विदेश मन्त्री श्री एस. जयशंकर आजकल रूस की यात्रा पर हैं। वह विदेश मन्त्री बनने के बाद पहली बार रूस गये हैं। उनकी यह यात्रा अन्तर्राष्ट्रीय विषम परिस्थितियों को देखते हुए बहुत महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि समूचे पश्चिमी देश व अमेरिका रूस के खिलाफ यूक्रेन से युद्ध के मुद्दे पर मोर्चा खोले हुए हैं। श्री जयशंकर मोदी सरकार के ऐसे विदेश मन्त्री माने जाते हैं जो विपरीत परिस्थितियों में भी भारत के हित साधने में महीन रास्तों का इस्तेमाल करते हुए अपने देश की साख को ऊंचा रखते हैं। इसके साथ ही जहां कूटनीतिक मोर्चे पर उन्हें स्पष्टवादी होने की जरूरत पड़ती है, वहां वह विश्व शक्तियों के रुख को इस प्रकार मोड़ने में सफलता अर्जित कर लेते हैं कि भारत का मत निर्विवाद रह सके। रूस की यह यात्रा इन अटकलों के बीच हो रही है कि जी-7 के दुनिया के औद्योगिकृत व विकसित देश रूस से निर्यात होने वाले कच्चे पेट्रोलियम तेल का मूल्य बान्धना चाहते हैं जिससे रूस आर्थिक रूप से अपने ऊर्जा सम्पन्न होने का इस्तेमाल इन देशों द्वारा लगाये गये रूस के िखलाफ प्रतिबन्धों के तोड़ के रूप में न कर सके।
दुनिया जानती है कि भारत ने यूक्रेन युद्ध शुरू होने पर ही साफ कर दिया था कि वह रूस से कच्चा तेल खरीदेगा और उसे रूस के खिलाफ लगाये गये आर्थिक प्रतिबन्धों से विशेष लेना-देना नहीं है। यह भारत और रूस के बीच का विशिष्ट मामला है। हमें इस सन्दर्भ में यह भी ध्यान रखना होगा कि रूस के डालर खातों को भी जिस प्रकार पश्चिमी देशों ने अपने प्रभावी बैंकों के माध्यम से जाम कराया है उसका तोड़ भी रूस निकाल चुका है और वह द्विपक्षीय आधार पर दो देशों के बीच होने वाले व्यापार में अपनी मुद्रा रूबल में ही कारोबार कर रहा है। इससे रूस की दृढ़ आर्थिक इच्छा शक्ति का भी हमें संकेत मिलता है। मगर पश्चिमी देश रूस की कमर तोड़ने के लिए वे सभी तरीके इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे इसकी अर्थव्यवस्था चरमरा जाये, मगर रूस पश्चिमी देशों के इन प्रयासों को अपनी ऊर्जा शक्ति से विफल करने में समर्थ होता दिखाई पड़ रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते जिस तरह यदा-कदा परमाणु युद्ध का खतरा पैदा करने की आशंकाएं पैदा हो जाती हैं उसके बारे में भी श्री एस. जयशंकर अपने समकक्ष रूसी विदेशमन्त्री श्री सर्गेई लावरोव से वार्तालाप में स्पष्ट कर सकते हैं कि भारत का मत हर सूरत में परमाणु तनाव के खिलाफ है क्योंकि इसमें महाविनाश के लक्षण छिपे हुए हैं। यह पूरी तरह सामयिक विचार है क्योंकि भारतीय उपमहाद्वीप समेत दक्षिण एशिया में भारत, पाकिस्तान व चीन तीनों ही परमाणु सम्पन्न राष्ट्र हैं जिनमें से पाकिस्तान पूरी तरह अराजकता के माहौल में है और इसके परमाणु अस्त्रों पर आतंकवादियों का साया प्रायः मंडराता रहता है।
भारत शुरू से ही कह रहा है कि रूस-यूक्रेन समस्या का हल केवल बातचीत द्वारा ही निकाला जाना चाहिए। हथियारों की होड़ खड़ी करके समस्याएं बजाय समाप्त होने के और बढ़ती हैं। परन्तु पश्चिमी देशों के संगठन नाटो ने जिस तरह यूक्रेन को बांस पर चढ़ा रखा है, उससे युद्ध का वातावरण खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है जिसकी वजह से भारत को कभी-कभी सन्तुलक की भूमिका भी निभानी पड़ रही है। प्रधानमन्त्री मोदी पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि रूस को भी बातचीत का रास्ता अपनाने के विकल्पों पर विचार करना चाहिए क्योंकि वर्तमान समय युद्ध का नहीं बल्कि वार्तालाप का है। श्री जयशंकर दो दिन तक रूस में रहेंगे और अपनी यात्रा के पहले दिन ही उन्होंने साफ कर दिया है कि विश्व और एशिया बहुशक्ति केन्द्रों में परिवर्तित हो रहा है जिसे देखते हुए विश्व शान्ति के माहौल में ही परस्पर सहयोग व सौहार्द बनाते हुए विकास के पथ पर आगे बढ़ा जा सकता है। वह रूस के साथ भारत के सम्बन्धों की समीक्षा आर्थिक व सैनिक क्षेत्रों तक मंे करेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि दोनों देशों के बीच एेतिहासिक मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बदलती विश्व राजनैतिक, रणनीतिक व आर्थिक परिस्थितियों में और प्रगाढ़ हों।
भारत ब्रिक्स (भारत, रूस, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका व चीन) संगठन का सदस्य होने से लेकर ‘शंघाई सहयोग संगठन’ का भी महत्वपूर्ण सदस्य है। इसका सीधा अर्थ यही निकलता है कि विश्व राजनीति में भारत की महत्ता में आधारभूत बदलाव आ चुका है। रूस के साथ भारत के सैनिक सम्बन्ध व सहयोग एक एेसा दस्तावेज माने जाते हैं जो हर दौर में लगातार तरोताजा होकर दोनों देशों के बीच सम्बन्धों को हमेशा पुख्ता बनाये रखते हैं। इसके अलावा दोनों देशों के बीच के आर्थिक सम्बन्ध भी पिछले 75 सालों से सदा मजबूत रहे हैं। लेकिन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि रूस बदली विश्व परिस्थितियों में भारत को एक महत्वपूर्ण शक्ति मानता है जिसका प्रमाण रूसी राष्ट्रपति श्री पुतिन ने हाल ही में यह कह कर दिया कि प्रधानमन्त्री श्री मोदी सच्चे राष्ट्रभक्त हैं और भारत के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसका कूटनीतिक अर्थ यही है कि रूस की नजर में भारत की अहमियत किसी अन्य देश के मुकाबले कम नहीं है। श्री जयशंकर की रूस यात्रा इसी पृष्ठभूमि में हो रही है जिसका अर्थ है कि दोनों देशों के बीच की दोस्ती में पुनः नया आयाम जुड़ सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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