अब तेलंगाना में चुनाव की बारी - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

अब तेलंगाना में चुनाव की बारी

2014 में आंध्र प्रदेश के विभाजन से बने तेलंगाना राज्य में इस बार के चुनाव बहुत महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं क्योंकि विभाजन के समय तेलंगाना राष्ट्रीय समिति के नाम से जानी जाने वाली के.सी. चन्द्रशेखर राव की पार्टी को इस प्रदेश की सत्ता को तब केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस ने थाली में सजा कर दे दिया था। इसकी प्रमुख वजह थी कि चन्द्रशेखर राव तब तेलंगाना निर्माण के लिए शुरू की गई कांग्रेस के ही नेता ‘स्व. बी. विजयवाड़ा रेड्डी’ की विरासत पर सवार होकर इस राज्य का निर्माण कराने में सफल केवल इसलिए हो गये थे क्योंकि तब की केन्द्र व आन्ध्र राज्य दोनों में सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस ने इस मुद्दे को तेलंगाना की जनता के हित में यह सोचकर माना था कि पूर्व हैदराबाद के निजाम की रियासत का हिस्सा रहे तेलंगाना क्षेत्र का समुचित व अपेक्षित विकास नहीं हो सका था। 1956 में जब पं. नेहरू के शासनकाल के दौरान राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश मानते हुए तेलंगाना क्षेत्र का आन्ध्र प्रदेश में समावेश किया गया था तो इस क्षेत्र के लिए विशेष विकास परिषद की स्थापना की सिफारिश भी की गई थी। इसके बावजूद तेलंगाना का सम्यक विकास नहीं हो पाया और 2000 के आसपास पृथक तेलंगाना बनाने की मांग ने फिर जोर पकड़ना शुरू किया।
राज्य के बारे में यह संक्षिप्त विवरण देना इसलिए जरूरी है जिससे उत्तर भारत के लोगों को यह आभास हो सके कि आखिरकार तेलंगाना का मूल मसला है क्या? यह भी जानना जरूरी है कि चन्द्रशेखर राव पहले कांग्रेस में ही थे और 2004 में बनी डा. मनमोहन सरकार में उनकी पार्टी भी शामिल थी तथा 2004 के शुरू में ही आन्ध्र प्रदेश विधानसभा के हुए चुनावों को उनकी पार्टी ने कांग्रेस के घोषणापत्र पर ही लड़ा था जिसमें पृथक तेलंगाना राज्य बनाने का समर्थन किया गया था। परन्तु यह 2023 चल रहा है और 2014 से तेलंगाना में चन्द्रशेकर राव की पार्टी ही हुकूमत पर काबिज है। जो चुनावी पंडित हैं वे इन चुनावों की तुलना प. बंगाल के 2011 के चुनावों से कर रहे हैं जिनमें तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने राज्य का पिछले 37 सालों से चल रहा वामपंथी शासन उखाड़ कर फैंक दिया था और विधानसभा में दो-तिहाई से भी अधिक बहुत उनकी पार्टी को मिला था। इन चुनावों को उस समय वामपंथी शासन से जनता का ‘विद्रोह’ माना गया था।
सवाल यह है कि क्या राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इस बार तेलंगाना में चन्द्रशेखर राव के शासन के विरुद्ध जनता में विद्रोह जैसी परिस्थितियों का निर्माण कर दिया है? इसकी एक सबसे बड़ी वजह यह है कि चन्द्रशेखर राव ने पूरे राज्य की सरकार को अपने खानदान की दुकान बनाकर रख दिया है और वह किसी सामन्त की तरह लोकतान्त्रिक सरकार चला रहे हैं। विकास परियोजनाओं में भारी भ्रष्टाचार और घोटालों की बहार आयी हुई है और मुख्यमन्त्री मन्दिरों में यज्ञों का आयोजन करा- करा कर आई बला को टालने में जुटे हुए हैं। वह राज्य की गरीब जनता व किसानों के लिए जो भी योजनाएं चला रहे हैं उन्हें उनकी कृपा के रूप में दिखाया जा रहा है। निजाम हैदराबाद के शासन से मुक्त तेलंगाना की जनता को फिर से किसी ‘लोकतान्त्रिक सामन्त’ की कृपा का पात्र बनाकर दिखाया जा रहा है जिसकी वजह से उनकी सरकार के विरुद्ध लोगों में व्यापक गुस्सा नजर आ रहा है और कांग्रेस के नेता श्री राहुल गांधी व प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने उसे लपक लिया है।
राज्य में केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा की कोई खास हैसियत नहीं है हालांकि लोकसभा में इस राज्य से उसके चार सासंद हैं मगर विधानसभा में केवल एक विधायक ही है। राहुल गांधी समेत कांग्रेस पार्टी के अन्य नेता राज्य के लोगों को यह समझाने में कामयाब होते नजर आ रहे हैं कि वे ही लोकतन्त्र के असली मालिक हैं और उन्हें मिलने वाली कोई भी सुविधा उन पर कृपा नहीं है बल्कि उनका जायज हक है इसी वजह से कांग्रेस ने किसानों व गरीबों के लिए शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य व कृषि क्षेत्र में मदद देने वाली कई योजनाओं की घोषणा गारंटी रूप में कर रखी है। तेलंगाना से कर्नाटक की दूरी ज्यादा नहीं है जहां छह महीने पहले ही कांग्रेस ने भाजपा को हराकर सरकार बनाई थी और चुनावों में आम जनता को पांच गारंटियां दी थी। अब ये पांचों गारंटियां लागू हो चुकी हैं। अतः तेलंगाना को कांग्रेस दूसरा कर्नाटक समझकर चुनाव लड़ रही है। उसके पक्ष में सबसे बड़ी बात यह है कि राज्य में भाजपा को बहुत कमजोर और मुकाबले से बाहर समझा जा रहा है। अब तक राजस्थान, मध्य प्रदेश, मिजोरम, छत्तीसगढ़ में चुनाव हो चुके हैं। केवल तेलंगाना ही बचा हुआ है जहां आगामी 30 नवम्बर को एक ही चरण में मतदान होगा। यहां के चुनावी रण में कांग्रेस के नेताओं की बांछें जिस तरह खिली हुई हैं और उनकी सभाओं में जिस तरह जनसमूह उमड़ रहा है उसे देखकर चुनावी हवा का अन्दाजा लगाना बहुत मुश्किल काम भी नहीं है।

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