चीन की निरकुंश युद्धप्रियता और पाकिस्तान के षड्यंत्रों को देखते हुए भारत का सामरिक दृष्टि से आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है। इसके लिए सामरिक दृष्टिकोण का होना भी बहुत जरूरी है। चीन और पाकिस्तान को भारत की क्षमताओं के बारे में स्पष्ट संदेश देना भी जरूरी है। चीन को तो भारत की क्षमताओं का अंदाजा हो ही चुका है क्योंकि एलएसी पर तनावपूर्ण स्थितियों में भारतीय सेना ने चीन के हर घुसपैठ के प्रयास को विफल बनाते हुए उसे मुंहतोड़ जवाब दिया है।
सीमाओं पर बुनियादी सुविधाएं देश की रक्षा का एक अभिन्न अंग हैं, साथ ही रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर होना भी काफी जरूरी है। जहां तक पाकिस्तान का सवाल है, हम उसे लगातार युद्धों में पराजित कर अपनी सैन्य क्षमताओं का प्रमाण दे चुके हैं। देश का नेतृत्व अब भारत को रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की योजना तैयार कर चुका है।
केन्द्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने डिफैंस सैक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति में बदलाव को मंजूरी दे दी है। दरअसल आत्मनिर्भर पैकेज की घोषणा के समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने डिफैंस सैक्टर में आटोमेटिक रूट के तहत एफडीआई की सीमा 47 से बढ़ाकर 74 फीसदी करने का ऐलान किया था। डिफैंस सैक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ाने का फैसला भारत को एफडीआई के लिए आकर्षक गंतव्य बनाने के लिए लिया गया, जिससे भारत में निवेश, रोजगार और विकास का मार्ग प्रशस्त होगा। केन्द्र सरकार कान्ट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरिंग में भी आटोमेटिक रूट के तहत सौ फीसदी एफडीआई की अनुमति पहले ही दे चुकी है।
सरकार देश में ही रक्षा से जुड़े उपकरणों के उत्पादन पर जोर दे रही है, इसका मकसद आयात पर निर्भरता कम करना है। सरकार भारत में बने रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए बजट में अलग से प्रावधान कर रही है। भारत रक्षा उपकरणों का काफी आयात करता है। राफेल जैसे विमान तो हम खरीद ही रहे हैं बल्कि हथियार और उनके कलपुर्जे भी हमें आयात करने पड़ते हैं। जिससे हमारा आयात बिल काफी बढ़ जाता है। अगर हमारे डिफैंस इम्पोर्ट बिल में भारी कटौती होगी तो इसका सीधा लाभ उन भारतीय कम्पनियों को मिलेगा जो भारत को सैन्य सामान की आपूर्ति करेंगी। जिन हथियारों और उनके पुर्जों का हमें आयात करना पड़ रहा है यदि उनकी मैन्यूफैक्चरिंग भारत में हो तो इससे जुड़ी कम्पनियों को फायदा होगा। कोरोना महामारी के संकट से उबरने के लिए यह जरूरी है कि रोजगार के अवसर सृजित किए जाएं। रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता लाने के लिए मेक इन इंडिया पर बल दिया जा रहा है। डिफैंस क्षेत्र में अगर रोजगार के भारी-भरकम अवसर पैदा होते हैं तो काफी हद तक बेरोजगारी संकट पर काबू पाया जा सकता है। सरकार ने आर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के निगमीकरण का फैसला भी लिया हुआ है। दशकों से आयुध कारखानों को सरकारी विभागों की तरह ही चलाया जा रहा था। एक सीमित विजन के कारण देश को नुक्सान तो हुआ ही, साथ ही वहां काम करने वाले मेहनती, अनुभवी और कुशल श्रमिक वर्ग का भी बहुत नुक्सान हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ समय पहले आयुध कारखानों की खस्ता हालत पर चिंता व्यक्त की थी। बहुत लम्बे समय से देश में चीफ आफ डिफैंस स्टाफ की नियुक्ति पर निर्णय नहीं हो पा रहा था। मोदी सरकार ने जनरल बिपिन रावत को चीफ आफ डिफैंस नियुक्त किया। यह निर्णय अपने आप में भारत के आत्मविश्वास का प्रतीक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि उनकी सरकार का प्रयास डिफैंस सैक्टर से जुड़ी सभी बेड़ियों को तोड़ने का है। नई तकनीक भारत में ही विकसित हो और प्राइवेट सैक्टर का इस क्षेत्र में अधिकतम विस्तार हो, इसके लिए सरकार ने कई अहम कदम उठाए हैं। केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी इस समय पूरी तरह मिशन मोड पर हैं।
यूरोप में युद्ध, हिंसा और तबाही के साक्षी रहे पंडित नेहरू ने भारत की सुरक्षा और विदेश नीति को हिंसा और सैन्यीकरण से दूर रखने पर जोर दिया था ताकि आर्थिक तथा लाजिस्टिक संसाधनों का इस्तेमाल विकास के लिए किया जा सके। खतरनाक शीत युद्ध से ग्रस्त दुनिया में पंडित नेहरू की तटस्थता के सिद्धांत की सराहना तो हुई लेकिन 1962 में चीन द्वारा भारत की पीठ में छुरा घोंपने यानी हमला करने से देश की सैन्य शक्ति को मजबूत करने का विचार जोर पकड़ने लगा। लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो 20 महीने के सीमित कार्यकाल में उन्हें सुरक्षा और विदेश नीतियां तय करने का अवसर ही नहीं मिला। 5 अगस्त, 1965 को पाकिस्तान के हमले में उनके सामने धर्म संकट पैदा हो गया था लेकिन उन्होंने इस युद्ध से निपटने का फैसला किया। भारत की सशस्त्र सेनाओं ने पाकिस्तान को पराजित कर दिया। इंदिरा गांधी शासनकाल में पोखरण में परमाणु विस्फोट परीक्षण कर भारत ने सबको चौंका दिया था। घरेलू मोर्चे पर अनेक चुनौतियों के बावजूद भारत ने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को दो-दो मोर्चों पर मात दी थी।
अब परिदृश्य काफी बदल चुका है। पारम्परिक युद्धों का स्वरूप बदल चुका है। चीन और पाकिस्तान से विवाद अब भी खत्म नहीं हुए हैं। देश का नेतृत्व इस समय काफी सशक्त है। उसके सामने सामरिक दृष्टिकोण से काम करने के अवसर भी मौजूद हैं। हमने वह दौर भी देखा-
-तोपें खरीदने में दलाली हो जाती थी।
-पनडुब्बियों की खरीद में कुछ लोगों की ‘खुशहाली’ हो जाती थी।
-ताबूतों में गुरुघंटाली हो जाती थी।
-वीवीआईपी अगस्ता हैलिकाप्टर खरीद में दलाली बंट जाती थी।
अब रक्षा सौदों में पूरी तरह पारदर्शिता बरती जा रही है। एक भी आक्षेप मोदी सरकार पर नहीं लगा है। अगर रक्षा उत्पादन में भारत आत्मनिर्भर होता है तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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