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सुशान्त मामले पर राजनीति?

फिल्म अभिनेता सुशान्त सिंह राजपूत की आत्महत्या को लेकर जिस तरह राजनीति गरमा रही है और दो राज्यों बिहार व महाराष्ट्र की सरकारें आमने-सामने आ रही हैं उसे देख कर लगता है कि इस मामले को इस प्रकार लम्बा खींचा जा रहा है जिससे बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों में यह एक मुद्दा बन सके।

फिल्म अभिनेता सुशान्त सिंह राजपूत की आत्महत्या को लेकर जिस तरह राजनीति गरमा रही है और दो राज्यों बिहार व महाराष्ट्र की सरकारें आमने-सामने आ रही हैं उसे देख कर लगता है कि इस मामले को इस प्रकार लम्बा खींचा जा रहा है जिससे बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों में यह एक मुद्दा बन सके। सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बिहार में राजनीति के लिए और कोई मुद्दा नहीं बचा है? मगर सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि सुशान्त की आत्महत्या को राष्ट्रीय समस्या उस समय बनाने की कोशिश की जा रही है जब रोज सैकड़ों की संख्या में भारतवासी कोरोना महामारी की वजह से मर रहे हैं। 
सुशान्त ने आत्महत्या की अथवा यह कथित साजिशन हत्या थी? यह पूरी तरह एक आपराधिक मामला है जिसकी जांच उस इलाके की पुलिस कर सकती है और यदि हालात इतने रहस्यमय हों कि पुलिस की सामान्य जांच मे शातिर दिमाग अपराधी की चालें न आ सकें तो मामला सीबीआई को सौंप कर न्याय की उम्मीद की जा सकती है।
अपराध विज्ञान का यह परखा हुआ सिद्धान्त है जो समय की कसौटी पर खरा उतरता रहा है परन्तु सुशान्त के मामले में उसकी प्रेमिका रिया चक्रवर्ती के होने से समूचे प्रकरण को इलैक्ट्रानिक मीडिया चटखारे लेकर रहस्यों की परतों में डाल कर जिस तरह पेश कर रहा है उससे यही आभास होता है कि इस देश के करोड़ों दर्शकों को मूर्ख समझा जा रहा है, विशेषकर बिहार की राजनीतिक रूप से सजग जनता को। कितना अजीब संयोग है कि अभी कुछ दिनों पहले ही बीते समय की प्रख्यात फिल्म तारिका ‘कुमकुम’ का 84 वर्ष की आयु में निधन हुआ और उनके बारे में यही न्यूज चैनल गूंगे-बहरे हो गये। कुमकुम भी बिहार की ही रहने वाली थीं।
एक जमाना वह भी था जब किसी फिल्म में उनकी मौजूदगी उसकी सफलता की गारंटी होती थी। फिल्म जगत को भी देखिये कि उनके निधन पर किसी मौजिज हस्ती के मुंह से दो लफ्ज तक नहीं फूटे। इसे हम संवेदनहीनता भी कह सकते हैं।
कोरोना संक्रमण फैलने पर लाॅकडाऊन लागू होने पर देश के बड़े-बड़े शहरों से अपने गांवों को लौटने के लिए बिहारी मजदूर जब अपनी जान कभी सड़कों पर और कभी आत्महत्या करके गंवा रहे थे तो उसमें किसकी साजिश थी? लेकिन  हमने इन्हें सामान्य घटनाएं माना मगर क्या वास्तव में क्या ये ‘मृत्युगान’ सामान्य घटनाएं थीं?  इसका जवाब हमें हमारी अन्तर आत्मा ही बखूबी दे देगी। इन मजदूरों की तरफ से भी बिहार के मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार से रोज दरख्वास्त की जा रही थी कि वे उनके बिहार वापस आने की सहूलियत पैदा करें मगर नीतीश बाबू फरमा रहे थे कि ‘जो जहां है वहीं रुका रहे उसके खाने-पीने का बन्दोबस्त वहीं की राज्य सरकार करेगी।’
