मेघालय की राजधानी शिलांग में पिछले पांच दिनों से हिंसा बरकरार है। शांतिप्रिय शहर में आखिरकार हिंसा भड़की कैसे? पुलिस और सरकार हैरान है। हालात इतने बदतर हुए कि कर्फ्यू लगाना पड़ा और केन्द्र को अपने बल भेजने पड़े। हिंसा की वजह तो एक खासी समुदाय और पंजाबी महिला के बीच झड़प बताई जा रही है। दोनों में बस की पार्किंग को लेकर तकरार भी हुई थी। फिर सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से झूठे मैसेज वायरल किए गए जिससे तनाव बहुत बढ़ गया। यह सही है कि सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे भ्रामक संदेशों ने आग में घी डाला लेकिन इसकी असली वजह राज्य में अवैध प्रवासियों को लेकर चल रहा विवाद है। खासी समुदाय खुद को मेघालय का मूल समुदाय बताता है। इस समुदाय से जुड़े कुछ संगठन पिछले कई वर्षों से यह दावा करते आ रहे हैं कि उनके इलाके में अवैध प्रवासियों यानी कि पंजाबियों ने कब्जा कर लिया है और उन्हें हटाने की तो वह लम्बे अरसे से मांग कर रहे हैं। वहीं पंजाबी समुदाय के लोगों का कहना है कि उनके पूर्वजों को यहां बसे 100 साल से अधिक हो गए हैं।
ब्रिटिश शासन के समय उनके दादा-परदादाओं काे क्लीनर, मैकेनिक आैर अन्य कर्मचारियों के तौर पर लाकर यहां बसाया गया था। उस समय तो मेघालय राज्य ही नहीं बना था। उनका व्यवसाय, घर-पिरवार सब यहीं है। चाहे कुछ भी हो जाए वह यहां से नहीं जाएंगे। शिलांग शहर में थेम ईयू मावलोंग इलाके की पंजाबी कालोनी में लगभग 500 पंजाबी दलित परिवार बसे हुए हैं। हर चुनाव के समय इन्हें यहां से उजाड़ने को मुद्दा बनाया जाता रहा है। पिछले कई वर्षों से कई राजनेता उन्हें किसी दूसरी जगह बसाने की बात करते रहे हैं लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकला। खासी समुदाय का आरोप है कि पंजाबी कालोनी में बसे लोग हमेशा खासी समुदाय के लिए परेशानी खड़ी करते हैं। मेघालय में 1980 के दशक में विद्रोह की भावना ने जड़ें जमाईं। इसकी शुरूआत एक आंदोलन के रूप में हुई। यह आंदोलन दखर यानी बाहरी लोगों के बढ़ते सामाजिक, आर्थिक और सियासी दबदबे के खिलाफ था। शुरूआत में कई उग्रवादी संगठन उठ खड़े हुए जैसे कि हेनीव्येप अचिक लिबरेशन काउंसिल, अचिक मातग्रिक लिबरेशन आर्मी और अचिक नेशनल वालंटियर्स आदि लेकिन बाद में इनकी पकड़ कमजोर पड़ गई। सन् 2009 में गारो नेशनल लिबरेशन आर्मी का गठन हुआ।
गठन का मुख्य मकसद मेघालय के पश्चिमी हिस्से में अलग गारोलैंड कायम करना था। जनजातीय लोगाें के लिए अलग राज्य बनाने की मांग ने जोर पकड़ा। बीते कुछ वर्षों से राज्य में विद्रोही गतिविधियों में काफी कमी आई है। उत्तर पूर्वी राज्यों में जम्मू-कश्मीर और अन्य पर्वतीय राज्यों की तरह यह कानून लागू है कि दूसरे राज्यों के लोग वहां सम्पत्ति नहीं खरीद सकते। ऐसा कानून पर्वतीय राज्यों के पर्यावरण और वहां के प्राकृतिक सौन्दर्य, संसाधन और सांस्कृतिक सभ्यता को बनाए रखने के लिए ही लागू किया गया था लेकिन प्रायः देखा गया है कि बाहरी राज्यों के लोग कानून का उल्लंघन करके वहां अपनी सम्पत्ति खड़ी कर व्यवसाय शुरू कर देते हैं जैसे कि हिमाचल आैर उत्तराखंड में हुआ है। पूर्वोत्तर राज्यों में भी ऐसा हो रहा है। पंजाबी समुदाय ने तो देश में ही नहीं, विदेश में जाकर भी अपनी पहचान बनाई है। सिख समुदाय काफी मेहनतकश है आैर वह तो जहां भी जाएं वहां की संस्कृति और सभ्यता को आत्मसात कर न केवल रोजी-रोटी कमाते हैं बल्कि वहां के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं।
मेघालय में 500 परिवारों की एक कालोनी पर आपत्ति तो किसी तो नहीं होनी चाहिए, क्योंकि वे तो कई बरसों से वहां रह रहे हैं। आखिर सिख हैं तो भारतीय ही। अपने ही देश में अपने ही लोगों को पराया समझने की फितरत से पता नहीं हमें कब मुक्ति मिलेगी। यह भी दुःखदायी है कि आजाद भारत में वहां के पंजाबी समुदाय को गुरुद्वारों में शरण लेनी पड़े। मेघालय में जनजातीय भावनाओं का सख्त उभार है। रोजगार के अवसर भी बहुत सीमित हैं क्योंकि आैद्योगिक गतिविधियों के विकल्प के तौर पर कोई आैर अवसर मौजूद नहीं है। राज्य के आंतरिक संसाधनों का विकास के लिए उपयोग न के बराबर है इसलिए स्थानीय लोग बाहरी लोगों को उनके संसाधनों पर डकैती डालने जैसा मानते हैं। राज्य सरकार को चाहिए कि शिलांग में साम्प्रदायिक सद्भाव कायम रहे और दोनों समुदाय भाईचारे और शांति से रह सकें। मेघालय का अर्थ ही मेघों का आलय या घर है। मेघों के घर में हिंसा तो होनी ही नहीं चाहिए। राज्य सरकार को उन तत्वों के विरुद्ध कार्रवाई करनी चाहिए जिन्होंने हिंसा भड़काने के लिए पैसा और शराब बांटी। मेघालय फिर से घायल न हो, इसके लिए ठोस कदम उठाने जरूरी हैं।