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दुर्लभ मूर्तियों की चोरी!

भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत इतनी समृद्ध है कि जो भी आक्रांता आया उसने न केवल भारत की धन दौलत को लूटा बल्कि यहां की धा​र्मिक और सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत इतनी समृद्ध है कि जो भी आक्रांता आया उसने न केवल भारत की धन दौलत को लूटा बल्कि यहां की धा​र्मिक और सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। गजनी, बाबर और अन्य मुस्लिम हमलावरों ने भारत को हर तरह से काफी क्षति पहुंचाई। अंग्रेजी शासन में भी जमकर भारत को लूटा गया। अंग्रेजों ने भारत की धन दौलत से अपने देश का खजाना ही भरा। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी हर साल भारत की प्राचीन मूर्तियों और कलाकृतियों की चोरी होती गई और तस्करी से यह मूर्तियां विदेशों में पहुंच जाती हैं। इनमें से कई बहुत ज्यादा भारी और मूल्यवान होती हैं। आंकड़े बताते रहे हैं कि हर दशक में कम से कम दस हजार बहुमूल्य कृतियां भारत से तस्करी की जाती हैं। कौन कहता है कि भारतीय पुलिस काम नहीं करती। दुर्भाग्यवश भारतीय पुलिस की छवि ऐसी बन चुकी है कि उसका रवैया आज भी अंग्रेजी शासनकाल जैसा है। नकारात्मक छवि के बावजूद भारतीय पुलिस के खाते में बहुत सारी उपलब्धियां जुड़ी हुई हैं जिसको नजरअंदाज किया जाता है। तमिलनाडु पुलिस के सीआईडी विभाग की मूर्ति शाखा ने 60 वर्ष पूर्व चोरी की गई बेशकीमती मूर्ति को अमेरिका के म्यूजियम में होने का पता लगा लिया है। उसने देवी पार्वती की एक मूर्ति का पता लगाया है, जो 1971 में एक मंदिर से चोरी हो गई थी। यह मूर्ति न्यूयार्क के बोनहम्सो नीलामी हाऊस में मिली। 
देवी पार्वती की मूर्ति पांच मूर्तियों का हिस्सा थी, जिन्हें कुम्भकोणम के नंदनपुरेश्वर सिवन मंदिर से चुरा लिया गया था। तमिलनाडु पुलिस ने अब यूनेस्को के विश्व विरासत सम्मेलन के तहत इसे भारत वापिस लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। मंदिर के ट्रस्टी के. वासु ने एक एफआईआर दर्ज कराई थी और कहा था कि उन्होंने 1971 में जिन मूर्तियों को मंदिर में देखा था वो अब वहां नहीं हैं, तब जाकर पुलिस ने पहला केस दर्ज किया था। मूर्ति को खोजने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। तमिलनाडु की पुलिस ने एक पुरातत्वविद की मदद मांगी जिन्होंने जांच के बाद बताया कि पार्वती की मूर्ति की तस्वीर जो फ्रैंच इंस्टीट्यूट ऑफ पांडेचरी में रखी गई थी और जो बोनहम्सो नीलामी हाऊस में थी, वो एक ही है। इसका मतलब यही है कि बोनहम्सो में रखी गई पार्वती की मूर्ति कुम्भकोणम मंदिर से गायब मूर्ति ही है। इस तरह तमिलनाडु पुलिस ने कई अन्य मूर्तियों का भी पता लगाया। देवी पार्वती की मूर्ति बारहवीं सदी के चोल शासन में बनी थी। इस मूर्ति की कीमत 1,68,26,143 है। आमतौर पर देवी पार्वती या उमा माता को दक्षिण भारत में खड़ा दिखाया जाता है जिसमें कि ताज पहना होता है। चोल कालीन मंदिरों का निर्माण चोल साम्राज्य के महान राजाओं द्वारा किया गया था। यह मंदिर सम्पूूर्ण दक्षिण भारत के अलावा भारत के पड़ोसी द्वीपों पर भी फैले हुए हैं। तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर को 1987 में जबकि दारासुरम मंदिर और चोलपुरम मंदिर को 2004 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया था। चोल राजाओं के मंदिर वास्तु कला और हस्तशिल्प का उत्कृष्ट नमूना है।