यही बिहार की पुलिस है जिसकी नाक के नीचे न जाने कितने गंभीर अपराध रोज होते हैं। सरेआम हत्याएं होती हैं, आत्महत्याओं की अनगिनत फेहरिस्त है मगर किसी भी मामले की जांच करने की इसको फुर्सत नहीं होती क्योंकि ‘गरीब-गुरबा तो ये सब करता ही रहता है’ मगर एक करोड़पति के बेटे और उस पर फिल्म अभिनेता रहे सुशान्त राजपूत की आत्महत्या की जांच करने के लिए यह मूंछों पर ताव देकर मुम्बई में जांच करने तब जा रही है जब मुम्बई की पुलिस इस मामले की पहले से ही जांच कर रही है।
वाजिब सवाल है कि एक मामले की जांच दो-दो राज्य की पुलिस को करने की क्या आवश्यकता पड़ रही है? पुलिस का सामान्य नियम है कि जिस इलाके में अपराध हुआ है उसकी जांच भी उसी इलाके की पुलिस करती है मगर महाराष्ट्र पुलिस सुशान्त की मृत्यु को प्रथम दृष्टता आत्महत्या मान चुकी है।
जबकि सुशान्त के पिता ने अपने पुत्र की कथित हत्या की एफआईआर पटना के एक थाने में दर्ज करा दी है जिसकी तहकीकात बिहार पुलिस कर रही है। इस बारे में जांच करने का हक बिहार पुलिस को है मगर रिया चक्रवर्ती ने बिहार पुलिस की मंशा पर शक जाहिर करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर रखी है जिस पर पहली सुनवाई संभवतः मंगलवार को होनी है मगर जिस तरह सुशान्त राजपूत की करोड़ों की रकम का मालिक होने का पता चला है, उससे यह अन्दाजा लगाया जा सकता है कि वह फिल्मी दुनिया में इसके तर्ज-ओ-तेवर देख कर ही अपना भविष्य बना रहा था और अपनी प्रेमिका रिया के साथ सुख-दुख बांट रहा होगा।
इसमें हैरत की कोई बात नहीं है कि प्रेमिका अपने प्रेमी की रकम पर मौज उड़ाने को कोई गलत या अनैतिक कार्य नहीं समझती। यह चलन फिल्मी दुनिया से बाहर का भी है और आजकल तो ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने के चलन ने प्रेमी-प्रेमिका के बीच की सभी दुनियावी दूरियां समाप्त कर डाली हैं मगर पूरे मामले में सबसे दीगर सवाल यह है कि सुशान्त के मामले को लेकर बिहार सरकार और महाराष्ट्र सरकार आपस में क्यों उलझ रही हैं और सुशान्त व रिया के बीच पैसे के लेने-देन को लेकर ‘बंगाल का काला जादू’ तक आ रहा है।
वास्तव में यह बंगाली संस्कृति का अपमान है जिसका प्रचार इलैक्ट्रानिक मीडिया ने बिना किसी गंभीर विचार के कर डाला है। फिल्मी जगत का जीवन कितने विरोधाभासों से भरा रहता है इसका उदाहरण प्रख्यात फिल्म निर्माता, निर्देशक व अभिनेता स्व. गुरुदत्त थे जिन्होंने बाकायदा नींद की गोलियां खाकर आत्महत्या की थी। अभिनेत्री परवीन बाबी की कहानी हो या विम्मी की कहानी हो सभी गम की परतों  में लिपटी दास्तान हैं।
बेहतर हो कि सुशान्त के मामले में राजनीति बन्द की जाये और इसे आपराधिक विशेषज्ञों को सौंप दिया जाये।  इसमें बिहारी अस्मिता जैसी कोई चीज नहीं है क्योंकि बिहार की अस्मिता उन बाढ़ग्रस्त गांवों में निवास करती है जहां आज भी लोग खाने-पीने को तरस रहे हैं और मर तक रहे हैं। बिहार की अस्मिता इस प्रदेश की खंड-खंड जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था में निवास करती है जहां के अस्पतालों में मरीजों के साथ-साथ जानवर भी रहते हैं।
-आदित्य नारायण चोपड़ा

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