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देश छोड़ने की होड़ क्यों है?

वैसे तो अनादिकाल से माइग्रेशन, प्रवास, पलायन, स्थानांतरण चलता आ रहा है। जहां लोगों को बेहतर मौक़ा नज़र आता है उस तरफ़ पलायन शुरू हो जाता है। फ़िराक़ गोरखपुरी ने लिखा था, ‘काफिले बसते गए और हिन्दोस्तां बनता गया’। अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूज़ीलैंड जैसे देश भी गोरों ने जाकर बसाए और स्थानीय लोगों को एक कोने में लगा दिया। आज के युग में प्रवास बहुत अलग-अलग ढंग से हो रहा है। इसकी चर्चा तब होती है जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है। जब अपने दुर्भाग्य से भाग रहे लोगों से भरी किश्ती समुद्र में डूब जाती है या कुछ लोग अवैध तरीक़े से जंगल से गुज़र रहे मारे जाते हैं या किसी को अमेरिका ले जाने का वादा कर पूर्व एशिया में छोड़ दिया जाता है या -30 डिग्री में अमेरिका में अवैध घुसने की कोशिश में गुजरात के चार सदस्यों के परिवार के बर्फ़ से जमे हुए शरीर सीमा से कुछ ही मीटर दूर पाए जाते हैं। इनमें दो बच्चे थे। अब निकारगुआ को जाते जहाज़ को फ्रांस में रोक कर वापिस भारत भेज दिया गया क्योंकि उस में सफ़र कर रहे 303 यात्री वहां से मैक्सिको के रास्ते अमेरिका में अवैध प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे।
निकारगुआ अब अमेरिका में अवैध प्रवेश का द्वार बनता जा रहा है क्योंकि यहां वीज़ा की ज़रूरत नहीं है। अवैध तरीक़े से किसी देश में प्रवेश की भारी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है। जेल में जाना मामूली क़ीमत हो सकती है, पर कई अपनी जान खो बैठे हैं और कइयों का कुछ अता-पता नहीं, ज़िन्दा भी हैं या नहीं। अमेरिका में 30-40 लाख लोग अवैध प्रवेश की कोशिश में जेल में है इनमें से कितने हमारे हैं, पता नहीं। 2023 में 96000 भारतीयों ने अमेरिका में अवैध प्रवेश का प्रयास किया है जबकि 2012 में केवल 642 भारतीयों ने अमेरिका में अवैध दाखिल होने की कोशिश की थी। यह आंकड़ा अमेरिका के सीमा सुरक्षा बल का है और बताता है कि वहां अवैध प्रवेश करने वालों में कैसी चिन्ताजनक वृद्धि हो रही है। 2023 में पिछले साल से 52 प्रतिशत की वृद्धि है। मई में पकड़े गए ट्रैवल एजेंट गिरिश भंडारी के दफ्तर से पुलिस ने 80 पासपोर्ट बरामद किए हैं जिन्हें वह अवैध तरीक़े से अमेरिका या दूसरे देशों में भेजना चाहता था।
जांच अधिकारियों के अनुसार उसका रूट दिल्ली से शारजाहा से बाकू (अज़रबैजान) से इस्तांबुल (तुर्की) से पनामा सिटी से सैन साल्वाडोर से टापाचुल्ला (मैक्सिको) से अमेरिका था। इतने देशों से निकालना बताता है कि नेटवर्क कितना बड़ा है पर यह भी सावधान करता है कि इतने देशों से बच-बचाव कर निकलना जोखिम भरा हो सकता है। पर फिर भी कई विदेश जाने और वहां बसने के लिए जान पर खेलने को तैयार हो जाते हैं। कड़वा सवाल है कि एक वर्ग में इतनी हताशा क्यों है कि वह देश छोड़ने को उतावले रहते हैं? देश छोड़ने की होड़ क्यों है?
