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विद्यालय अच्छे ‘इंसान’ बनायें

आज मुझे महान कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द की लिखी ‘ईदगाह’ कहानी याद रही है जिसमें छोटा सा लड़का ‘हामिद’ अपनी बूढ़ी दादी के लिए ईद के मेले से ‘चिमटा’ खरीद कर लाता है

आज मुझे महान कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द की लिखी ‘ईदगाह’ कहानी याद रही है जिसमें छोटा सा लड़का ‘हामिद’ अपनी बूढ़ी दादी के लिए ईद के मेले से ‘चिमटा’ खरीद कर लाता है और अपने साथ के बच्चों द्वारा मेले से खरीदे गये ‘खिलौनों’ की तुलना अपने चिमटे से करते हुए उसके ‘गुणों’ का बखान करता है। मैं हैरान हूं कि आज की 21वीं सदी के भारत के मुजफ्फरनगर जिले के एक गांव का मुस्लिम बालक अपने साथ स्कूल में अपने ही साथियों द्वारा किये गये बर्ताव का वर्णन अपने अन्य संगी-साथियों से किस प्रकार कर पायेगा और अपनी अध्यापिका के व्यवहार का चित्रण उसके बालमन में किस तरह अंकित होकर उसके व्यक्तित्व को ढालेगा? स्वतन्त्रता के केवल 75 वर्षों के भीतर ही हमने यह कौन सा भारत बना डाला है जिसके प्राइमरी विद्यालयों में ही नफरत की शिक्षा दी जा रही है। हम कैसे भारत के निर्माण की नींव रख रहे हैं?
किसी भी जीवन्त देश के भविष्य निर्माता उसके बच्चे ही होते हैं और उनकाे संवारने की जिम्मेदारी शिक्षक समाज की होती है। शिक्षक केवल एक छात्र या छात्रा का निर्माण नहीं करता है बल्कि वह पूरे समाज औऱ देश का निर्माण करता है। मगर नफरत केवल निजी गुण या अवगुण नहीं होता बल्कि वह एक विचारधारा होती है। लोकतन्त्र राजनैतिक विचारधाराओं का समागम होता है जिनका अनुसरण विभिन्न राजनैतिक दल करते हैं। राजनीति का धर्म समाज को सुदृढ़ व विकसित औऱ प्रगतिशील बनाना होता है जिससे देश भी इसी दिशा में आगे बढ़ सके। महात्मा गांधी ने अपना जीवन केवल भारत से अंग्रेजों को बाहर निकालने के लिए ही नहीं खपाया बल्कि हिन्दू समाज में जातिगत गैर बराबरी को दूर करने औऱ दलितों के साथ न्यायोचित बराबरी का व्यवहार करने के लिए भी खपाया। उन्होंने हिन्दू-मुसलमान भाईचारे के लिए भी अपना जीवन होम कर दिया जबकि उनके विपरीत मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना ने अपना जीवन हिन्दू-मुसलमानों के बीच नफरत फैलाने के लिए लगा दिया और भारतीयों से दगा करके मुसलमानों के लिए पृथक पाकिस्तान का निर्माण भी अंग्रेजों के साथ साजिश रच कर करा लिया लेकिन अन्त में जीत गांधी की ही हुई क्योंकि उन्होंने जिस भारत का निर्माण किया था उसमें ही रहने वाले मुसलमानों ने भारत के विकास के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने में किसी हिन्दू के मुकाबले कम दिलेरी नहीं दिखाई। इस मुल्क की खुशहाली के लिए उन्होंने भी अपने स्तर पर वह सब कुछ किया जो हिन्दू नागरिक कर सकते थे। भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मुस्लिम नागरिकों की प्रभावी सहभागिता को कोई भी भारतीय नकार नहीं सकता है। जिस पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर जिले की बात हो रही है उसी में वह ‘कैराना’ भी आथा है जो एक समय में भारतीय शास्त्रीय संगीत का बहुत बड़ा केन्द्र हुआ करता था। इस कैराना घराने के उस्ताद वहीद खां से लेकर प. भीमसेन जोशी तक का शास्त्रीय गायन में डंका बजता था। प. उत्तर प्रदेश में ‘त्यागी’भी हिन्दू व मुसलमान दोनों होते हैं।
एेसे वातावरण को समाप्त करने की पहली जिम्मेदारी ‘राज्य’ की ही बनती है। राज्य अर्थात सत्ता केवल संविधान से ही चलती है और संविधान हर हिन्दू-मुसलमान नागरिक को एक समान अधिकार देता है और ताईद करता है कि इसे तोड़ने वाले हर व्यक्ति के खिलाफ बिना उसकी जाति, मजहब या लिंग का ध्यान किये बिना कानूनी कार्रवाई की जायेगी और प्रता​ि​ड़त व्यक्ति के साथ न्याय किया जायेगा परन्तु हम देख चुके हैं कि 2013 में इसी जिले मुजफ्फरनगर में क्या हुआ था औऱ किस प्रकार साम्प्रदायिक हिंसा का नंगा नाच हुआ था और सैकड़ों वर्षों से भाईचारे में रहते आये मुसलमानों और जाटों के बीच गहरी रंजिशें पैदा हो गई थीं। अतः कोशिश यह होनी चाहिए कि नफरत की आग पुनः किसी भी तरह फैलने न पाये और भाईचारा हर कीमत पर कायम रहे। नफरत की बुनियाद पर खड़ी की गई इमारतें भी ताश के पत्तों की तरह उसी तरह ढेर हो जाया करती हैं जिस तरह आज पाकिस्तान की हालत हो रही है। इसलिए जरूरी है कि मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई के लिए इस क्षेत्र के लोग ही आयें और उनकी शिक्षा की अच्छी व्यवस्था करें जिससे मुस्लिम बच्चे निर्भय होकर अपनी पढ़ाई कर सकें और देश के सजग व सुजान नागरिक बन कर इसके विकास में हिस्सेदारी कर सकें। नफरत को केवल इसी तरह समाप्त किया जा सकता है। इसके साथ यह भी जरूरी है कि हम अपने स्कूलों व विद्यालयों को मजहबी आस्थाओं का अड्डा बनने से रोकें। विद्यालय में सभी छात्र केवल इंसान की औलाद के रूप में आयें और मानवता का पाठ सीख कर जायें। मजहबी पढ़ाई के लिए उनके घर ही काफी हैं। हमें विद्यालयों में हिन्दू-मुसलमान नहीं बल्कि अच्छे इंसान और नागरिक बनाने हैं।

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