इंडिया गठबंधन की जरूरत - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

इंडिया गठबंधन की जरूरत

मेरा यह शुरू से ही मानना रहा है कि लोकसभा चुनाव के लिए इंडिया गठबंधन बनाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। केवल कांग्रेस के नेतृत्व में ऐसा गठबंधन बनना चाहिए था जिसमें समान विचारधारा वाले क्षेत्रीय दल शामिल होते और वह कांग्रेस के नेतृत्व में चुनाव लड़ते। कांग्रेस के नेतृत्व में पहले से ही यूपीए गठबंधन मौजूद था। बेहतर होता की इसी गठबंधन में जो नए दल शामिल होना चाहते वह हो सकते थे मगर ऐसा नहीं हो सका और उसका खामियाजा कांग्रेस को ही भुगतना पड़ रहा है। इसकी एक प्रमुख वजह यह है की क्षेत्रीय दलों के पास कोई राष्ट्रीय दृष्टि नहीं है ये अपने-अपने राज्यों में मजबूत जरूर हैं मगर राष्ट्रीय फलक पर उनकी उपस्थिति बहुत सीमित है और इनका पहला सिद्धांत अपने राज्य में ही मजबूती प्राप्त करना है।
कांग्रेस के साथ स्थिति दूसरी है यह राष्ट्रीय पार्टी है जिसकी उपस्थिति देश के हर राज्य में हैं और इस उपस्थिति की मुख्य वजह गांधी नेहरू परिवार का रुतबा है। अतः राहुल गांधी के हाथ में कांग्रेस की वह विरासत है जिसने पिछले 6 दशक तक भारत में राज किया है और देश के विकास में अपना योगदान किया है। कांग्रेस की नीतियों पर जब यह देश चला तो देशवासियों ने इसके राज को परखा। अतः यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस के पास राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों की स्पष्ट दृष्टि है। राष्ट्रीय स्तर पर सभी क्षेत्रीय दल इसके छाते के नीचे इकट्ठा होकर भाजपा का मुकाबला कर सकते हैं क्योंकि उन्हें भाजपा का मुकाबला करने के लिए एक राष्ट्रीय दृष्टि की आवश्यकता होगी। यह राष्ट्रीय दृष्टि कांग्रेस की हो सकती है।
राहुल गांधी कांग्रेस का झंडा लेकर आगे चल रहे हैं और अपनी न्याय यात्रा की मार्फत वह लोगों को संदेश देना चाहते हैं कि देश में भाजपा का एकमात्र विकल्प कांग्रेस की नीतियां हैं जबकि कांग्रेस के कथित सहयोगी क्षेत्रीय दलों के पास ऐसी कोई दृष्टि या नीति नहीं है जिससे वह भाजपा की नीतियों का मुकाबला कर सके। ये क्षेत्रीय दल टुकड़ों में बंट कर भाजपा का मुकाबला करना चाहते हैं जबकि कांग्रेस एकजुट रूप से भाजपा को आमने-सामने की टक्कर देना चाहती है जिसकी वजह से वह क्षेत्रीय दलों से सहयोग कर रही है परंतु ये क्षेत्रीय दल हैं जो कांग्रेस को एक तरफ खड़ा कर देना चाहते हंै। भारत के लोग भी एक सशक्त विकल्प देखना चाहते हैं।
लोकतंत्र में विकल्पों की कमी नहीं होनी चाहिए क्योंकि लोकतंत्र का मतलब यही होता है कि इसमें लोगों के सामने हमेशा कोई ना कोई सशक्त विकल्प तैयार रहे मगर क्षेत्रीय दल कांग्रेस को चारों तरफ से घेर कर ऐसे विकल्प की संभावना को मिटा रहे हैं। यह भारत की राजनीति की विडंबना ही कही जाएगी। परंतु लोकतंत्र में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मतदाताओं की राय होती है। लोकसभा चुनाव में मतदाता की सोच किस तरफ जाती है यह देखने वाली बात होगी। फिलहाल यह देखने में लगता है कि भाजपा को पराजित करना मुश्किल काम है क्योंकि इंडिया गठबंधन टूट गया है और इसके दल आपस में ही एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते हुए नजर आ रहे हैं। लेकिन लोकतंत्र में या राजनीति में जो ऊपर से दिखाई पड़ता है वह अंदर से नहीं होता है। दक्षिण भारत में भाजपा का कोई खास महत्व नहीं है सिवाय कर्नाटक को छोड़कर जबकि उत्तर भारत में कांग्रेस का कोई महत्व नजर नहीं आ रहा है यदि 2019 के चुनाव को हिसाब-किताब में लिया जाए। लेकिन राजनीति में परिस्थितियां हमेशा एक जैसी नहीं रहती हैं।
बिहार में जो राजनीतिक उथल-पुथल हुई है उससे यह उम्मीद लगाई जा रही है कि भाजपा को इस राज्य में नाको चने चबाने पड़ सकते हैं और इसका असर उत्तर भारत की राजनीति पर पड़ सकता है, खासकर झारखंड और उत्तर प्रदेश में। जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है तो यहां समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव अपनी धुन में ही लगते हैं वह कांग्रेस को सीटें देने में भारी कंजूसी दिखा रहे हैं जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की कुल 5 सीटंे आई थी और कांग्रेस की एक। यह मानना गलत होगा की उत्तर प्रदेश जैसे राज्य से भाजपा के मुकाबले लोकसभा चुनाव में मतदाता समाजवादी पार्टी को वरीयता देंगे। मतदाताओं की बुद्धिमत्ता पर प्रश्न चिन्ह लगाना मूर्खता होती है। मतदाताओं के सामने सवाल है ​िक लोकसभा में पहुंचकर भाजपा का मुकाबला कौन सी पार्टी कर सकती है। इसका उत्तर हमें कांग्रेस के रूप में ही मिलता है यदि बिहार को छोड़ दिया जाए क्योंकि वहां की राजनीतिक परिस्थितियों श्री लालू प्रसाद यादव के पक्ष में हैं और उनके सुपुत्र तेजस्वी यादव बिहार की राजनीति के जगमगाते सितारे कहे जा रहे हैं। शेष उत्तर भारत के राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली आदि राज्य आते हैं उनमें भाजपा का मुकाबला कांग्रेस से ही हो सकता है। क्षेत्रीय दल इसमें अपना योगदान दे सकते हैं और कांग्रेस के साथ खड़े होकर उसके हाथ को मजबूत बनाने की कोशिश कर सकते हैं। मगर क्या ऐसा होगा इसकी संभावना दिखाई नहीं पड़ रही है?
अब यह कांग्रेस को ही देखना होगा कि वह कौन सी रणनीति अपनाती है जिससे क्षेत्रीय दल भी नाराज ना हो और मतदाताओं के सामने विकल्प की संभावना भी खुली रहे। इतना तो निश्चित है की उत्तर भारत में कांग्रेस अपने बूते पर ही भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती। उसे क्षेत्रीय दलों की मदद की जरूरत है। मगर इस मदद के बदले क्षेत्रीय दल कांग्रेस से भारी कीमत वसूलना चाहते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

five + thirteen =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।