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आया चुनावी यात्राओं का मौसम

भारत अब पूरी तरह चुनावी मुद्रा में आ चुका है। दिसम्बर महीने तक पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना व मिजोरम में संभवतः चुनाव आ जायेंगे और उसके बाद अगले साल के अप्रैल महीने से लोकसभा के चुनाव शुरू हो जायेंगे। इन चुनावों की तैयारी हालांकि दो स्तरों राज्य व देश स्तर पर करने के लिए सत्तारूढ़ भाजपा व विपक्षी पार्टी कांग्रेस व इंडिया गठबन्धन ने करनी शुरू कर दी है। पिछले तीस वर्षों के भीतर देश की राजनीति में जन यात्राओं का प्रचलन जिस तरह बढ़ा है उससे राजनैतिक दलों की चुनावी रणनीति में अन्तर भी देखा जा सकता है। पहले जहां राजनैतिक दल जनसभाओं पर जोर देते थे वहीं अब यात्राओं पर भी बराबर का जोर देने लगे हैं। इस परंपरा को हम लोकतन्त्र को अधिकाधिक लोकमूलक बनाने की दिशा में भी कह सकते हैं क्योंकि कांग्रेस नेता श्री राहुल गांधी ने अपनी ‘भारत-जोड़ो यात्रा’ से सिद्ध कर दिया कि सीधे जनता के सम्पर्क में आने पर सुप्त जन विमर्शों को भी खड़ा किया जा सकता है। उनकी इस यात्रा की सफलता ने देश के दूसरे राजनैतिक दलों को भी प्रेरित किया है।
वर्तमान में राजनैतिक यात्राएं चुनावी मौसम में करने का प्रतिफल भी तुरन्त ही प्राप्त होता है जिसे देखते हुए केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा पार्टी ने अपनी मोदी सरकार की जन- कल्याणकारी योजनाओं को गांव-गांव तक पहुंचाने की गरज से ‘ग्रामीण संवाद यात्राएं’ शुरू करने का फैसला किया है। ये यात्राएं लोकसभा चुनावों से पहले अक्तूबर या नवम्बर महीने से शुरू की जायेंगी। दूसरी तरफ राजस्थान राज्य के चुनावों के सन्दर्भ में इस राज्य के कांग्रेसी मुख्यमन्त्री श्री अशोक गहलोत पूरे सूबे की तीन हजार किलोमीटर से अधिक की यात्रा ‘मिशन -2030’ के लक्ष्य के साथ लगातार नौ दिन तक करेंगे। गहलोत का लक्ष्य है कि राजस्थान को 2030 तक भारत का नम्बर एक राज्य उनकी सदारत में बना दिया जायेगा। बेशक यह यात्रा राज्य के चुनावों से पहले ही पूरी की जायेगी जिससे उनकी पार्टी कांग्रेस के विभिन्न कार्यक्रमों से जनता भली-भांति परिचित हो सके।
केन्द्र का भी लक्ष्य यही है कि मोदी सरकार ने जो भी योजनाएं चलाई हैं या आम लोगों को सुविधाएं दी हैं उनका गांव-गांव में प्रचार किया जाये और जो लोग इन योजनाओं से वंचित रह गये हैं मगर पात्र बनने के अधिकारी हैं उनका पंजीकरण किया जाये। केन्द्र की योजनाएं लोगों की जरूरतों को देखते हुए बनाई गई हैं। इनमें प्रधानमन्त्री किसान, मुद्रा, जनधन, आवास व विश्वकर्मा योजनाएं प्रमुख हैं। जबकि राजस्थान सरकार की गहलोत यात्रा में जोर इस बात पर होगा कि उनकी सरकार विधानसभा में विभिन्न कानून बनाकर गरीब व दलित और पिछड़े लोगों के हक में कौन-कौन से कानून बनाकर उन्हें जड़ से सशक्त किया है और हमेशा के लिए उनका अधिकार बना दिया है। इन कानूनों के बन जाने से किसी किसान की जमीन बैंक अपना कर्जा वसूल करने के लिए खर्च नहीं कर सकते और हर व्यक्ति का 25 लाख रुपए तक स्वास्थ्य बीमा होगा जिससे वह निजी व सरकारी अस्पतालों में इलाज मुफ्त करा सकता है। वहीं केन्द्र की भी आयुष्मान स्वास्थ्य योजना है जिसमें पांच लाख रुपए तक का बीमा है। गहलोत सरकार ने किसानों की फसलों का बीमा कराने के लिए भी कानून बनाया है जबकि केन्द्र की किसान फसल बीमा योजना भी लागू है।
इसी प्रकार केन्द्र सरकार की ग्रामीण संवाद यात्राओं का लक्ष्य भी मोदी सरकार द्वारा किये गये कार्यों के बारे में आम लोगों को बताना और नये लाभार्थियों का पंजीकरण करना होगा। इसका उद्देश्य भी चुनावी प्रचार ही है। फर्क सिर्फ यह है कि सरकार खुद गांवों में जाकर लोगों को अपने कार्यक्रमों के बारे में बतायेगी। केन्द्र की ग्रामीण संवाद यात्राएं भारी शान वाली होंगी जिसके लिए 1500 रथ तैयार किये जायेंगे जो जीपीएस प्रणाली से लैस होंगे और इनकी निगरानी ड्रोन भी करते चलेंगे। ये रथ कुल ढाई लाख ग्राम पंचायतों में जायेंगे। ये यात्राएं कम से कम दो महीने तक चलेंगी। जाहिर है कि राजनैतिक दल ऐसी यात्राओं का आयोजन चुनावों में तुरन्त लाभ कमाने की दृष्टि से ही करती हैं परन्तु इसका लाभ आम जनता के राजनैतिक रूप से सजग होने में भी होता है। यह सवाल भी अक्सर जनता के बीच राजनैतिक दल उठाते रहते हैं कि लोकतन्त्र में गरीबों या आम आदमी को सुविधाएं शासन की कृपा से नहीं मिलतीं बल्कि कानून बनाकर उन्हें देने से हमेशा के लिए मिलती हैं क्योंकि इस व्यवस्था में आम आदमी की भागीदारी शासन में होती है। इसी वजह से लोकतन्त्र में बनी सरकार को जनता की भागीदारी से बनी सरकार कहा जाता है। देश में राजनैतिक दलों की सरकारें अदल-बदल सकती हैं मगर जनता को मिले कानूनी अधिकार नहीं बदलने का साहस कोई भी राजनैतिक दल नहीं कर सकता।

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