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शादियों का सीजन है जनाब…परन्तु

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नवम्बर से शुरू हुआ शादियों का सीजन अब अपनी चरम सीमा पर है। इस समय शादियां तो हर साल होती हैं क्योंकि हमारे हिन्दोस्तान में इस समय में शादियां बड़ी शुभ मानी जाती हैं और अक्सर कहा जाता है सावा भारी है। बड़े-बड़े घरानों से लेकर आम और गरीब व्यक्ति के घर भी शादियां होती हैं परन्तु यह साल तो खास था। बड़े-बड़े एक्टर और नामी-गिरामी व्यक्तियों की शादियां थीं। अनुष्का शर्मा-विराट कोहली, प्रियंका चोपड़ा-निक जोनस, रणवीर सिंह-दीपिका पादुकोण, अम्बानी की बेटी, दिल्ली में मुकेश गुप्ता की, के.के. अग्रवाल की बेटी विग और साहनी परिवार समालखा के एमएलए के बेटे-बेटी की शादी। किस-किसका नाम लूं, बस सिर्फ इतना ही कह सकती हूं कि इस बार हम एक भी शादी नहीं अटैंड कर सके। चाहे वो किसी सैलिब्रेटी की थी या आम व्यक्ति की परन्तु हमने उन्हें अपनी शुभकामनाएं दिल से दी हैं क्योंकि शादी दो लोगों आैर दो परिवारों का मिलन होता है।

जितनी भी शुभकामनाएं दी जाएं कम हैं क्योंकि बड़े-बड़े लोगों की शादियां बड़ी हो जाती हैं क्योंकि जानने वाले लोग बहुत अधिक होते हैं, किसको बुलाएं, किसको न बुलाएं का चक्कर, फिर होता है कि शादी का मामला है सबको खुश रखकर दुआएं लेनी चाहिएं आैर खासकर के लड़के की शादी हो तो रूठों को भी मना लिया जाता है और लड़की की शादी हो तो रूठे हुए खुद चलकर आ जाते हैं, चलो भई लड़की की शादी है। पहले जमाने में शादियां होती थीं तो टैंट वाले और हलवाई की चांदी होती थी। अब तो थीम पार्टी, डिजाइनर, फ्लावर डैकोरेटर, लाइटिंग, कोरियोग्राफी, स्टाइलिस्ट मेकअप आर्टिस्ट, गिफ्ट रैपिंग, सिंगर, मेहंदी लगाने वाले, ज्वैलर, कार्ड बनाने वालों की चांदी है जिससे खर्चों के साथ लोगों के लिए रोजगार भी बढ़ा। पहले शादियों में शिक्षा दी जाती थी, सेहरे पढ़े जाते थे और बातों में लड़की को अच्छे संस्कार और लड़के को भी बता दिया जाता था कि तेरे सेहरे पढ़ने तेरी मामियां, बुआ, ताई, चाची, बहनें, मां, पिता कितनी चाहत रखते हैं इसलिए लड़की के आने पर इस सेहरे की लाज रखनी है। लड़की लाने पर तुमने इनको नहीं भूलना। अब उनकी जगह डीजे या सिंगर ने ले ली है। कुल मिलाकर संस्कारों की शादियों से दिखावे की शादियां हो गईं। पहले बारात आती थी, लड़की वाले भागते थे, दुल्हन-दूल्हे की स्पेशल जगह होती थी, अब सबको अपने कपड़े, अपनी ज्वैलरी की फिक्र है।

जितनी आर्टिफि​िशयल शादियां आैर खर्च वाली शादियां हो रही हैं उतनी टूट भी रही हैं। अभी की सुप्रीम कोर्ट ने लोगों को इस संस्कृति से बचने, शादियों में अंधाधुंध खर्च और खाने की हो रही वेस्टेज के अलावा दिखावे पर सख्त टिप्पणियां की थीं परन्तु असर कम नजर आ रहा है। अभी कि लालाजी (अश्विनी जी के दादाजी) बहुत दूरदर्शी और व्यावहारिक थे। उन्होंने 1 रु. आैर 11 बारातियों के साथ शादी की प्रथा चलाई और खुद करके दिखाई। अपने बेटे , पोते की शादी ऐसे ही की। आगे हमने भी उसी परम्परा, प्रथा को कायम रखा। मेरा तो मानना है शादी सिंपल होनी चाहिए, बिना दहेज और रिसैप्शन के होनी चाहिए। सबके आशीर्वाद लेने के लिए और एनाउन्स करने के लिए। सबसे बड़ी बात है कि शादी में चाहे लड़की के मां-बाप हों या लड़के के, बच्चों को संस्कार जरूर दें क्योंकि आजकल जिस तरह से शादियां टूट रही हैं, कहीं न कहीं संस्कारों में कमी आ रही है। एक लड़की आकर सारे घर को तबाह कर देती है।

झूठे इल्जाम शुरू होते हैं। क्योंकि बुजुर्गों का काम करते-करते यह बहुत ही देखने को मिलता है इसलिए आज जरूरत है सिंपल संस्कारों के साथ आैर कुछ इस तरह लिखित रूप से होनी चाहिए जो दिया-लिया है वो दुल्हन आैर दूल्हे की तरफ से 11-11 आदमी साइन करें आैर अगर आपस में मतभेद हों तो उससे पहले वो ही 11 व्यक्ति बैठकर फैसला करें और लड़की का सिर्फ उस जायदाद या प्रोपर्टी पर हक हो जो लड़के ने शादी के बाद अपनी मेहनत से बनाई है। इससे तलाक के मामले भी कम होंगे। लालच वाली शादियां या पैसों के लिए की गई शादियां भी रुकेंगी।

लड़कियां एडजस्ट करने की कोशिश करेंगी, झूठे इल्जाम नहीं लगेंगे। कुुछ लड़के या ससुराल वाले तंग करते हैं उन पर भी लगाम लगेगी। आजकल मैंने मदर-इन-लॉ की मूवमेंट चलाई हुई है। उसके लिए मुझे मालूम है कितने लोग दिल से आ रहे, कितने नाम मात्र के लिए क्योंकि यह रिश्ते आज भौतिकवाद में बिखर गए हैं। जो भी हो अम्बानी बहुत बड़ा परिवार है, उसकी शादी में कुछ परम्पराओं और रीति-रिवाज को बहुत ही बखूबी से निभाया गया जैसे नीता अम्बानी ने ईश्वर पूजा से शादी की रस्म शुरू की, फिर अमिताभ बच्चन ने शिक्षा पढ़ी और फिर अमिताभ बच्चन, अािमर खान और बड़े-बड़े एक्टराें ने लड़के वालों को खाना परोसा और सेवा की जिससे हमारी पुरानी परम्परा ​िक हमने आपको लड़की दी, आप हमारे पूजनीय हो, वाकई यह हमारी परम्परा थी कि लड़के वालों को पूजा जाता था, आदर-सम्मान दिया जाता था, वही  लड़की भी निभाती है। अब कुछ परिवार लड़कियों को यह शिक्षा देते हैं कि तुम बराबर हो, तुम्हारा भी उतना ही  हक है जितना लड़के का। हक तो बता देते हैं कर्त्तव्य नहीं सिखाते, सो जितनी भी माडर्न या लड़कियों को लड़के बनाओ परन्तु रिश्तों की मर्यादा और कर्त्तव्यपालन, संस्कार देने
जरूरी हैं।

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