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फुटबाल मैदान पर क्रान्ति !

इस बार कतर में हो रहे फीफा विश्व फुटबाल कप प्रतिस्पर्धा में जिस प्रकार की राजनीति का इजहार हो रहा है वह कई मायनों में अनूठा है….

विश्व के खेल मैदानों में राजनीति होना कोई नई बात नहीं है। मगर इस बार कतर में हो रहे फीफा विश्व फुटबाल कप प्रतिस्पर्धा में जिस प्रकार की राजनीति का इजहार हो रहा है वह कई मायनों में अनूठा है, विशेष कर ईरान की आन्तरिक राजनैतिक परिस्थितियों के बारे में इस देश के फुटबाल खिलाडियों ने जिस प्रकार विश्व का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है वह निश्चित रूप से प्रशंसनीय कदम है और पूरे विश्व की स्वतन्त्रता व लोकतन्त्र प्रेमी जनता के लिए अनुकरणीय है। लेकिन दूसरी तरफ जिस तरह कतर सरकार ने भारत के घोषित मुजरिम जाकिर नायक को फीफा मैचों के दौरान अपने देश आने का निमन्त्रण दिया है और उसने यह कहा है कि इस्लाम की मान्यताओं के अनुसार फुटबाल ‘हराम’ है, पूर्णतः निन्दनीय और खेल विरोधी है। परन्तु जाकिर नायक के कथन को महत्व देना विश्व की मुस्लिम जनता का ही घनघोर अपमान है क्योंकि दुनिया के डेढ़ अरब से ज्यादा मुस्लिमों का फुटबाल खेल के प्रति अगाध प्रेम जगजाहिर है।
भारतीय उपमहाद्वीप के सभी देशों के मुसलमानों समेत पूरी दुनिया के मुसलमान फुटबाल को एक स्फूर्तिदायक खेल मानते हैं और इसमें मजहब को नहीं लाते। अतः जाकिर नायक जैसे भारत द्वारा घोषित आतंकी के विचारों पर ध्यान देना किसी शैतान को याद करने जैसा ही माना जायेगा। परन्तु मुस्लिम राष्ट्र ईरान के फुटबाल खिलाडि़यों ने जो साहस व देश प्रेम दिखाया है वह पूरी दुनिया में मानवीय अधिकारों के लिए संघर्ष करने का अभूतपूर्व जज्बा है जिसकी कद्र हर आजादी पसन्द इंसान को करनी चाहिए। ईरान में महिलाओं के लिए हिजाब पहनने को लेकर जिस तरह कानूनी पाबन्दी लगाई गई है और इसे तोड़ने के ‘जुर्म’ में ईरान की इस्लामी सरकार जिस प्रकार वहां की महिलाओं पर जुल्म ढहा रही है तथा निरपराध लोगों की हत्या तक कर रही है उसका विश्व स्तर पर सक्रिय विरोध करने का समय अब आ चुका है। ईरानी फुटबाल खिलाडियों ने फीफा विश्व कप में अपनी टीम का मैच इंग्लैंड के विरुद्ध होने के अवसर पर अपने देश का राष्ट्रीयगान नहीं गाया और वे इसके बजने पर या तो जमीन की तरफ नीचे या ऊपर देखते रहे। जो भी ईरानी दर्शक थे, उन्होंने भी राष्ट्रगान बजाये जाने के अवसर पर ठंडा रुख अख्तियार किये रखा। वे अपने हाथों में तख्तियां लिये हुए थे जिन पर लिखा हुआ था कि वे अपने देश की महिलाओं के साथ हैं औऱ उनकी निजी स्वतन्त्रता को अपना समर्थन देते हैं। इनमें ऐसी तख्तियां भी थी जिन पर ‘ईरान की आजादी’ जैसे नारे भी लिखे हुए थे। महिलाओं की आजादी के समर्थन में लिखे गये इन नारों से स्पष्ट है कि ईरान के भीतर वहां की सरकार के दमनकारी रवैये के विरुद्ध विद्रोह पनप रहा है और इस देश का आम आदमी अपने राष्ट्र की सरकार की नीतियों के खिलाफ खड़ा हो रहा है।
ईरान में इस्लाम के नाम पर जिस तरह स्त्री के मानवीय अधिकारों का हनन जोर और जुल्म के साथ हो रहा है उसके विरोध में सामान्य ईरानी नागरिक भी अब खुलकर सामने आना चाहता है क्योंकि विगत सितम्बर महीने के शुरू से हिजाब विरोध आन्दोलन के चलते अब तक 348 से अधिक महिलाओं व पुरुषों को जेल में डाल कर मौत के घाट उतार दिया गया है जिनमें 48 किशोर व बच्चे भी हैं। दरअसल ईऱानी फुटबाल खिलाडि़यों ने अपना विरोध प्रकट करने के लिए फुटबाल का मैदान चुन कर सन्देश दिया है कि उनके देश में चल रहा नारी स्वतंत्रता व हिजाब विरोधी आन्दोलन उन मानवीय अधिकारों का आन्दोलन है जिनके प्रति राष्ट्रसंघ समर्पित है। ईरान इस संस्था का सम्मानित सदस्य है। अतः अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उस पर महिलाओं का उत्पीड़न व दमन करने के लिए लानत भेजी जानी चाहिए।
ईरानी टीम के कोच से लेकर खिलाडि़यों के एक वर्ग ने मैच शुरू होने से पहले ही साफ कर दिया था कि वे अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया के समक्ष अपना विरोध प्रकट करने के लिए स्वतन्त्र हैं। इन खिलाड़ियों ने फुटबाल टीम को ईरान की राष्ट्रीय टीम न बताकर उसे इस्लामी रिपब्लिक की टीम कहा जिसका समर्थन ईरानी दर्शकों ने किया। फुटबाल खिलाडि़यों का कहना था कि वे चाहते हैं कि पूरी दुनिया ईरान की आवाज सुने और जाने कि उनके देश की सरकार किस तरह दमनकारी रुख अख्तियार किये हुए है। ईरान में सितम्बर महीने में 22 वर्षीय युवती महसा अमीनी को हिजाब न पहनने के जुर्म में आरैन की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था और पुलिस हिरासत में उसकी मृत्यु हो गई थी। इसके बाद पूरे ईरान में महिलाओं ने हिजाब विरोधी आन्दोलन शुरू किया जिसे आम जनता का समर्थन भी मिला मगर ईरानी पुलिस ने जुल्मों-सितम की इन्तेहा करते हुए आन्दोलनकारियों को पकड़ कर जेलों में ठूंसना शुरू किया और यातनाएं देनी शुरू की जिसमें 348 से ज्यादा की मौतें हो चुकी हैं। कतर आये ईरानी फुटबाल खिलाड़ियों ने अपने मैच के अवसर पर जिस तरह अपने देश की राजनैतिक परिस्थितियां दुनिया के सामने उजागर करने का प्रयास किया है, वह ईरान की सरकार को शर्मसार करने के लिए काफी है। जरूरत इस बात की है कि ईरान सरकार तुरन्त अपनी जनविरोधी नीतियों में सुधार करे और समूची महिला जाति से माफी मांगें वरना ईरान फिर से एक नई क्रान्ति के मुहाने पर खड़ा हो सकता है। यह क्रान्ति ईरान की खोई प्रतिष्ठा और गरिमा को वापस लाने वाली ही कही जायेगी क्योंकि 1979 से पहले ईरान का समाज बहुत वैज्ञानिक सोच वाला और आधुनिक समझा जाता था।
  आदित्य नारायण चोपड़ा

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