इसमें कोई शक नहीं कि हमारा सबसे अच्छा अगर कोई अंतर्राष्ट्रीय दोस्त रहा है तो वह रूस ही है। इतिहास में झांकों या न झांकों हकीकत सबके सामने है। प्रधानमंत्री मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ अपने देश में दोस्ती के पुराने रिश्तों में जिस तरह से मिठास घोली है वह हमारे संबंधों को और भी मजबूत करेगी। लगभग चालीस हजार करोड़ की लागत से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदने का सौदा कोई छोटा नहीं है। सच कहें तो यह देश की बागडोर संभाल रहे मोदी के राजनैतिक जीवन की अब तक की सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत है। लोग एक तीर से दो निशाने लगाते हैं, मोदी ने एक मिसाइल से पांच-पांच निशाने लगाये हैं। पहला मैसेज उन्होंने बड़बोले अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप को दिया जो इस समझौते को लेकर भारत पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाने की धमकी दे रहे थे। दूसरी चेतावनी भारत ने चीन को दे दी कि वह हमारे दुश्मन पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ाकर हमें लपेटने की कोशिश न करे।
तीसरा संदेश पाकिस्तान को गया है कि आतंक के मोर्चे पर अमरीका में बेनकाब होने के बाद हम रूस के साथ भी आगे बढ़ सकते हैं। चौथा संदेश यह गया है कि कोई भी देश जब किसी दूसरे राष्ट्र के साथ अपने रिश्ते स्थापित कर रहा है तो किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए। पांचवां यह कि अपने डिफेंस सिस्टम को मजबूत करना हर किसी का अधिकार है। उसमें कोई बड़ी ताकत किंतु-परंतु नहीं लगा सकती। सच बात तो यह है कि आज नहीं तो कल हमें यह समझौता करना ही था। प्रधानमंत्री मोदी जो पिछले दिनों अपने अंतर्राष्ट्रीय दौरों को लेकर विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस के निशाने पर रहे हैं, को अब जवाब मिल गया है कि अंतर्राष्ट्रीय संबंध बनाने के लिए छोटी और बड़ी ताकतों के साथ रिश्ते बनाना क्यों जरूरी है। दुनिया कितनी ही तरक्की कर ले लेकिन हम नकारात्मकता नहीं छोड़ सकते। भारत और रूस के रिश्तों और खासतौर पर मोदी-पुतिन की इस मुलाकात और 5.2 अरब डालर की एस-400 डिफेंस प्रणाली पर सबकी नजर थी। सही वक्त पर मोदी ने यह करार करके सारी दुनिया को अब संदेश दे दिया है। मोदी कमाल के व्यक्ति हैं और उनका चिंतन इससे भी बड़ा है। इसे कहते हैं सौ सुनार की एक लुहार की।
भारत ने जब चाहा छोटे राष्ट्रों के साथ समझौता किया। डिफेंस मामले हो या अन्य मामले, भारत ने सबको सम्मान दिया लेकिन इस डिफेंस डील को लेकर अमरीका को सबक सिखाना जरूरी था। मोदी ने सकारात्मक पहलू को लिया और अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप से भी रिश्ते स्थापित किये। ट्रंप सही वक्त पर हमारे काम भी आए लेकिन बड़े ही अच्छे तरीके से मोदी ने ट्रंप को संदेश दिया कि अगर आपसे हमारी दोस्ती है और आपने हमारा साथ दिया है तो हम आपके हितों का ध्यान रखेंगे। यह भी तो जरूरी है कि जब हमारे हितों की बारी आयेगी तो अमरीका को भी उसका ध्यान रखना होगा। अमरीका ने शुरूआती संकेत दिए कि अगर भारत ने रूस के साथ यह डील की तो उस पर कई प्रतिबंध लगा दिये जायेंगे। अगर भारत यह धमकी सुनकर समझौते से पीछे हट जाता तो ट्रंप अपनी तानाशाही की धौंस जमाने लगते लेकिन मोदी ने ऐसा नहीं किया और उन्होंने संदेश दिया कि अपना डिफेंस सिस्टम मजबूत बनाना हमारा अपना अधिकार है। इतना ही नहीं अमरीका को यह संदेश भी चला गया है कि आप अपनी मनमर्जियां हम पर थोप नहीं सकते। हम कोई छोटी-मोटी हस्ती नहीं हैं।
पूरे एशिया और दुनिया में भारत का रुतबा है। कल को किससे हथियार खरीदने हैं क्या हम इसके लिए अमरीका से पूछने जायेंगे? आज नहीं तो कल अमरीका को यह जवाब मिलना ही था। ईरान से हमारा तेल का बड़ा मामला है। इसके बावजूद भारत ने स्पष्ट कर दिया कि ईरान से हम तेल लेते रहेंगे। यह भी मोदी की एक बड़ी कूटनीतिक जीत है। अमरीका ने हालांकि आतंकवाद के मामले में मोदी का साथ दिया है और हमारे पड़ोसी पाकिस्तान को आतंक के खात्मे के लिए दी जाने वाली रकम भी रोक दी है। मोदी का यह मानना है कि जब आतंकवाद से निपटने में हम अमरीका के साथ एक हैं तो हमारी सुरक्षा के लिए यहां भी अमरीका को हमारा साथ देना होगा। इस मामले में चीन की दोहरी चाल जैसे सरगना मसूद अजहर को लेकर सबके सामने है।
उसे अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने में सबसे बड़ा अड़ंगा चीन ने ही लगाया है। कभी इसमें चीन को तकनीकी खामी नजर आती है तो कभी वह पाकिस्तान के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों का हवाला देता है लेकिन भारत ने चीन को भी करारा जवाब दिया है। आने वाले दिनों में थोड़े-बहुत विरोध-प्रतिरोध के बाद सब कुछ सामान्य हो जायेगा। तेज तर्रार होते हुए भी ट्रंप दुनिया में मोदी और उनकी कर्त्तव्यपरायणता के बारे में जानते हैं। सही मायनों में हमारी अमरीका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन के साथ भी दोस्ती है, यही रिश्ता हम पाकिस्तान के साथ भी निभाने को तैयार हैं। ईरान-इराक को लेकर भी हमारा स्टैंड सबके सामने है। मोदी ने जो कर दिखाया हम उनकी सोच को और इस डील को सलाम करते हैं। वैल डन मोदी जी।