‘गगनयान’ इसरो की नई उड़ान - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

‘गगनयान’ इसरो की नई उड़ान

गगनयान मिशन से जुड़े एक महत्वपूर्ण ट्रायल की सफलता से इसरो ने एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की ली। गगनयान भारतीय वैज्ञानिकों की महत्वकांशी परियोजना है, जिसमें वह भारत में ही बने अंतरिक्षयान से भारत के ही यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजेंगे। इसरो के मानव अभियान को 2025 में लांच किया जाएगा परन्तु इसके लिए तैयारियां पहले से ही जरूरी हैं। अंतरिक्ष यात्राएं बहुत जोखिमपूर्ण होती हैं और इस पर काफी धन भी खर्च होता है। जोखिम कम करने के लिए वैज्ञानिक अपने हर कौशल का इस्तेमाल कर रहे हैं। अंतरिक्ष के अनंत रहस्यों को खोजने के मानवीय गुणों ने चांद, मंगल, शुक्र जैसे धरती से परे खगोलीय पिंडों पर मानवीय पदचिन्हों की छाप छोड़ दी है। अंतरिक्ष की दौड़ में दुनिया के चुनिंदा देशों के साथ भारत भी खड़ा होने के मुकाम पर है। अंतरिक्ष में मानव भेजने के भारत के महत्वाकांक्षी मिशन गगनयान स्वदेशी तकनीक से निर्मित देश का ऐसा मिशन होने जा रहा है जो कि भविष्य में दुनियाभर में भारतीय वैज्ञानिक क्षमता का परचम लहराने वाला होगा। इस गगनयान को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सतीश धवन स्पेस सेंटर से सफलतापूर्वक लॉन्च किया है। अभी हाल ही में चांद के दक्षिणी ध्रुवीय हिस्से पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद दुनियाभर में इतिहास रचने वाले भारत के इस महत्वाकांक्षी मिशन गगनयान का भविष्य के अंतरिक्ष मिशन पर बहुत प्रभाव पड़ेगा।
गगनयान अभियान के बारे में 21 अक्तूबर को दो प्रयोग किये गए। रॉकेट में धरती से 10 किलोमीटर की ऊंचाई पर सुपरसोनिक स्पीड पकड़ लेती है। यह देखा गया कि इस समय हवा का वेग बदलने से रॉकेट टूटकर बिखर सकता है या नहीं।
ऐसे अभियानों में रॉकेट को इस तरह से छोड़ा जाता है कि वह हवा के पीछे-पीछे चले लेकिन यदि हवा की दिशा से रॉकेट की दिशा दो डिग्री से ज्यादा बदल जाए तो रॉकेट टूट सकता है। ऐसी परिस्थिति में रॉकेट आग का गोला बन सकता है। इसलिए ऐसी स्थिति आने पर उसमें सवार यात्रियों को निकाल लेना पड़ेगा। इसे सुपरसोनिक अबॉर्ट टेस्ट कहते हैं। गगनयान के ट्रायल पर इसी बात की जांच की गई। यान को 17 किलोमीटर की ऊंचाई पर अबॉर्ट किया गया और समुद्र में सही-सलामत लौटाया गया। गगनयान का एक टेस्ट इस बात का भी किया गया कि यान के भीतर दबाव के कारण रखे ऑक्सीजन और नाइट्रोजन सिलैंडरों से कोई लीक तो नहीं हो रहा और क्या सारे उपकरण काम कर रहे हैं या नहीं।
खुशी की बात है कि यह ट्रायल पूरी तरह सफल रहा। गगनयान अभियान की परिकल्पना 2008 में की गयी थी जब इसरो अध्यक्ष जी. माधवन नायर के कार्यकाल में एक यान को भेजकर वापस लाने का प्रयोग किया गया। धरती से ऊपर जाने पर अंतरिक्ष यान का वेग पहले कम रहता है। जिस जगह यह वेग बढ़ता है वहां वायुमंडल का घनत्व कम होता है जिससे घर्षण कम होता है। लेकिन वापसी के समय वायुमंडल में प्रवेश करते हुए वेग काफी अधिक रहता है। इससे घर्षण बहुत होता है जिससे तापमान बढ़ जाता है और ऐसे में यान को बचाना बहुत जरूरी होता है। पहले इस तरह के प्रयोग किये गये। इनके अलावा एक अबॉर्ट टेस्ट भी किया गया। इसमें यह प्रयास किया गया कि यदि किसी वजह से रॉकेट में खराबी आ जाती है तो उसमें बैठे यात्री को किस तरह निकालना पड़ेगा। इस ट्रायल के बाद और भी परीक्षण किए जाएंगे। पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही मिशन गगनयान के तहत अंतरिक्ष यात्रियों को धरती से 400 किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में भेजा जाएगा जहां तीन दिनों तक अंतरिक्ष यात्री धरती की कक्षा के चक्कर लगाएंगे। इसके बाद इन अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित धरती पर लैंड कराया जाएगा। गगनयान में अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने वाले कैप्सूल को बंगाल की खाड़ी में वापस लैंड किया जाएगा जहां भारतीय नौसेना इन्हें ढूंढकर सुरक्षित बचाएगी। यह पूरी तकनीक स्वदेशी है और इसरो के साथ मिलकर भारत की तकनीकी कंपनियों ने इन्हें विकसित किया है। इसकी सफलता भविष्य में भारत की स्वदेशी स्पेस नेविगेशन, रिमोट सेंसिंग, रिमोट ड्राइविंग, रिमोट नेविगेशन जैसी स्वदेशी तकनीक में नई इंडस्ट्रीज के द्वार खुलेंगे।
गगनयान का क्रू मॉड्यूल इतना आधुनिक है कि इसमें कई तरह की खास सुविधाएं हैं। जैसे नेविगेशन सिस्टम, फूड हीटर, फूड स्टोरेज, हैल्थ सिस्टम और टॉयलेट आदि। यह अंतरिक्ष यात्रियों की सुविधा के लिए विकसित किए गए हैं। अंतरिक्ष में मानव भेजने से पहले इसमें “व्योम मित्रा” नाम की महिला रोबोट को भेजा जाएगा जिसके शरीर पर एयर प्रेशर, हीट इफेक्ट और अन्य चुनौतियों को समझा जाएगा। उसके मुताबिक भारत के अंतरिक्ष यात्रियों को तैयार किया जाना है।
मिशन के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को बेंगलुरु के एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग फैसिलिटी में खास ट्रेनिंग दी जा रही है। उन्हें फिजिकल, क्लासरूम, फिटनेस, सिम्युलेटर व फ्लाइट सूट का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसमें भारतीय वायुसेना के अधिकारियों को भी शामिल किया गया है। गगनयान मिशन अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है, इससे भारत की पूरी दुनिया में धाक तो जमेगी ही बल्कि युवा पीढ़ी के ​िलए भी भारत में रहकर बहुत कुछ करने की सम्भावनाएं सृजित होंगी। अंतरिक्ष के क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

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