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मानवता के लिए योग

आज दुनिया 8वां अंतर्राष्ट्रीय योगा दिवस मना रही है। इस वर्ष योगा दिवस की थीम ‘मानवता के लिए योगा’ है। पिछले वर्ष की थीम की बात करें तो उस साल पूरा विश्व कोरोना महामारी से गुजर रहा था, ऐसे में आयुष मंत्रालय ने कोरोना और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए ‘स्वास्थ्य के लिए योगा’ थीम रखी थी।

आज दुनिया 8वां अंतर्राष्ट्रीय योगा दिवस मना रही है। इस वर्ष योगा दिवस की थीम ‘मानवता के लिए योगा’ है। पिछले वर्ष की थीम की बात करें तो उस साल पूरा विश्व कोरोना महामारी से गुजर रहा था, ऐसे में आयुष मंत्रालय ने कोरोना और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए ‘स्वास्थ्य के लिए योगा’ थीम रखी थी। मानवता के लिए योगा विषय दर्शाता है कि महामारी के दौरान योगा ने लोगों के कष्टों को कम करने और कोरोना के बाद भू-राजनीतिक परिदृश्य में मानवता की सेवा की है। यह थीम करुणा, दया के माध्यम से लोगों को एक साथ जोड़ने, एकता की भावना को बढ़ाने और दुनिया भर के लोगों के बीच लचीलापन पैदा करेगी।
योग शब्द के दो अर्थ हैं और दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। पहला है जोड़ और दूसरा है समाधि। जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ते, समाधि तक पहुंचना कठिन है। योग दर्शन या धर्म नहीं, गणित से कुछ ज्यादा है। योग एक विज्ञान है, योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे है, योग प्रायौगिक विज्ञान है। योग जीवन जीने की कला है। योग एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति है। आचार्य रजनीश ने कहा था- ‘‘दरअसल धर्म लोगों को एक खूंटे से बांधता है और योग सभी तरह के खूंटों से मुक्ति का मार्ग बताता है। भीतरी विज्ञान की दुनिया के आइंस्टीन हैं पतंजलि। जैसे शिखरों में हिमालय श्रेष्ठ है, वैसे ही समस्त दर्शनों, विधियों, नीतियों, नियमों,  धर्मों और व्यवस्थाओं में योग श्रेष्ठ है। भारत प्राचीन काल से ही योग विद्या का स्रोत रहा है। यहां के परम तपस्वी महात्मा,मनीषियों ने इस विद्या का प्रकाश मानव कल्याण के लिए ही किया। वेदों एवं उपनिषदों में योग का वर्णन मिलता है। पतंजलि योग दर्शन में औपनिषद योग का वर्णन मिलता है। स्मृतियों में भी योग की महता स्वीकार की गई है।
रामायण और महाभारत में योग के अंग-यम-नियम-प्राणायाम आदि का उल्लेख है। श्रीमद् भागवत गीता में तो योग की सुन्दर प्रतिष्ठा ही की गई है। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं योगेश्वर हैं और अर्जुन को भी उन्होंने योगी बन जाने को कहा है। श्रीमद् भागवत महापुराण में भक्ति योग, सांख्य योग एवं अष्टांग योग साधना का विस्तृत उल्लेख है। माता देवहूति से कपिल मुनि कहते हैं शास्त्रानुसार स्वधर्माचरण, शास्त्र विरुद्ध आचरण का त्याग, प्रारब्धानुुसार जो प्राप्त है उसी में संतुष्ट रहना, शास्त्र विरुद्ध आचरण का त्याग, प्रारब्धानुसार जो प्राप्त है उसी में संतुष्ट रहना, विषयों से विरक्ति, सत्य, अस्तेय, असंग्रह, ब्रह्मचर्य पालन, वाणी का संयम, आसनों का अभ्यास और प्राणायाम के द्वारा श्वास को जीतना, इंद्रियों को मनके द्वारा विषयों से हटाकर अपने हृदय में ले जाना योग के मुख्य सोपान हैं। भगवान की लीलाओं का चिन्तन करते हुए, भगवान के स्वरूप