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बाजार हुए गुलजार ले​किन…

दिल्ली के बाजार गुलजार हो चुके हैं। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लगाई गई पाबंदियां लगभग खत्म हो चुकी हैं। दुकानों का समय भी रात दस बजे कर दिया गया है।

दिल्ली के बाजार गुलजार हो चुके हैं। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लगाई गई पाबंदियां लगभग खत्म हो चुकी हैं। दुकानों का समय भी रात दस बजे कर दिया गया है। बाजारों में रात दस बजे तक भी भीड़ देखी गई। मध्यरात्रि तक सड़कों पर भागते वाहन तो दिल्ली की नियति बन चुका है। कोरोना की पहली लहर के बाद लोगों ने सोच लिया था कि कोरोना अब जा चुका है और लोगों ने ‘कोविड भाग गया, कोविड भाग गया’ कहना शुुरू कर दिया लेकिन कोरोना दूसरी लहर बनकर आया। ऐसा कहर बरपाया कि श्मशानों में भी अंतिम संस्कार के लिए जगह भी नसीब नहीं हुई। आक्सीजन का एक-एक सिलैंडर ब्लैक में बिका। पूरा देश आंसुओं की जलधाराओं में डूब गया। कोविड आया-कोविड फिर आया और खतरे की घंटियां बजने लगीं। कोरोना के खौफ से पनपी अनिश्चितताओं के बीच स्कूल बंद कर ​िदए गए। कुछ राज्यों में स्कूल खोले गए तो कुछ राज्यों ने कोविड आचार संहिता की पाजेब पहन कर चुप्पी साध ली। अगर शापिंग मॉल में जाएं तो भीड़ की कोई कमी नहीं। धार्मिक स्थानों पर जाएं तो श्रद्धालुओं की कोई कमी नहीं। पर्यटक स्थलों पर भीड़ में कोई कमी नहीं दिखाई देती।
घनघोर वातावरण में नेताओं के स्वागत में जनसैलाब सारी उपमाएं तोड़ता दिखाई देता है। दूसरी ओर शिक्षा का अस्तित्व हर बार नुक्सान सह रहा है। जनता को भीड़ बनने की आदत है, घर में समारोह हो या त्यौहार या ​िफर विवाह जनता अनियंत्रित व्यवहार करती है। यह समय भीड़ लगाने का हिस्सा बनने का नहीं, बल्कि कोविड की​ शिनाख्त का है। अब सबसे ज्यादा डर यही है कि कहीं कोविड का अंधेरा तीसरी लहर बनकर न आ जाए। केन्द्रीय गृहमंत्रालय के तहत आने वाले एक संस्थान की ओर से गठित विशेषज्ञ समिति​ ने आशंका जताई है कि देश में सितम्बर में कोरोना की तीसरी लहर आएगी और अक्तूबर तक पीक पर पहुंचेगी। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान एनआईडीएम की ओर से ग​ठित विशेषज्ञ स​िमति ने यह भी कहा है कि बच्चों आैर वयस्कों के समान जोखिम होगा क्योंकि बड़ी संख्या में बच्चों के संक्रमित होने की स्थिति में बाल चिकित्सा अस्पताल, डाक्टर और वेंटिलेटर, एम्बुलैंस आदि की उपलब्धता मांग के अनुरूप न होने की आशंका है। महामारी की अगली लहर में प्रतिदिन 5 लाख तक मामले आ सकते हैं। अगर कोरोना के नए वेरिएंट आए तो पीक नवम्बर तक आएगा। दूसरी तरफ कानपुर आईआईटी के वैज्ञानिक का कहना है कि अगर वायरस का नया स्वरूप नहीं आता तो हो सकता है कि तीसरी लहर आए ही नहीं। उन्होंने यह भी कहा है कि अगर लोगों ने सतर्कता बरती तो तीसरी लहर नहीं आएगी।
इन परस्पर विरोधी आशंकाओं के बीच सबसे परेशान अभिभावक हैं। दिल्ली में स्कूल खोलने पर ​िवचार किया जा रहा है। लोगों की राय ली जा रही है लेकिन अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने को तैयार नहीं। जिन राज्यों में स्कूल खुले हैं वहां अभिभावकों से स्वीकृति पत्र लिए जा रहे हैं। स्वीकृति पत्र लिए जाने का अर्थ यही है कि स्कूल किसी भी बच्चे की गारंटी लेने को तैयार नहीं। अब सवाल यह है कि अभिभावक करें तो क्या करें। अब घर बैठे छात्रों काे स्कूल की सीढ़ियां चढ़ने के लिए जिज्ञासा काफी बढ़ चुकी है। नोबल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने महामारी के बीच खोलने को लेकर कहा है कि महामारी के बीच स्कूलों को फिर से खोलने के मुद्दे का तत्काल कोई समाधान नहीं है। स्कूलों के बंद रहने से बच्चों को बहुत नुक्सान हो रहा है, लेकिन अगर स्कूल फिर से खुलते हैं तो उनके स्वास्थ्य की चिंताओं को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। वर्तमान परिदृश्य में मूल्यांकन माडल आखिरी चीज नहीं है। हमें यह भी देखना होगा कि क्या मूल्यांकन और वास्तविक शिक्षा के बीच कोई संबंध है। हमें इस मॉडल को विभिन्न पक्षों और पहलुओं से देखना चाहिए। क्योंकि बच्चों के मामले में अभी कोई भी जोखिम नहीं लेना चाहता। किशोरों के लिए टीका आने के बावजूद आशंकाएं खत्म नहीं होंगी। 
अभिभावक तो यह चाहते हैं कि कोरोना की तीसरी लहर को भी देख ​िलया जाए और जब तक बच्चों का टीकाकरण होने के बाद ही स्कूल खोले जाएं। भारत में स्कूल खोलने को लेकर राय अलग-अगल हैं, लेकिन जरूरी नहीं जो बात दिल्ली में लागू हो सकती है वह किसी दूसरे राज्य में लागू नहीं हो सकती हो। स्थिति ऐसी नहीं है कि कोई समाधान बताया जा सके। बाजार, शापिंग मॉल, होटल, रेस्त्रां में जिन्दगी गुलजार तो हो गई लेकिन स्कूल कब गुलजार होंगे, कोई कुछ नहीं कह सकता।

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