पाकिस्तान में 8 फरवरी को आम चुनाव होने जा रहे हैं। दुनियाभर की निगाहें इन चुनावों पर लगी हुई हैं। हालांकि यह चुनाव महज एक नौटंकी ही होंगे। क्योंकि यह पहले से ही तय है कि पाकिस्तान में किसकी सरकार बनेगी। पाकिस्तान का इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान में उसी की सरकार बनती है जिसे सेना के जरनैल चाहते हैं। पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के बाद से ही पाकिस्तान के लोकतंत्र पर सेना का वर्चस्व रहा है और सेना ने बार-बार वहां लोकतंत्र को अपने बूटों के तले रौंदा है। चुनावों की गहमागहमी के बीच पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को सरकारी गोपनीयता कानून के तहत गठित विशेष अदालत ने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के संस्थापक को एक्शन साइफर केस में 10 साल की सजा सुनाई है। इमरान खान के अलावा पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को भी 10 साल की सजा सुना दी गई है। इमरान खान की पार्टी तमाम चुनौतियों के बावजूद चुनाव लड़ रही है और उसके पास फिलहाल अपना चुनावी चिन्ह तक नहीं है। यह पहले से ही तय था कि इमरान खान को किसी न किसी तरह चुनावों से बाहर कर दिया जाएगा। इस सजा के साथ ही इमरान लड़ने के अयोग्य हो चुके हैं। यद्यपि इमरान खान अपनी सजा को उच्च अदालतों में चुनौती देंगे लेकिन इस बात की उम्मीद कम है कि उन्हें कोई राहत मिल पाएगी। क्योंकि इमरान खान सेना के समर्थन से ही सत्ता में आए थे। जब उनका सेना और खुफिया एजैंसी आईएसआई का चीफ बदलने के मामले पर टकराव हुआ तो उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
सेना स्पष्ट तौर पर पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान मुस्लिम लीग के अध्यक्ष नवाज शरीफ का समर्थन करती दिखाई दे रही है। नवाज शरीफ को सत्ता सौंपने के लिए ही उनकी वापसी कराई गई और नाटकीय ढंग से पाकिस्तान की अदालतों ने उन्हें भ्रष्टाचार के सभी आरोपों से बरी कर दिया। नवाज शरीफ की पार्ट सत्ता हासिल करने के लिए ही बड़े जोश से चुनाव लड़ रही है। पाकिस्तान की दूसरी बड़ी पार्टी पािकस्तान पीपल्स पार्टी भी बड़ी उम्मीदों के साथ चुनाव लड़ रही है। पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के बेटे और पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो को उम्मीद है कि उनकी पार्टी को लोग इसलिए वोट देंगे क्योंकि उनकी पार्टी के नेताओं ने बड़ी कुर्बानियां दी हैं। बिलावल भुट्टो ने अपने चुनावी घोषणा पत्र को रोटी, कपड़ा और मकान के साथ जोड़ा है। पाकिस्तान के चुनावों में हर बार कश्मीर का मुद्दा मुख्य चुनावी मुद्दा रहा है। इस बार नवाज शरीफ ने कश्मीर मुद्दे पर अपने सुर नरम किए हुए हैं। उनका कहना है कि वह भारत के साथ कश्मीर का मसला शालीनता के साथ हल करना चाहता है। हालांकि पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने का फैसला वापिस लेने की शर्त रखी गई है। कहने का अभिप्राय यह है कि पाकिस्तान के चुनाव में कश्मीर मुद्दा कहीं छूटता नजर आ रहा है। वहीं उसकी जगह इजराइल-हमास युद्ध ने ले ली है। फलस्तीन मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों ने रैलियां की हैं।
अब सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान में चुनावों के बाद कुछ बदलेगा। इस बात की उम्मीद कम ही नजर आती है। दरअसल पाकिस्तान के अन्दरूनी हालात बहुत खराब हो चुके हैं। एक तरफ पाकिस्तान के आर्थिक हालात खस्ता हैं तो दूसरी तरफ काफी कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान को उसके मित्र देश भी मदद नहीं कर रहे। पाकिस्तान बड़ी मुश्किल से अपनी अर्थव्यवस्था को जुगाड़ से ही चला रहा है। महंगाई आसमान को छू रही है। पाकिस्तान पर लगभग 70 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। लोग जमाखोरी और मुनाफाखोरी से परेशान हैं। पिछले साल तो हालात ऐसे हो गए थे कि लोगों को रोटी के लिए आटा भी नहीं मिल रहा था। भारत के साथ तो उसके रिश्ते खराब ही रहे हैं लेकिन अब अफगानिस्तान और ईरान के साथ भी उसके रिश्ते कड़वाहट भरे हो चुके हैं। खैबर पख्तूनख्वा और ब्लूचिस्तान में तालिबानी ताकतें पाकिस्तान के सुरक्षा बलों पर हमले कर रही हैं। जब से पाकिस्तान ने अवैध रूप से पाकिस्तान में आए अफगानिस्तानियों को वापिस भेजना शुरू किया है तब से सीमा पर पाकिस्तानी सैनिकों और तालिबानियों के बीच संघर्ष होना शुरू गया है। पाकिस्तान के पास अपने लोगों के लिए भोजन नहीं है तो वह लाखों अफगानियों को कहां से खाना खिलाएगा।
पिछले दिनों ईरान ने पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक की थी क्योंकि पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी ईरान पर हमले कर रहे थे। अब पाकिस्तान ईरान के सामने भी मिमिया रहा है कि बातचीत से मसला सुलझाएंगे। पाकिस्तान का संकट कोई किसी दूसरे देश ने पैदा नहीं किया बल्कि यह संकट भ्रष्ट हुकमरानों और आतंकवाद की खेती करने को राष्ट्रीय नीति बनाने का ही परिणाम है। पाकिस्तान में अस्थिरता का दौर ही चल रहा है। काश उसने आतंकवाद पर धन खर्च करने की बजाय गरीबी और अशिक्षा दूर करने के लिए धन का इस्तेमाल किया होता तो हालात कुछ और होते। पाकिस्तान में चुनावों के बाद नई सरकार बनेगी लेकिन इस बात की उम्मीद कम ही है कि पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन की दुकानें बंद होंगी और लोकतंत्र जनता की समस्याओं को दूर करेगा, इसलिए पाकिस्तान के चुनाव केवल एक नौटंकी ही हैं। चाहे सत्ता में नवाज शरीफ सरकार आ जाए, रहेगी वह भी सेना के बूटों के नीचे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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