कमलनाथ और डा. रघुवीर ! - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

कमलनाथ और डा. रघुवीर !

कांग्रेस नेता श्री कमलनाथ के बारे में यह अफवाह उड़ना ही बहुत बड़ी खबर है कि वह पार्टी छोड़ रहे हैं। फिर उनकी भाजपा में जाने की अफवाह तो और बड़ी खबर है क्योंकि वह राष्ट्रीय स्तर के कद्दावर नेता हैं और ऐसे नेता हैं जिन्होंने 2018 में भाजपा को उसके ही गढ़ मध्य प्रदेश में भारी शिकस्त दी थी और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनाई थी। कमलनाथ अभी तक कांग्रेस के गुलदस्ते का ऐसा फूल माने जाते रहे हैं जिसकी महक से अन्य राज्यों की कांग्रेस के फूल भी सुगन्धित रहे हैं। अतः उनका कद बहुत बड़ा है और उनके भाजपा में प्रवेश से इस पार्टी को लाभ भी इसी अनुपात में होना चाहिए। इसके अलावा कमलनाथ आर्थिक उदारीकरण के दौर में कांग्रेस की गांधीवादी विचारधारा में बदलते समय के अनुसार परिमार्जन का वह झोंका भी हैं जिससे पार्टी को दरिद्र नारायण के हित में लगातार लगाये रखा जा सके और बाजारीकरण का लाभ सीधे गांव व गरीब को मिल सके। इस सन्दर्भ में उनके द्वारा 2008 में लिखी पुस्तक ‘इंडियाज सेंचुरी’ (भारत की शताब्दी) ऐसा पठनीय दस्तावेज है जो आर्थिक वैश्वीकरण के दौर में भारत की अपनी सामाजिक- आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार वरीयताएं तय करता है।
1991 में आर्थिक उदारीकरण शुरू होने के बाद भारत के आर्थिक मानकों में जो परिवर्तन हुआ है उसे देखते हुए समाज के गरीब वर्गों के हितों में उठाये जाने वाले कदमों की दिशा क्या होनी चाहिए, इसका खाका हमें इस पुस्तक में दिखाई पड़ता है जो कि 1984 में स्व. चौधरी चरण सिंह द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘नाइटमेयर आफ इंडियन इकोनाॅमी’ के एकदम उलट है। चौधरी साहब देश के प्रधानमन्त्री रहे थे और ग्रामीणों के सबसे बड़े नेता थे। उनकी दृष्टि जमीनी हकीकत पर टिकी हुई थी और कृषि क्षेत्र की बिखरी हुई शक्ति को सम्पुष्ट रूप में प्रस्तुत करने की थी। मगर कमलनाथ भी इस हकीकत से कभी अनजान नहीं रहे और पूरी तरह अंग्रेजी शिक्षा में पारंगत होने के बावजूद उन्होंने भारत की जमीन को पहचानने में गलती नहीं की। इसका प्रमाण उन्होंने 2005 के विश्व व्यापार संगठन की बैठक में दिया जहां भारत के किसानों के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी और भारत जैसे सभी विकासशील देशों का गुट बना कर एेलान किया कि कृषि क्षेत्र से तब तक सब्सिडी समाप्त नहीं की जा सकती जब तक कि भारत व विकासशील देशों के किसानों की माली हालत भी यूरोपीय किसानों जैसी न हो जाये।
अतः कमलनाथ को केवल छिन्दवाड़ा का नेता मानना भारी भूल होगी क्योंकि उन्होंने मध्यप्रदेश की राजनीति में केवल एक साल ही सक्रिय होने के बाद 2018 में भाजपा को गद्दी से उतार दिया था और कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए राज्य में कांग्रेस में नया जीवन भर दिया था। वह यदि भाजपा में आते हैं तो इसका पूरा लाभ भाजपा को जमीन से लेकर शिखर राजनीति तक में मिलेगा क्योंकि कमलनाथ को एक रणनीतिकार और कुशल वार्ताकार भी माना जाता है। उनके योग्य प्रशासक होने में तो किसी को कभी कोई शक रहा ही नहीं है। लगातार नौ आम चुनाव जीत कर संसद में पहुंचने वाले कमलनाथ यदि भाजपा में जाते हैं तो यह कांग्रेस पार्टी का ऐसा नुक्सान होगा जैसा कि 50 के दशक में डा. रघुवीर के कांग्रेस से भाजपा में जाने पर हुआ था। डा. रघुवीर भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे थे और उन्हें भी कांग्रेस में रहते हुए राष्ट्रवादी विचारों का माना जाता था। कमलनाथ पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि वह हिन्दूवादी संस्कृति के समर्थक हैं।
इस देश का हर नागरिक भारत की संस्कृति का समर्थक होता है चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान हो क्योंकि हिन्दू प्रतीक ‘देशज संस्कृति’ के द्योतक होते हैं। आचार्य या डा. रघुवीर के भी कांग्रेसी नेताओं से इस मुद्दे पर मतभेद उसी प्रकार थे जिस प्रकार उनसे पहले राजऋषि पुरुषोत्तम दास टंडन के। कांग्रेस में एक धड़ा शुरू से ही एेसा रहा है जो भारतीय संस्कृति के मूल मानकों के साथ सामंजस्य स्थापित कर चलने का हिमायती रहा है। इसकी हिमायत समाजवादी नेता डा. राम मनोहर लोहिया भी करते थे जिसकी वजह से वह हर साल रामायण मेला भी करवाया करते थे। डा. लोहिया राम को उत्तर-दक्षिण के बीच सेतु मानते थे और कृष्ण को पूर्व-पश्चिम के बीच का पुल। कमलनाथ की दृष्टि भगवान राम या हनुमान के बारे में एक साकार मूर्तिपूजक हिन्दू की हो सकती है मगर इससे उनकी भारतीयता पर कोई असर नहीं पड़ता। हिन्दू स्वयं में उदार ही होता है और मूलतः हर मुसलमान भी, क्योंकि इस्लाम भी शान्ति व प्रेम के साथ समाजवादी विचारधारा का धर्म है जिसमें हर पड़ोसी को सुखी देखना पड़ोसी का कर्त्तव्य है। श्री कमलनाथ यदि भाजपा में जाते हैं तो निश्चित रूप से भाजपा के लिए यह बहुत बड़ा लाभ का सौदा होगा जिसके सहारे यह पार्टी आगामी लोकसभा चुनावों में मध्यप्रदेश की 29 सीटों में ही प्रभावी नहीं होगी बल्कि पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ तक में इसका असर होगा। वह कांग्रेस के एकमात्र एेसे नेता हैं जिनकी गांधी परिवार से बहुत ही निकटता है और पिछले 50 वर्षों से वह परिवार के सदस्य के रूप में ही देखे जाते हैं परन्तु राजनीति में पिता-पुत्र व पति-पत्नी के बीच भी मतभेद होते हैं। मगर इस बार मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव हार जाने पर जिस तरह पराजय का ठीकरा उनके सिर फोड़ा जा रहा है वह पूरी तरह अनुचित ही कहा जायेगा क्योंकि कांग्रेस ने चुनावों में अपनी दो सरकारें छत्तीसगढ़ व राजस्थान भी गंवाई हैं।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ten + fourteen =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।