अन्तर्राष्ट्रीय एजैंसी ने सैटेलाइट तस्वीरों के माध्यम से दावा किया है कि भारत में कई जगह लैंड सर्फेस तापमान 60 डिग्री सेल्सीयस तक पहुंच चुका है। यह दावा चौंकाने वाला है। यद्यपि भारतीय वैज्ञानिकों ने इस दावे को नकारा है और कहा है कि उपग्रह से तापमान का आकलन भ्रामक हो सकता है। भारतीय वैज्ञानिकों का कहना है कि 60 डिग्री सैल्सियस का मतलब यह है कि बुनियादी ढांचा गलने लगता है जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ। इन्हीं दावों के बीच यह साफ है कि मानव ने जितना प्रकृति को अंगूठा दिखाया है, अब प्रकृति उसे अंगूठा दिखाने लगी है। मानव ने जंगल उजाड़े और कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए। अब बचे-खुचे जंगल मानव के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। 28 से 30 मार्च के बीच देश के जंगलों से 16 हजार 840 अग्नि की घटनाएं दर्ज की गई। इनमें से 211 बड़ी घटनाएं थी।
देश के कई राज्यों में जंगल में आग लगने से हजारों हैक्टेयर का जंगल तबाह हो गया वहीं वन्य संपदा और वन्य जीवों के जीवन पर खतरा मंडराने लगा है। जंगलों से उठी आग की लपटों ने जम्मू, उत्तराखंड, हिमाचल, राजस्थान, गुजरात, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड को आग की तपती भट्ठी बना दिया है। उत्तराखंड और हिमाचल की स्थिति चीड़ की पत्तियों के कारण काफी विकराल है। 70 के दशक में ही पर्वतीय राज्यों में चीड़ उगाने के अभियान ने एक तरह का जंगल राज पैदा कर दिया। चीड़ उगाने की मुहिम में पर्वतीय राज्यों में न केवल चारागाहें छीन ली बल्कि मनुष्य को भी वनों से दूर कर दिया। वनाग्नि से हिमालीय राज्यों में कहर बरप रहा है, जहां तापमान सामान्य से दो से लेकर चार डिग्री तक बढ़ गया है। आप कल्पना कर सकते हैं कि बर्फ का सागर और एशिया की जलवायु के नियंत्रक हिमालय की क्या दशा होगी?
तापमान बढ़ने से जंगलों में सूखे पत्ते और टहनियां ईंधन का काम करती हैं। एक छोटी सी चिंगारी हीट का काम करती है। ऐसे में अगर तेज हवायें चल रही हों तो यह आग पूरे जंगल को तबाह कर देती है। इंसानों की लापरवाही के चलते भी आगजनी की घटनायें बढ़ रही हैं। जम्मू के रियासी जिले के जंगल, हिमाचल के पार्वती घाटी में, राजस्थान के अलवर के सरिस्का टाइगर रिजर्व, उत्तराखंड में बमराडी से लेकर सीमार के जंगलों में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के जंगलों में आग से प्रकृति तबाह हो चुकी है। गर्मियों में तापमान के कहर ढाने के कारणों में ग्लोबल वामिर्जा तो है ही लेकिन भारत में बढ़ते तापमान का कारण वनों का क्षरण भी है। यही कारण है कि देहरादून, मंसूरी, पंतनगर, रुड़की का अधिकतम तापमान 2 से लेकर 4 डिग्री तक अधिक दर्ज किया गया। पिछले दिनों मुक्तेश्वर और मसूरी जैसे ठंडे स्थानों पर न्यूनतम तापमान सामान्य से 4 डिग्री अधिक दर्ज किया गया। वनाग्नि की आंच उत्तराखंड हिमालय के लगभग 14 ग्लेशियरों तक पहुंच रही है।
वन्य जीवन अपने आप में एक दुनिया होता है। वनों में जीवधारियों को पर्याप्त भोजन के साथ-साथ सुरक्षित आश्रय भी मिल जाता है इसलिए वन सभी तरह के जीवधारियों का प्राकृतिक आवास होते हैं। तमाम वनस्पतियां और वन्य जीव एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। अब हालात यह है कि जंगलों की आग वनस्पति और वन्य जीवों का अस्तित्व राख में बदल रही है। बाघ और हिरन जैसे वन्य जीवन तो जान बचाकर सुरक्षित क्षेत्र की ओर भाग सकते हैं। तभी तो बाघों और मनुष्य के लिए खतरनाक जीवों को शहरों की सड़कों पर घूमते देखा जाता है। मगर उन निरीह जीवों और कीट-पतंगों का क्या हाल होगा जो आग की गति से भाग भी नहीं सकते। जंगलों की आग मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन चुकी है। इस आग के धुएं में अलग-अलग तरह के कण होते हैं जिनमें कार्बन मोनोआक्साइड भी शामिल है। स्थिति बहुत चिन्ताजनक है। ब्लैक कार्बन ग्लेशियरों को लगातार नुक्सान पहुंचा रहे हैं। ग्लेशियर जब पिघलेंगे तो इस पर जमा ब्लैक कार्बन भी बहेगा इससे जल प्रदूषित हो जाएगा। यह विडम्बना ही है कि किसी पेड़ के कटने से वन विभाग आम आदमी का जीना हराम कर देता है। उस विभाग काे जंगलों के जलने का दोषी क्यों न माना जाए।
कौन नहीं जानता कि राज्यों में अवैध खनन माफिया की तरह वन माफिया भी सक्रिय हैं। हर बार जंगल बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्य योजना बनाकर जंगल को बचाने का ढिंढोरा पीटा जाता है लेकिन आग से बचाने के लिए जंगल की प्रवृत्ति को बदलने का कोई प्रयास नहीं किया जाता। मानव और व्यवस्था सब तमाशबीन बनकर देख रहे हैं। मौसम परिवर्तन के चक्र ने अपने पंजे भयंकर रूप से फैला दिए हैं। जंगल अपनी ही हवाओं को सुरक्षित नहीं रख पा रहा। पंजाब और हरियाणा जंगलों की आग से बचे हुए हैं क्योंकि पंजाब में 3.65 प्रतिशत और हरियाणा में 3.53 प्रतिशत जमीन पर ही जंगल है। अगर मनुष्य को भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं से अपना बचाव करना है तो उसे प्रकृति से खिलवाड़ करना बंद करना होगा और जंगलों को आग से बचाने के लिए नई योजनाएं बनानी होंगी। वन प्रबंधन के लिए सही योजनाएं नहीं बनाई गई तो हमें भयंकर परिणाम झेलने होंगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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