का ध्यान करते हुए उन्हीं में लीन हो जाना ही परम शांति है। ध्यान की अंतिम परिणति समाधि में होती है और समाधि की अवस्था में तत्व का पूर्ण एवं सूक्ष्म ज्ञान होता है। जीवन के महत्तम लक्ष्यों की सिद्धि में केवल मानव शरीर ही सक्षम है। मोक्ष प्राप्ति की कामना भी मनुष्य ही कर सकता है। योग के बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। ऐसा कहा जाता है कि जिन तत्वों से ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है, उन्हीं से हमारा शरीर भी बना है अर्थात जो हमारे भीतर है वही विराट रूप संसार में है। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि आत्मतत्व को जान लेने पर समस्त सृष्टि एवं परमात्म तत्व का भी सूक्ष्म और पूर्ण ज्ञान हो जाता है।
भारत ने दुनिया को धर्म, आध्यात्मिक और ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में हमेशा महत्वपूर्ण मार्गदर्शन दिया है। यह सही है कि आर्थिक प्रगति के दौर में प्रगतिशील समाज ने भौतिक रूप से काफी तरक्की कर ली है लेकिन उसके मन-मस्तिष्क में अनेक विकृतियां पैदा हो रही हैं। ऐसे में विदेशों में योग के प्रति आकर्षण इतना बढ़ गया है कि आज के दौर में स्वामी रामदेव ने योग को देश-विदेश में इतना लोकप्रिय बनाया कि योग अब योगा हो गया है। योग की महता तो सभी कालों में रही है और विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों ने योग को स्वीकार भी किया है लेकिन कभी-कभी अन्य धर्मों के लोग योग को ​हिन्दू धर्म का हिस्सा बताकर इसका ​विरोध करते हैं। अमरीका के वाशिंगटन, न्यूयार्क, कैलिफोर्निया समेत बड़े शहरों में योग की कक्षाएं लगती हैं।
आज योग का बाजार बहुत बड़ा हो गया है। लगभग 50 मुस्लिम देशों समेत 170 देश योग को स्वीकार कर चुके हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में योग सीखने वाले लोगों की संख्या 20 करोड़ से ऊपर है। योगा टीचर्स की मांग सालाना 35 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। भारत में योग से जुड़ा कारोबार 12 हजार करोड़ को पार कर गया है। दुनियाभर में योगा कारोबार 6 लाख करोड़ है। अनेक देशों में योगा सैंटर खुल रहे हैं। जगह-जगह योगा शिविर, वैलनेस शिविर लगाये जाते हैं। कार्पोरेटर कं​पनियां अपने कर्मचारियों को योगा का प्रशिक्षण देती हैं। बड़ी संख्या में भरतीय ट्रेनर विदेश जा रहे हैं। योग तो परम शक्ति तक बढ़ने की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। योग बहुत वृहत्तर विषय है-ज्ञान योग, भक्ति योग, धर्म योग, कर्म योग, हठयोग। इस सबको छोड़ कर राजयोग है, यही पतंजलि का योगा है। शरीर बदलेगा तो मन बदलेगा, मन बदलेगा तो बुद्धि बदलेेगी, बुद्धि बदलेगी तो आत्मा स्वतः ही स्वस्थ हो जाएगी। आत्मा तो स्वस्थ है ही। दुनिया के सारे धर्म चित्त पर ही कब्जा करना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने तरह-तरह के नियम, क्रिया कांड, ईश्वर के प्रति भय को उत्पन्न कर लोगों को अपने धर्म से जकड़े रखा है। योग से अनेक बीमारियों का उपचार किया जा सकता है। योग कहता है कि शरीर और मन का दमन नहीं करो बल्कि इसका रूपांतर करो। इसके रूपांतर से ही जीवन में बदलाव आएंगे। यौगिक क्रियाओं से सब कुछ बदला जा सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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