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किधर जा रहा है काठमांडौ

भारत-नेपाल संबंधों का लम्बा इतिहास रहा है। नेपाल कभी ​हिन्दू राष्ट्र था और देश की जनता अपने राजा को हिन्दू देवी-देवताओं की तरह पूजती थी,

भारत-नेपाल संबंधों का लम्बा इतिहास रहा है। नेपाल कभी ​हिन्दू राष्ट्र था और देश की जनता अपने राजा को हिन्दू देवी-देवताओं की तरह पूजती थी, लेकिन वहां राजशाही के खिलाफ बंदूक की नली से ऐसी क्रांति निकली कि नेपाल में राजशाही समाप्त हो गई और लोकतंत्र के नाम पर जो कुछ हुआ, उससे आज तक नेपाल में राजनीतिक स्थिरता कायम नहीं हाे सकी। आधा अधूरा लोकतंत्र जनता की आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतरा। दक्षिण एशिया का छोटा सा देश अचानक दुनिया की बड़ी ताकतों की खास दिलचस्पी का केन्द्र बन गया। नेपाल की सियासत दो खेमों में बंट गई। एक खेमा चीन समर्थक हो गया और दूसरा खेमा भारत समर्थक। सब जानते हैं कि नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को चीन समर्थक माना जाता है। उनके शासनकाल में उन्होंने नेपाल को चीन के हाथों एक तरह से गिरवी रख दिया था। उनके पद पर रहते चीन का नेपाल की सियासत में हस्तक्षेप काफी बढ़ गया था। काठमांडौ स्थित चीन की महिला राजदूत की सत्ता के गलियारों में सीधी पहुंच थी।
नेपाल की राजनीति ने करवट ली, ओली और माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड में मतभेदों के चलते सत्तारूढ़ पार्टी दो फाड़ हो गई और ओली सरकार गिर गई। नेपाल की सर्वोच्च अदालत के आदेश पर संसद बहाल की गई तथा शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री बने। देउबा भारत के साथ मधुर संबंधों के पक्षधर रहे हैं। अब देउबा एक अप्रैल को भारत की तीन दिवसीय यात्रा पर ​िदल्ली पहुंच रहे हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद देउबा की यह पहली यात्रा है। चार साल पहले केपी शर्मा ओली भी भारत आए थे लेकिन उनके कार्यकाल में भारत से संबंध बहुत खराब दौर में पहुंच गए थे। चीन के इशारे पर ओली ने भारत विरोध को अपनी नीति बनाया और देश में राष्ट्रवाद का ज्वार पैदा कर सत्ता पर पकड़ मजबूत करने की नाकाम कोशिश की। चीन ने ओली और प्रचंड में समझौता कराने की कोशिशें भी कीं लेकिन वह भी​ विफल रहा। देउबा की भारत यात्रा से पहले ही चीन के विदेश मंत्री यांग यी भारत दौर के बाद काठमांडौ पहुंच गए। वांग यी ने नेपाल के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात की दोनों देशों ने 9 समझौता ज्ञापनों पर हल्ताक्षर भी ​िकए। चीन ने नेपाल की वार्षिक सहायता 13 अरब से बढ़ा कर 15 अरब रुपए करने की घोषणा कर फिर से अपना प्रभाव जमाने की कोशिश की। वांग यी की नेपाल यात्रा का उद्देश्य नेपाल की मदद करने की बजाय कोई बड़ा खेल करना है। 
ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि चीन फिर से केपी शर्मा ओली और उनके विरोधी प्रचंड में समझौता कराने पर जुटा हुआ है। चीन की चिंता इस​िलए भी बढ़ गई है क्योंकि देउबा सरकार अमेरिकी संस्था मिले​िनयम चैलेंज कार्पोरेशन से 50 कराेड़ डालर की मदद लेने के लिए संसदीय अनुमोदन कराने में सफल रही है। देउबा की नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन में शा​िमल दो कम्युनिस्ट पार्टियां इसका पुरजोर विरोध कर रही थीं। इसके बाद यूक्रेन संकट के सिलसिले में संयुक्त राष्ट्र में लाए गए प्रस्तावों पर नेपाल सरकार ने अमेरिकी रुख के मुताबिक मतदान किया। 
इससे यह धारणा बनी कि शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाली सरकार अमेरिका की तरफ झुक रही है। इस झुकाव को लेकर चीन में गहरी चिंता पैदा हुई। इसके बाद चीन के विदेश मंत्री वांग यी​ ने नेपाल यात्रा का कार्यक्रम बनाया। देउबा अब भारत आकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य नेताओं से मुलाकात करेंगे। पिछले वर्ष नवम्बर में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में मोदी और देउबा के बीच बातचीत हुई थी। अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि काठमांडौ किस तरफ जा रहा है। नेपाल की सरकार की विदेश नीति संबंधी प्राथमिकताएं विश्लेषकों के लिए गहरे क्यास का मुद्दा बनी हुई है। देउबा यात्रा के दौरान नेपाल के भारत से रिश्ते सुधारने को प्राथमिकता देंगे। दोनों देशों के सर्वोच्च नेतृत्व के बीच सीधे संवाद और सम्पर्क में गतिरोध टूटेगा। भारत के दौर की अहमियत को देखते हुए नेपाली प्रधानमंत्री ​​बिकस्टेक की बैठक में भाग लेने के लिए श्रीलंका की यात्रा को रद्द कर दिया है। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी और देउबा के बीच मुलाकत में चीन और अमेरिका के साथ रिश्तों को लेकर अहम चर्चा होगी। 
भारत पड़ोसी नेपाल में राजनीतिक स्थिरता चाहता है। हर संकट में भारत ने नेपाल की सहायता की है। जबकि चीन श्रीलंका की तरह नेपाल को कर्ज जाल या सब्जबाग दिखाकर उसे अपने पाले में करना चाहता है। हाल ही में एक रिपोर्ट लीक हुई थी जिसमें नेपाल सरकार ने माना था​ कि चीन-नेपाल की जमीन हड़प रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि देउबा के कार्यकाल में नेपाल में चीन का प्रभाव कम हो रहा है। यह भारत के हित में है। भारत नेपाल की प्रभुता का सम्मान करता है। इस​िलए नेपाल को भी संतुलित विदेश नीति अपनानी होगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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