जिसे पंजाब में ‘डंकी फ्लाइट’ कहा जाता है ऐसी ही निकारगुआ जा रही। फ्रांस के कारण अवैध माइग्रेशन का अरबों डालर का धंधा अब अंतर्राष्ट्रीय सुर्ख़ियों में है। किसी भी तरह देश का एक वर्ग विदेश जाकर बसने की कोशिश कर रहा है। जो नहीं जा सकते वह वहां जाने के सपने देखते हैं। इस फ्लाइट में अधिकतर भारतीय थे, इनमें से भी अधिकतर पंजाबी हैं, पर हैरानी है कि 60 यात्री गुजरात से थे। पंजाब में तो जिसे कभी ‘कबूतरबाजी’ कहा जाता है, पागलपन की हद तक है। आज से नहीं दशकों से है। अधिकतर युवा बाहर विशेष तौर पर कनाडा जाना चाहते हैं। इस पर अब कुछ अंकुश लग गया है क्योंकि वहां परिस्थितियां अनुकूल नहीं रही। वहां सरकार ने 1 जनवरी से अंतर्राष्ट्रीय स्टूडेंट्स के लिए जो पैसे लेकर जाना है उसको दोगुना कर दिया है। किराए इतने बढ़ गए हैं कि एक एक कमरे में छह-छह स्टूडेंट्स हैं। भारत और कनाडा के बीच असुखद सम्बंधों का भी असर हो रहा है। पंजाब से गए कई नौजवानों के अवैध धंधों में संलिप्त होने के कारण भी स्थानीय लोग परेशान हो उठे हंै। पिछले साल पंजाब से 1.36 लाख स्टूडेंट्स कनाडा गए थे। पंजाब का पिछले साल 63000 करोड़ रुपया इस तरह कनाडा गया था। अब इस में कुछ रोक लग रही है, पर बाहर भागने की प्रवृत्ति कम नहीं हो रही। अब आस्ट्रेलिया और अमेरिका बसने की होड़ है।
लेकिन विदेश भागने वालों में केवल पंजाबी ही नहीं गुजराती भी बहुत हैं। कारण भी एक जैसे है। यहां मौक़े कम हैं। पंजाब की तरह बहुत गुजराती विदेश में बसे हुए हैं। बहुत के रिश्तेदार विदेश में हैं जिनके लाइफ़स्टाइल से स्थानीय लोग बहुत प्रभावित हैंै। इन्हें देख कर दूसरे भी बाहर जाने के लिए हाथ-पैर मारते हैं। गुजरात से पत्रकार महेश लंगा ने बताया है कि पिछले दो-तीन वर्षों में गांवों से कई सौ लोग अवैध तरीके से विदेश चले गए हैं। बाहर रोज़गार के अवसर अधिक हैं। वह लिखते हैं, “ यहां अच्छी नौकरियों की कमी है। कई बार तो गांवों मे रोज़गार है ही नहीं। इसलिए लोग पैसे दे कर अमेरिका में अवैध रहना बेहतर समझते हैं… कई लोगों के लिए यहां कोई भविष्य नहीं है…लोग अपने बच्चों की ज़िन्दगी बेहतर करने के लिए बड़ा क़र्ज़ा उठा रहे हैं”।
गुजरात से जो निकारगुआ के रास्ते अवैध तरीक़े से अमेरिका जाने की कोशिश कर रहे थे, के बारे दिलचस्प है कि इन सब ने एजेंटों को अमेरिका में दाखिल करवाने का 60-80 लाख रुपया देना माना था। यह पैसा वहां पहुंचने के बाद परिवार द्वारा दिया जाना था। अर्थात खाते-पीते परिवार हैं। यह हमारे शासकों के लिए चिन्ताजनक होना चाहिए कि गुजरात जैसे प्रदेश जहां इतना निवेश हो रहा है, वहां से भी लोग विदेश जाने के लिए जोखिम उठा रहे हैं। ठीक है कि जितनी हमारी जनसंख्या है उसके अनुपात में जो विदेश जाना चाहते हैं उनका अनुपात बहुत कम है, पर जैसे डा. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू ने भी लिखा है कि, “गरीब, मिडिल क्लास, रईस सब पहले से अधिक संख्या में देश छोड़ रहे हैं”।
पिछले एक दशक में हर वर्ग से माइग्रेशन बढ़ी है। मैं एक चपरासी को जानता हूं जिसने पैसे इकट्ठे कर अपने दो लड़कों को कनाडा शिक्षा के लिए भेजा है। उसे आशा है कि वहां बाद में पी.आर. मिल जाएगा। पंजाब में कई तो अपनी अच्छी पक्की नौकरियां छोड़ कर चले गए हैं कि वह ‘अपने बच्चों के लिए बेहतर भविष्य चाहते हैं जो यहां नहीं मिल सकता’। जो प्रोफेशनल हंै वह बेहतर जीवन और बेहतर पेय-पैकेट के लिए विदेश जाना चाहते हैं।
