पिछले 19 सालों से वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के माध्यम से बहुत से वरिष्ठ नागरिकों की सेवा और उन्हें मस्त-व्यस्त रखने की कोशिश हो रही है। उन्हें डिप्रेशन और इस उम्र के अकेलेपन से दूर रखना, उनको यह एहसास दिलाना कि आप किसी से कम नहीं हो। आप अपनी जिन्दगी को मर्यादा में रहकर, खुलकर जीयो। आप आज के हीरो-हीरोइन, नेता, शायर, गायक, लीडर हो और आने वाली पीढिय़ों के मार्गदर्शक हो और आप अनुभवों के खजाने हो। आप वरिष्ठï नहीं विशिष्टï हो। सच मानों आज के समय में सारे देश में 25 ब्रांचें चल रही हैं। इनसे लाखों में लोग जुड़े हैं। फेसबुक पेज से विदेशों से भी लोग जुड़ते हैं। कुल मिलकर बहुत बड़ा परिवार बन गया है और इन सबके लिए एक प्लेटफार्म है जहां यह अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं और अपने छुपे टैलेंट को दिखाते हैं या यूं कह लो अपनी अधूरी इच्छाओं को पूरा करते हैं और यही नहीं उच्च, मध्यम परिवार के लोगों को तो लाभ हो रहा है, सबसे अधिक जरूरतमंद लोगों को सहायता भी मिल रही। जिसे लोगों से कहकर अडोप्ट करवाते हैं, अडोप्शन का अर्थ घर नहीं लेकर जाना उन्हें अपने घर, अपने बच्चों के साथ रहने के लिए मदद करना। जो अडोप्शन है। 1000 रु, 2000 रु, 3000 रु प्रति एक बुजुर्ग है। कोई 1, 10, 50, 100 बुजुर्ग भी अडोप्ट कर सकता है। यह सारा काम बहुत सफलता पूर्वक चल रहा है, परन्तु फिर इसे करना बहुत मुश्किल है। क्योंकि यह एक सदस्य न रहकर अपने बन जाते हैं। अपने खून के रिश्तों से भी ज्यादा नजदीक हो जाते हैं। जो तुम्हे नि:स्वार्थ प्यार, सम्मान देते हैं। किसी की मैं किरण बेटी हूं, किसी की दीदी हूं, यही नहीं जितने ब्रांच हैड हैं उनके साथ भी सदस्यों को उतना ही लगाव, अटैचमैंट, प्यार हो जाता है। कभी ये कार्ड बनाकर भेजते हैं, कभी फूल, कभी व्हाटसआप पर मैसेज, कभी वाइस मैसेज भेजते हैं, कभी पत्र लिखते हैं, इतना प्यार कि आप सोच भी नहीं सकते। सच मानों तो इनके प्यार और सम्मान ने ही मुझे अश्विनी जी के बाद नार्मल जिन्दगी जीने के लिए तैयार किया, क्योंकि उनके बाद कोरोना और मैं इनको छोड़ नहीं सकती थी। तो इनके लिए बहुत सारे ऑनलाइन प्रोग्राम किये। इनको छोड़ा नहीं बल्कि और जोड़ा।
ऐसे लोगों में से जब कोई ईश्वर को प्यारा हो जाता हैं तो बहुत ही मुश्किल होती है। मन बहुत घबराता और उदास होता है। खाना भी खाने को मन नहीं करता। जब भी कोई खबर आती है, दिल बैठ जाता है। सही में यह काम, यह सेवा बहुत मुश्किल होती जा रही है। बहुत से सदस्य गए हैं तो लग रहा है कि क्या करूं, कैसे दिल को समझाऊं कि यह लोग नहीं रहे खासकर के जो बहुत ही एक्टिव होते हैं वो तो अपके दिलों में कभी न मिटने वाली छाप छोड़ जाते हैं। जैसे नोएडा की पुष्पा भ्याना जी, मि. आर एन पसरीजा, वेद इलावादी और कृष्ण कुमार खन्ना गुजरांवाला टाउन शाखा, राजेन्द्र प्रसाद आर्य रोहिणी शाखा औैर भी बहुत से नाम हैं जो हर ब्रांच हैड को कहा गया था अगर किसी का नाम रह जाता है तो भी वह हमारे दिलों में समाये हुए हैं। कृष्ण कुमार खन्ना जी जो कोरोना के समय अपनी प्यारी सी पत्नी के साथ फेसबुक पेज पर वीडियो में छाये रहे और ईनाम जीतते रहे सबके चहेते बन गए। दोनों पति-पत्नी लोगों को खूब हंसाते और साथ ही रोहिणी के आर्य जी ने भी अपनी सुन्दर पत्नी के साथ ही डांस वीडियो में हिस्सा लिया। उनका डांस क्या करूं राम मुझे बुड्डïा मिल गया। बहुत ही हिट हुआ। मुझे तो यही लगता है कि इन दोनों को शायद नजर ही लग गई यही नहीं नोएडा की भ्याना जी (88) की उम्र में भी बहुत सक्रिय रहती थी और हर फंक्शन में बढ़चढ़कर हिस्सा लेती थी। उनके बेटों और पोतों ने उनकी बहुत सेवा की। उनकी गतिविधियों से बहुत खुश होते थे यहीं नहीं (92)वर्षीय पसरीचा जी जो हमारे साथ सिंगापुर भी गए और ऐसे एक्टिव थे। जैसे कोई 21-22 साल का नवयुवक हो, ऐसे लोगों को हम कैसे भूल सकेंगे। कैसे उनकी यादें हमें रूलाती जैसे राजमाता कमला ठुकराल चली गई हैं परन्तु फिर भी किसी न किसी रूप में हमारे बीच रहती हैं। उन्होंने इतना प्यार दिया कि सगी मां से भी बढ़कर। कदम-कदम पर उनकी यादें जुड़ी हैं। हमारी शीला आंटी जो अपनी कोठी अपने साथियों के लिए दे गई। जहां खुशियां ही खुशियां हैं। यही तो सब चाहते हैं कि उनके जाने के बाद उन्हें याद करें, खुशी से नाम लें। अब उस कोठी में सारे वरिष्ठï नगरिक उनका नाम लेते हैं खुशियां बांटते हैं, डाक्टर बैठते हैं बड़ी जल्दी हम उसमें काउंसलिंग सैंटर खोलने जा रहे हैं। अंत में मैं यही कहूंगी कि- जिन्दगी के सफर में बिछुड़ जाते हैं, वो लोग- वो फिर नहीं आते, यादें ही रह जाती हैं, उनकी अच्छी बाते ही सामने आती रहती हैं। जो मेरे लिए बहुत मुश्किल बनती है। हम सब अच्छी तरह जानते हैं कि जोविधि के विधान है, जो किसी के हाथ में नहीं। रामायण में भी लिखा है जीवन-मरण, लाभ-हानि, यश-अपयश सब विधि हाथ….। द्य