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कौन होगा नया राष्ट्रपति?

भारत के नये राष्ट्रपति के चुनाव के लिए विभिन्न विपक्षी पार्टियां साझा उम्मीदवार खड़ा करने के लिए जो कवायद कर रही हैं उसकी हकीकत यह है कि इनमें अपने-अपने राजनीतिक हितों को साधने की इतनी कशमकश है कि किसी भी उम्मीदवार को अपनी सफलता के बारे में शुरू से ही आशंकित होना स्वाभाविक है।

भारत के नये राष्ट्रपति के चुनाव के लिए विभिन्न विपक्षी पार्टियां साझा उम्मीदवार खड़ा करने के लिए जो कवायद कर रही हैं उसकी हकीकत यह है कि इनमें अपने-अपने राजनीतिक हितों को साधने की इतनी कशमकश है कि किसी भी उम्मीदवार को अपनी सफलता के बारे में शुरू से ही आशंकित होना स्वाभाविक है। दूसरी तरफ भाजपा की तरफ से रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह व भाजपा अध्यक्ष श्री जगत प्रसाद नड्डा विपक्ष व सत्तारूढ़ दल की तरफ से जिस सर्वसम्मत उम्मीदवार की कोशिश कर रहे हैं वह भी निष्फल प्रयास ही रहने वाला है क्योंकि देश की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए विपक्षी दल कभी यह स्वीकार नहीं कर सकते कि राष्ट्रपति के मुद्दे पर वे सत्तारूढ़ दल के समक्ष आत्मसमर्पण कर दें।  अतः यह दीवार पर लिखी हुई इबारत है कि आगामी 18 जुलाई को देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद के लिए होने वाले चुनाव में वोटों की लड़ाई होगी परन्तु इसके साथ यह भी प्रायः निश्चित है कि विजय केन्द्र में सत्तारूढ़ गठबन्धन के प्रत्याशी की ही होगी, बशर्ते अन्तिम समय में कोई चमत्कार ही न हो जाये। राष्ट्रपति के चुनाव मंडल को यदि देखा जाये तो भाजपा गठबन्धन के पक्ष में 48 प्रतिशत स्पष्ट मत हैं और समूची विपक्षी पार्टियों के पक्ष में 52 प्रतिशत मत हैं। मगर इसके बावजूद सत्तारूढ़ दल के परोक्ष समर्थक दल जैसे बीजू जनता दल (ओडिशा), वाई.एस.आर कांग्रेस (आन्ध्र प्रदेश), अकाली दल (पंजाब) तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (तेलंगाना) व उत्तर पूर्व राज्यों के कई क्षेत्रीय दल परंपरानुसार भाजपा के पक्ष में ही जायेंगे।
हालांकि इस बार तेलंगाना राष्ट्रीय समिति के नेता मुख्यमन्त्री के.चन्द्रशेखर भाजपा व कांग्रेस दोनों का ही विरोध करने के नाम पर बहुत उछल-कूद मचा रहे हैं परन्तु उनके सामने विकल्प बहुत सीमित हैं। मगर इस बात की भी प्रबल संभावना है कि तेलंगाना समिति दिल्ली की आम आदमी पार्टी व कुछ अन्य दलों के साथ मिल कर अपना साझा प्रत्याशी घोषित कर दें और फिर उस पर समूचे विपक्ष का समर्थन मांगे। इस तजवीज पर विपक्ष में कितनी सहमति बन सकती है, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा परन्तु फिलहाल विपक्ष इस हकीकत के बावजूद बंटा हुआ लग रहा है कि विगत बुधवार को प. बंगाल की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी की सदारत में कांग्रेस समेत 17 राजनीतिक दलों की बैठक हुई जिसमें राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता श्री शरद पवार को प्रत्याशी बनाने पर सहमति बनी मगर उन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया। अतः हार-फिर कर विपक्ष पुनः उन्हीं गोपाल कृष्ण गांधी की बात करने लगा है जो पिछले राष्ट्रपति चुनाव में बुरी तरह हारे थे। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमन्त्री डा. फारूक अब्दुुल्ला का नाम भी उछाला जा रहा है परन्तु उनके नाम पर इन 17 दलों में भी सहमति बन सकेगी इस पर सन्देह व्यक्त किया जा रहा है। 
दूसरे स्वतन्त्र भारत के इतिहास में पहले 1952 के चुनावों से लेकर आज तक कभी एेसा नहीं हुआ है कि राष्ट्रपति सर्वसम्मत रूप से चुने गये हों। यहां तक कि फिलहाल वक्त में 2012 में जब कांग्रेस की तरफ से स्व. प्रणव मुखर्जी जैसे दूरदृष्टा राजनीतिज्ञ प्रत्याशी बनाया गया था तो उस समय प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा के नेता श्री लालकृष्ण अडवानी ने खुलेआम घोषणा कर दी थी कि प्रणव दा को बिना चुनाव लड़े ही राष्ट्रपति नहीं बनाया जा सकता और भाजपा ने तब स्व. पी.ए. संगमा को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था। चुनावों से पहले ही नतीजा साफ था कि प्रणव दा की विजय निश्चित है क्योंकि उनके समर्थन में सबसे पहले भाजपा गठबन्धन की पार्टी शिवसेना आ गई थी (तब शिवसेना एनडीए का हिस्सा थी) वर्तमान में तो विपक्ष के नाम पर बेशक कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी हो और इसके दो राज्यों में मुख्यमन्त्री भी हों मगर अखिल भारतीय स्तर पर इसकी मत संख्या बड़े क्षेत्रीय दलों के बराबर ही हो चुकी है। संभवतः यही वजह है कि पार्टी ने विपक्षी सांझा उम्मीदवार तय करने के सिलसिले में नेतृत्व नहीं किया है। ममता दी ने इस मामले में पहल करके भी जाहिर कर दिया है कि कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों की जरूरत है। 
वैसे राष्ट्रपति चुनाव राजनीति से परे समझा जाता है क्योंकि किसी भी पार्टी के सदस्य या नेता को चुनाव लड़ने से पहले अपने राजनीतिक दल की सदस्यता त्यागनी होती है। सवाल सत्तारूढ़ दल के समक्ष भी कठिन है कि इस पद पर इस बार किस हस्ती को खड़ा किया जाये जिससे आम जनता में सकारात्मक सन्देश जाये परन्तु पूर्व में हम इस पद पर मिलेजुले व्यक्तित्वों को देख चुके हैं अतः यह मामला राजनीतिक सुविधावाद से भी जुड़ा हुआ है। देखना केवल यह होगा कि इस पद के लिए भाजपा किसी राजनीतिक व्यक्तित्व को चुनती है अथवा अराजनीतिक हस्ती का चुनाव करती है। मगर इसे भी इस सम्बन्ध में ऐसे राजनीतिक दलों से सलाह-मशविरा करना होगा जिनके वोट इसके प्रत्याशी को विजयश्री दिलाएंगे। इनमें सबसे ऊपर नाम बीजू जनता दल के नेता नवीन पटनायक व वाईएसआर कांग्रेस के नेता आन्ध्र के मुख्यमन्त्री जगन रेड्डी का लिया जा रहा है। आगामी 29 जून तक नाम को अतिम रूप देने का समय है अतः देशवासियों को अपने नये राष्ट्रपति पद के प्रत्याशियों का नाम जानने के लिए धैर्य रखना पड़ेगा।

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