इस वक्त विदेश में बसे भारतीयों की संख्या 3 करोड़ के लगभग है। इनमें गरीब या बेरोज़गार या प्रोफेशनल ही नहीं, सुपर रिच भी हैं। सुपर रिच क्यों विदेश बसना चाहते हैं यह अलग लेख का विषय है, पर यह हैरान करने वाली बात है कि विश्व की सबसे तेज गति वाली अर्थव्यवस्था को छोड़ने वाले बहुत हैं। सरकार का दावा है कि दस वर्ष में हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी होगी। फिर लोग देश क्यों छोड़ रहे हैं? पहले लोग अपनी भारतीय नागरिकता को पावन मानते थे। अब नई प्रवृत्ति है। क्योंकि भारत दोहरी नागरिकता की इजाज़त नहीं देता इसलिए बहुत लोग अब अपनी नागरिकता छोड़ रहे हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संसद को बताया है कि 2022 में रिकार्ड 225620 भारतीयों ने अपनी नागरिकता त्याग दी थी। यह बहुत चिन्ताजनक आंकड़ा है। 2011से लेकर अब तक 16 लाख लोग भारत की नागरिकता छोड़ चुके हैं। हमारी जनसंख्या के सामने यह मामूली लगता है पर जब पढ़े-लिखे बाहर भागना चाहें तो अलार्म बजना है।
ऐसी हालत क्यों है? कई कारण हैं। कई यहां के माहौल को ज़िम्मेवार ठहराते हैं जो कमजोर की मदद नहीं करता। यह भी शिकायत है कि पैसे दिए बिना सरकारी नौकरी नहीं मिलती। यहां शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं जिस कारण बच्चे बाहर पढ़ना चाहते हैं। हमारा शिक्षा पाठ्यक्रम अभी भी रट्टे पर आधारित है जो आज की ज़रूरतों के उपयुक्त नहीं। हमारे टॉप आईआईटी प्रोफेशनल में से 60 प्रतिशत विदेश बस रहे हैं।
अफ़सोस है की हम प्रतिभा के पलायन को रोक नहीं सके। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का वीडियो देखा जिसमें वह मैकॉले को भारत की गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को समाप्त करने का दोषी ठहरा रहे थे, पर हम कब तक मैकॉले को अपनी हालत के लिए ज़िम्मेवार ठहराते जाएंगे? उसकी तो मृत्यु 1859 में हो गई थी। 165 साल के बाद भी उसे ज़िम्मेवार ठहराना तो अपनी ज़िम्मेवारी से भागना है। यह भी जानना दिलचस्प रहेगा कि वीआईपी वर्ग की कितनी औलाद मैकॉले के देश या ऐसे दूसरे देशों में पढ़ रही है या वहां बस गई है? कइयों का कहना है कि भारत अब बहुत कट्टर बन रहा है और वह अपने बच्चों को इस माहौल से निकालना चाहते हंै। हमारे शहरों की दुर्दशा और प्रदूषण भी हमें अनाकर्षक बनाती है। महिला असुरक्षा की भी शिकायत है। जैसे महिला पहलवानों की शिकायत से निबटा गया है उससे भी बहुत ग़लत संदेश गया है। दुनिया अब नज़दीक आ गई है इसलिए बाहर बसना आसान हो गया है।
देश के लिए यह अच्छा नहीं कि युवा प्रतिभा यहां अपना भविष्य नहीं देखती। इसके न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक दुष्परिणाम भी हैं क्योंकि बहुत से घर ऐसे हैं जहां केवल मां-बाप रह गए हैं बच्चे उड़ गए हैं। घोंसले ख़ाली हो रहें हैं। बड़ी संख्या में वृद्ध आश्रम खुलने का भी यही कारण है। खेद यह भी है कि किसी को चिन्ता नहीं। आजकल जो राजनीतिक माहौल है क्या उससे कोई आभास मिलता है कि राजनीतिक वर्ग को युवाओं की हताशा का अहसास भी है?

 

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