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राजस्थान का खरा सोना!

कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर जो भी अंधेरा था वह अब पूरी तरह से छंट चुका है और राजस्थान के मुख्यमन्त्री श्री अशोक गहलोत को लेकर जो भी अटकलबाजी थी वह भी समाप्त हो चुकी है।

कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर जो भी अंधेरा था वह अब पूरी तरह से छंट चुका है और राजस्थान के मुख्यमन्त्री श्री अशोक गहलोत को लेकर जो भी अटकलबाजी थी वह भी समाप्त हो चुकी है। पूरे मामले में कांग्रेस हाईकमान ने जो दूरदर्शिता दिखाई है उसका संज्ञान इस वजह से लिया जाना चाहिए क्योंकि श्री गहलोत कांग्रेस के अनुभवी,  प्रतिभावान व निष्ठावान नेता माने जाते हैं। एक मुख्यमन्त्री के रूप में उनका शासन कई उपलब्धियों से भरा हुआ रहा है। श्री गहलोत की सबसे बड़ी उपलब्धि कोरोना काल में राजस्थान के प्रबन्धन की रही है। इससे उनकी जन मूलक प्रशासनिक क्षमता का पता भी लगता है। कोरोना काल में इस महामारी पर नियन्त्रण पाने में पूरे देश में उनका ‘भीलवाड़ा माडल’  एक नजीर बना था जिसकी प्रशंसा चारों तरफ से हुई थी। इसके बाद हाल ही में मवेशियों विशेष कर देशी गायों में चली गंभीर छूत की बीमारी पर भी उनकी सरकार ने जिस तीव्र गति से नियन्त्रण किया और पशु धन की हानि होने से बचाई वह भी उनकी प्रशासनिक क्षमता का एक नमूना कहा जायेगा। 
दरअसल श्री गहलोत कांग्रेस की पुरानी परंपराओं के साथ जीने वाले नेता भी हैं जिसकी वजह से उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से क्षमा याचना की। उनके मुख्यमन्त्री रहते यदि कांग्रेस का विधानमंडल दल पार्टी हाईकमान के निर्देश का पालन करने में असमर्थ रहा तो इसे गहलोत ने अपनी गलती माना क्योंकि वह ही विधानमंडल दल के नेता हैं। ऐसा करके श्री गहलोत ने बड़प्पन का ही परिचय दिया और राजनीति में यह सिद्ध किया कि कोई भी मुख्यमन्त्री अपनी पार्टी से ऊपर नहीं हो सकता क्योंकि यह पार्टी ही होती है जो सत्तारूढ़ होने पर किसी व्यक्ति की राजनैतिक योग्यता देखते हुए उसे विभिन्न पदों से नवाजती है। अतः पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का आसन राजनैतिक प्रशासन व्यवस्था के अन्तर्गत सर्वोच्च माना जाता है। श्री गहलोत ने जब नई दिल्ली में तीन दिन पहले यह घोषणा की थी कि वह पार्टी अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ेंगे तो साथ ही यह भी जोड़ा था कि वह आगे मुख्यमन्त्री रहेंगे या नहीं इसका फैसला श्रीमती सोनिया गांधी करेंगी। पार्टी अध्यक्ष होने के नाते सोनिया जी की जिम्मेदारी बनती थी कि वह राजस्थान के लोगों के हितों को सर्वोपरि रखते हुए अपनी पार्टी के मुख्यमन्त्री का फैसला इस तरह करें जिससे 13 महीने बाद राजस्थान में होने वाले चुनावों में पुनः सत्ता का वरण कांग्रेस पार्टी करे। अतः पार्टी अध्यक्ष का श्री गहलोत में पूर्ण विश्वास बताता है कि एक मुख्यमन्त्री के रूप में वह खरा सोना साबित हुए हैं और राजस्थान की जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए उन्होंने पूर्ण प्रयास किये हैं। किसी राज्य के विकास के लिए राजनैतिक स्थायित्व कितना जरूरी होता है, इसका उदाहरण भी स्वयं राजस्थान रहा है। 
अभी तक इस राज्य के इतिहास में स्व. मोहनलाल सुखाडि़या सबसे लम्बे समय लगभग 17 वर्ष तक मुख्यमन्त्री रहे हैं। उनके शासन में रहते हुए इस राज्य ने चहुंमुखी विकास किया। उनकी लोकप्रियता में भी कहीं कोई कमी इस दौरान नजर नहीं आयी। यह राज्य कई मायनों में अनूठा राज्य है। इस राज्य के मुख्यमन्त्री स्व. सुखाड़िया के बाद 1971 में एक मुसलमान स्व. बरकतुल्लाह खान भी हुए और वह भी अपने अल्पकाल के शासन के दौरान बहुत ही सफल माने गये। परन्तु ये सब नेता कांग्रेस पार्टी के सिद्धान्तों के प्रति पूरी तरह वफादार थे। हालांकि श्री सुखाड़िया 1969 के कांग्रेस विभाजन के दौरान इन्दिरा जी के विरोधी खेमे की कांग्रेस में चले गये थे मगर पार्टी के सिद्धान्तों से समझौता करना उन्होंने कभी गंवारा नहीं किया था। इसके साथ यह भी ध्यान देना जरूरी है कि राजस्थान में कांग्रेस पार्टी में गुटबाजी अन्य राज्यों के मुकाबले में कम से कम रही है परन्तु वर्तमान समय में इसमें इजाफा देखा जा रहा है, जिसे समाप्त करना आलाकमान का ही काम है। 
राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए यह बहुत जरूरी है कि पूरी पार्टी भीतर से एक इकाई नजर आये और मुख्यमन्त्री में इसका पूर्ण विश्वास हो। एेसा न होने पाये जैसा कि पंजाब में हुआ जहां मुख्यमन्त्री के लिए अपनी ही पार्टी के नेता सबसे बड़े विरोधी दल के नेता बन गये थे। मगर श्री गहलोत की क्षमताओं को जो कम करके आंकना चाहते हैं वे मुगालते में हैं। श्री गहलोत की सरकार को अगले वित्त वर्ष का बजट तैयार करना है जिसकी तैयारी उन्होंने अभी से शुरू कर दी है और युवा वर्ग से अपील की है कि वह अपनी अपेक्षाओं के बारे में सीधे मुख्यमन्त्री को लिख कर भेजे  जिससे उन्हें पूरा करने के उपाय आगामी बजट मे  किये जा सकें। राज्य में निवेश बढ़ाने व रोजगार के नये अवसर पैदा करने के लिए भी श्री गहलोत जो कार्य योजनाएं चला रहे हैं, उनकी खूबी यह है कि वह आधारभूत ढांचा सुदृढ़ करके उद्योगपतियों को निमन्त्रित कर रहे हैं कि वे आधुनिक वाणिज्यगत गतिविधियों में राजस्थान को ऊंचे पायदान पर रख कर देखें। यह तो सत्य है कि सर्वाधिक निवेशक राजस्थान मूल के ही होते हैं वरना यह कहावत कैसे बनती कि ‘जहां न जावै गाड़ी-वहां पहुंचे मारवाड़ी’। 

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