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कब आओगे श्रीकृष्ण

युग पुरुष श्रीकृष्ण ऐसे महामानव थे, जिन पर भारत गर्व अनुभव करता है। वे आदर्श मानव एवं मानवता के आदर्श हैं। मनुष्य महज कैसे बनता है? इसका जवाब सुकरात के शब्दों में इस प्रकार है।

युग पुरुष श्रीकृष्ण ऐसे महामानव थे, जिन पर भारत गर्व अनुभव करता है। वे आदर्श मानव एवं मानवता के आदर्श हैं। मनुष्य महज कैसे बनता है? इसका जवाब सुकरात के शब्दों में इस प्रकार है। मनुष्य ठीक उसी मात्रा में महान बनता है जिस मात्रा में वह मानव मात्र के कल्याण के लिए श्रम करता है। जो व्यक्ति जितना संसार का उपकार करेगा, वह उतना ही महान होगा। दार्शनिकों के अनुसार विकट परिस्थिति आने पर प्रत्येक व्यक्ति उस परिस्थिति से निकलने के​ लिए जूझना चाहता है, परन्तु स्वार्थ अथवा भीरुता के कारण जूझ नहीं पाता। उस समय कोई महापुरुष होता है जो सबकी पीड़ा को अपने हाथ में खींच कर परिस्थिति की विषमता से लड़ने के लिए उठ खड़ा होता है। जब कोई ऐसा महापुरुष आता है तब सबके ​सर उसके समक्ष झुक जाते हैं। महामानव श्रीकृष्ण ऐसे ही थे। मनुष्य अपनी विविध प्रवृतियों से उन्नति के सर्वोच्च सौपान पर पहुंच कर किस प्रकार एक साधारण व्यक्ति से महामानव तथा युवा पुरुष के उच्च पद पर प्रतिष्ठित हो सकता है, इसका श्रेष्ठ उदाहरण श्रीकृष्ण का जीवन है। सभी के मन में एक स्वाभाविक ​िजज्ञासा होती है कि वस्तुतः श्रीकृष्ण कौन हैं, क्या हैं? क्या वे मात्र नंद-यशोदा नंदन अपनी देवकी-वासुदेव नंदन हैं अथवा वे ग्वालों के साथ गाय चराने वाले, गोपियों के घर दही और मक्खन खाने वाले माखन चोर हैं अथवा सामान्य बहरुपियों की भांति कई तरह के वेशधारी जन-जन को लुभाने वाले हैं। 
सवाल यह भी उठता है कि यदि ऐसे ही हैं श्रीकृष्ण तो उनका जीवन, जन्म से निर्वाण तक असंख्य चमत्कारों से कैसे भरा हुआ है। वास्तव में श्रीकृष्ण भारत के​ विभिन्न राज्यों को संगठित कर विराट भारत बनाना चाहते थे। वे एक ऐसे ​िवशाल भारत का निर्माण करना चाहते थे, जिससे किसी का करुण-कुन्दन न सुनाई पड़े, जिससे शोषित दलित और उत्पीड़ित कोई न हो, जिससे विश्व मानवता का प्रेम पुष्पित और पल्लवित हो। वे सनातन धर्ममूलक राज्य की स्थापना करना चाहते थे। उन्होंने साम-दाम-दंड-भेद सभी नीतियों को अपना कर अनेकों विरोधी शक्तियों का दमन किया। अनेक शत्रुओं को अपना मित्र बनाया। श्रीकृष्ण पृथ्वी पर दुष्टों के दमन, सज्जनों की रक्षा और सनातन धर्म तथा विश्व मानवता की प्रतिष्ठा के लिए ही अवतरित हुए थे। धर्म की रक्षा के लिए ही श्रीकृष्ण ने युद्ध के मैदान में खड़े अर्जुन को कहा था-
‘‘हे पार्थ, जो आसुरित सम्पदा के लोग हैं, इनके जीवन में परिवर्तन की अपेक्षा मत रख, गांडीव उठा और संधान कर, नपुंसकता को प्राप्त न हो।’’ 
जो कुछ समाज में आज हो रहा है, वह किसी महाभारत से कम नहीं है। उजले कपड़ों में काले कारनामों का बोलबाला है। सियासतदान हो या नौकरशाह या फिर बड़े व्यापारी उनके घरों से इतने नोट मिल रहे हैं कि मशीनें भी गिनते-गिनते थक जाती हैं। हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। परिवारवाद आैर भाई-भतीजावाद में लोग धृतराष्ट्र बने  हुए हैं। कभी एक द्रौपदी की लाज लुटी थी पर अब तो हर द्रौपदी की लाज लुट रही है। महाभारत के समय एक शकुनि कंधार से भारत आया था, आज अनेक शकुनि पड़ोसी देश से भारत आ रहे हैं। हत्या, लूट, अपराध बढ़ रहे हैं। श्रीकृष्ण स्वयं आ जाएं तो उन्हें महसूस होगा कि जितनी धर्म की हानि आज हो रही है उतनी तो द्वापर युग में भी नहीं थी क्योंकि तब धर्म विरोधी ताकतों के मुकाबले में विदुर जैसे महापुरुष मौजूद थे। आज धर्म के नाम पर मजहबी कट्टरता इतनी ज्यादा फैल गई है कि समाज में आपसी टकराव बढ़ चुका है। मजहबी कट्टरता का विष इस कद्र फैलाया जा चुका है कि उसे कम करने के लिए बहुत ही प्रयास करने होंगे। वस्तुतः समाज को तोड़ना जितना आसान है जोड़ना अत्यंत दुष्कर है। एक बार टूटी हुई वस्तु दोबारा वैसी ही नहीं जुड़ जाती जिस  तरह की वह पहले होती है। यह धर्म का मामला हो या लोगों के दिलों का, दरारों को पाटने के लिए सदियां लग जाती हैं। आज मनों की दूरियां बढ़ी हैं इन्हें पाटने वाला कोई नहीं। समाज का नेतृत्व करने वाले लोग नैतिक मर्यादाओं के प्रति अंधे हो चुके हैं। छल-बल के सहारे अपनी कई पीढ़ियों के ​िलए धन एकत्र करना ही एकमात्र लक्ष्य रह गया है। अमीर आैर गरीब की खाई बढ़ रही है। ऐसे में गरीब आदमी जाए तो जाए कहां। देश की एकता में अनेकता की विशेषता के लिए हमारे पूर्वजों ने बहुमूल्य कुर्बानियां दीं लेकिन अनेकता में एकता महसूस नहीं हो रही।
भगवान आप ने जो युद्ध के मैदान में गीता का संदेश दिया उसे जीवन में कोई नहीं अपना रहा। भगवान आप के पवित्र जन्मदिन पर आप से एक ही प्रश्न पूछना चाहता हूं। 
* भगवान आप को अपना यह एक वचन याद होगा।
* ‘‘जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है तब-तब मैं अपने रूप को रचकर भारत भूमि पर प्रकट होता हूं और धर्म की रक्षा करता हूं।’’
भगवान आप अपने सुदामा जैसे गरीब सखा को नहीं भूले थे तो अपने वचनों को कैसे भूल सकते हो। इस​िलए अपने कथन को एक बार पुनः सच में बदलने की कृपा कीजिए। भगवान आप को एक बार फिर धरती पर अवतार लेना होगा, ताकि आसुरी शक्तियों से धर्म और समाज की रक्षा की जा सके। भगवान आप को आना ही होगा। आज आप के जन्मदिवस पर भारत की महान धरती आप का स्वागत करती है। सभी धर्मप्रेमियों को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बधाई।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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