भारत में यह राजवंश हमेशा से ही अपने यश वैभव और सेना के चलते इतिहासकारों के बीच आकर्षण का केन्द्र रहा।  चोलवंश के शासन में मूर्तिकला अपने वैभव पर रही। इसलिए यह मूर्तियां चोरों और तस्करों के आकर्षण का केन्द्र बिन्दु रही हैं। तमिलनाडु पुलिस ने जिस कौशल से भारत की प्राचीन धरोहरों का पता लगाया है इसके लिए वह सराहना की पात्र है। अब तक ऐसी कलाकृतियां अमेरिका, आस्ट्रेलिया, फ्रांस और जर्मनी से देश में वापिस लाई गई हैं। राजस्थान से वर्ष 1998 में चोरी हुई और तस्करी के जरिये ब्रिटेन पहुंची शिव भगवान की प्रतिमा भारत लाई जा चुकी है। कुम्भकोणम से चुराई गई मूर्तियों की जगह नकली मूर्तियां रख दी गई थीं। प्रथम दृष्टि में असली और नकली मूर्तियों में कोई ज्यादा अंतर नहीं लगता था। अधिकतर मूर्तियां समुद्र के रास्ते से स्मगल होती हैं। भारी मूर्तियों को तब कस्टम से बचाते हुए लाया जाता है और कहीं पकड़ाई में आ भी गए तो उन्हें पीतल की बगीचे में सजाने वाली मूर्तियां बताया जाता है। इसके लिए भारी रिश्वत भी दी जाती है। समुद्री रास्ते से एक देश से दूसरे देश पहुंचने के बाद काला बाजार में उन्हें भारी कीमत पर बेचा जाता है। जहां से तस्करों का ही सफेदपोश गिरोह मूर्तियों को विदेशी रईसों को और ऊंची कीमत पर बेच देता है। इसके बाद भी ये कीमत मूर्ति की असल कीमत से काफी कम होती है। तस्करी की हुई मूर्तियों का कोई लीगल डाॅक्युुमेंट नहीं होता है कि वो किस धातु से बनी हैं, कहां से हैं, किस काल की हैं या किस कलाकार की हैं। ये सारी जानकारी सिर्फ तस्कर के पास होती है, जो जानकारी निजी संग्रहकर्ताओं से छिपाई जाती है ताकि वे बेझि​झक मूर्ति खरीद सकें।
वैसे तो देश में एंटीक चीजों की चोरी रोकने के लिए 1972 से कानून बना हुआ है। इसके तहत धातु से बनी मूर्तियां, पत्थरों से बनी मूर्तियां या दूसरी तरह से आर्ट वर्क, पेंटिंग्स आभूषण, लकड़ी पर नक्काशी, कपड़े पर कलाकृति के साथ-साथ सैंकड़ों साल पुरानी पांडुलिपियों को तस्करी से बचाना शामिल है। अगर कोई तस्करी करता है या चोरी करता है तो उसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान भी है, लेकिन तस्करों का नेटवर्क इतना बड़ा है कि भ्रष्ट तंत्र के चलते उसे कोई भेद नहीं पा रहा। यही वजह है कि हर साल अरबों-खरबों कीमत की कलाकृतियां दूसरे देशों में जा रही हैं। एक बड़ा कारण यह भी है कि भारत ने अपने ही आर्टवर्क का सही तरीके से लेखा-जोखा नहीं रखा है। राज्य सरकारें भी एंटीक चीजों को खास महत्व नहीं देतीं। समुद्री सीमाओं की निगरानी न होना भी बड़ा कारण है। कलिंगा नार्थन कृष्ण की मूर्ति सानफ्रांसिस्को स्थित एशियन आर्ट म्यूजियम में मिली है, जबकि विष्णु की मूर्ति टेक्सास के किमबेल आर्ट म्यूजियम में मिली है। तमिलनाडु पुलिस ने इन मूर्तियों की वापसी के लिए अमेरिका में कागजात जमा करा दिए हैं। तमिलनाडु पुलिस के  चलते भारत की प्राचीन ​विरासत भारत आ रही है, जिसकी सराहना की जानी चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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