य संस्थान भारत को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनाने में योगदान देंगे।

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