रहस्यो से पर्दा उठती जासूसी पर आधारित फिल्मे रोमांच से भरपूर होती है। जिसमे दिखाते है एक नायक जो जासूस की भूमिका में है वो कई जोखिमों से जूंझता हुआ अपने कार्य को सफल अंजाम देता है। बात सच्चाई की करे तो जासूसों की जिंदगी जो फ़िल्मी पर्दे पर दिखाई जाती उससे भी अधिक जोख़िम और रहस्यों से भरी होती है। अपने हर टास्क को सफल करने के लिए किसी भी हद तक गुजरने को तैयार रहते है ये जासूस। किसी भी धर्म , पोषक और जगह को बदलकर काफी गुप्त तरीक़े से दुश्मन के घर से सूचना प्राप्त करना आसान नहीं है। दिमाग के साथ – साथ इन लोगों को दुश्मन से हथियार के द्वारा भी लड़ना पड़ता है। भारत ही नहीं दुनिया के सभी देश अपने विरोधी की हर एक हरकत पर नज़र रखने के लिए गुप्तचर का प्रयोग करते है। आज की इस कहानी में जिस जासूस के विषय में बताने जा रहे है उनका नाम सुनते है पाकिस्तान की रूह तक कांप जाती है। जिनका नाम है अजित डोभाल, जैसे – जैसे आप इनके बारे पढ़ते रहेंगे आपके सामने तमाम उन फिल्मों के दृश्य ताजा होने लगेंगे जो जासूसी पर आधारित है। इन्हे भारत का जेम्स बॉन्ड भी कहा जाता है। अजीत डोभाल देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार है। इनका जन्म आजदी से पूर्व पोढ़ी – गढ़वाल में हुआ। पिता सेना में अधिकारी थे। साल 1968 में वह आईपीएस बने। उन्हें केरल कैडर मिला अभी तक की सर्विस में 7 साल पुलिस विभाग में रहे बाकी आईबी , रॉ में रहते हुए उन्होंने कई ऑपरेशन को सफल अंजाम दिया।
पाकिस्तान में पहचाने गए डोभाल
डोभाल ने कई साल तक पाकिस्तान में रहते हुए भारत को कई अहम् जानकारियां भेजी। वह पाकिस्तान में मुस्लिम के भेष बनाकर रहते थे। एक दिन उनके इस भेष के पीछे का चेहरा किसी ने पहचान लिया। हुआ यू की वह लाहौर में में औलिया की एक मज़ार के रस्ते से गुजर रहे थे। वह मस्जिद में आकर बैठे तो उन्होंने देखा एक आदमी उन पर काफी समय से नज़र बनाए हुए था। उस व्यक्ति ने काफी बड़ी दाढ़ी रखी हुई थी। उसने डोभाल को बुलाया। उसने कहा कि तुम हिंदू हो। डोभाल ने कहा- नहीं। उसने कहा- मेरे साथ आओ। डोभाल ने एक कार्यक्रम में बताया था कि वह उन्हें दो-चार गलियों से ले जाकर एक छोटे से कमरे में ले गया। दरवाजा बंद करने के बाद उसने कहा कि देखो तुम हिंदू हो। डोभाल ने कहा- आपको क्यों लगता है ऐसा? उसने कहा कि आपके कान छेदे हुए हैं। डोभाल ने बताया कि जहां का मैं रहने वाला हूं, वहां की प्रथा है, बच्चे छोटे होते हैं तो…। बाद में डोभाल ने हामी भरते हुए बात पलट दी। उन्होंने कहा कि हां, ऐसा है लेकिन बाद में वह कन्वर्ट हो गए थे। उसने कहा कि तुम बाद में भी कन्वर्ट नहीं हुए। उसने कहा कि इसकी प्लास्टिक सर्जरी करवा लो, इस तरह से घूमना ठीक नहीं है। एक कार्यक्रम में डोभाल जब इस घटना का जिक्र कर रहे थे तो उन्होंने बताया कि वैसा ही बाद में उन्होंने किया, अब कान का छेद कम दिखाई देता है।
कमरे के कोने में एक आलमारी![PAKISTAN MANDIR](data:image/svg+xml,%3Csvg%20xmlns='http://www.w3.org/2000/svg'%20viewBox='0%200%201200%20628'%3E%3C/svg%3E)
फिर उसने आगे बताया, ‘पता है, ऐसा मैंने क्यों कहा… क्योंकि मैं भी हिंदू हूं।’ उसने कहा, मेरा सारा परिवार इन लोगों ने मार दिया था। मैं यहां पर किसी तरह से अपने दिन काट रहा हूं। मुझे बहुत खुशी होती है जब आप लोगों को देखता हूं। मैंने भी अपनी वेशभूषा बदली हुई है।’ उसने कमरे के कोने में एक आलमारी खोली। उसमें शिवजी और दुर्गा जी की तस्वीर थी। उसने कहा कि मैं पूजा करता हूं लेकिन बाहर मस्जिद में जाता हूं। यहां सब लोग मुझे बहुत धार्मिक मानते हैं।
उग्रवादी बनकर खालिस्तानियों का विश्वास जीता![KHALISTANI TOP](data:image/svg+xml,%3Csvg%20xmlns='http://www.w3.org/2000/svg'%20viewBox='0%200%201200%20628'%3E%3C/svg%3E)
ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद पंजाब के युवा बड़ी संख्या में पाकिस्तान जा रहे थे। जहा उन्हें बरगलाया जा रहा था की आपका धर्मस्थल भारत सरकार ने तोडा। डोभाल के अनुसार 1988 अप्रैल-मई में ऐसे हालात बनने लगे आतंकी किसी भी घटना को अंजाम देते ते और स्वर्ण मंदिर में चले जाते थे। उस समय पूरा पंजाब में आतंकवाद चरम पर था। उस समय डोभाल आईबी मुख्यालय में ऑपरेशंस हेड थे। इसके बाद ही ब्लैक थंडर की नींव पड़ी। डोभाल खुद एक उग्रवादी के वेश में स्वर्ण मंदिर में घुस गए।। डोभाल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि हमको सब पता था, कुछ लोगों का विश्वास जीत लिया जिससे वे सलाह भी मानने लगे। इसके बाद वह गलत-गलत सुझाव देने लगे। इससे उनकी ताकत खत्म होती गई। आखिर में यह प्लानिंग थी कि स्थिति बिगड़ जाए तो इनसे कहा जाए कि भाई, अब कोई रास्ता नहीं है। अब आपको सरेंडर ही करना पड़ेगा। कहा जाता है कि 4-5 दिनों में 3 बड़े कमांडरों को उन्होंने अंदर ही मार गिराया। इसके बाद डोभाल बाहर आ गए।
जासूसी का शक होने पर ही कई लोग मारे गए![BSF 2](data:image/svg+xml,%3Csvg%20xmlns='http://www.w3.org/2000/svg'%20viewBox='0%200%201200%20628'%3E%3C/svg%3E)
डोभाल बताते हैं कि अंदर का माहौल ऐसा था कि जासूसी का शक होने पर ही कई लोगों को मार दिया गया। अजीत डोभाल अंदर आते जाते रहे। कुछ स्नाइपर भी तैनात किए गए। पानी के कनेक्शन और बिजली काट दी गई। उग्रवादी अंदर ही बंद होकर रह गए। आखिर में उग्रवादियों से माइक से अपील की गई कि आप सरेंडर कर दीजिए। एक के बाद एक सबने सरेंडर कर दिया। यह डोभाल की ही रणनीति थी कि फायरिंग से किसी की मौत नहीं हुई।
सिक्किम बना भारत का हिस्सा![SIKKIAMM](data:image/svg+xml,%3Csvg%20xmlns='http://www.w3.org/2000/svg'%20viewBox='0%200%201200%20628'%3E%3C/svg%3E)
सिक्किम के राजा ने एक अमेरिकी लड़की से शादी कर ली, जो सीआईए की एजेंट निकली। शादी के बाद कंट्रोलिंग पावर उसने अपने हाथों में ले ली। भारत सरकार को टेंशन थी कि अमेरिका अगर भारत के भीतर अपनी मनमानी चलाएगा तो मामला बिगड़ सकता है। यह1974-75 का साल था। तब तक सिक्किम पूरी तरह से भारत के साथ नहीं था। वहां जाकर डोभाल ने सिक्किम नेशनल कांग्रेस पार्टी से दोस्ती कर ली। उनके नेताओं को उकसाया कि राजा आपकी सुनता नहीं है। टैक्स वसूल रहा है। मतलब डोभाल ने राजा के खिलाफ माहौल बनाया। पार्टी मजबूत स्थिति में आई और जनमत संग्रह भी हुआ। जनता ने भारत के पक्ष में वोट कर दिया। फौरन डोभाल के कहने पर केंद्र सरकार ने सेना भेज दी और राजा के महल पर कब्जा हो गया और सिक्किम पूर्ण रूप से भारत में मिल गया।
लाल डेंगा को किया अलग
मिजोरम के उग्रवादी संगठन मिजो नेशनल फ्रंट का आतंक एक समय चरम पर था। हर राज्य वहां अलग देश बनाना चाहता था। लाल डेंगा मिजोरम में ताकतवर हो चुका था। वह अपनी सरकार चला रहा था। डोभाल शादी करके लौटे ही थे। मिजोरम जाकर गुट के अंदर तक पहुंच गए। लाल डेंगा के सात कमांडर थे। डोभाल की स्टाइल रही है कि वह दुश्मन के खेमे में घुसकर कुछ लोगों को दोस्त बना लेते थे। दोस्ती इतनी कर ली कि रोज शाम एक कमांडर से मिलते और उसे अपनी बात मानने के लिए राजी करते। धीरे-धीरे डोभाल ने सात में से छह कमांडरों को तोड़ लिया। स्पेशल स्टेट, पैसा, पावर का लालच देकर डोभाल ने लाल डेंगा को अलग-थलग कर दिया। अब लाल डेंगा कमजोर पड़ गया था। आखिर में वह डोभाल की बात मानने के लिए तैयार हो गया।
इतिहास का निर्णय हमेशा शक्तिशाली के पक्ष में ![AJIT KA RA](data:image/svg+xml,%3Csvg%20xmlns='http://www.w3.org/2000/svg'%20viewBox='0%200%201200%20628'%3E%3C/svg%3E)
वह मानते हैं कि इतिहास का निर्णय हमेशा उसके पक्ष में गया है, जो शक्तिशाली था। इसने कभी उसका साथ नहीं दिया जो न्याय के साथ था, जो सही था। अगर ऐसा होता तो दिल्ली में बाबर रोड थी लेकिन राणा सांगा रोड नहीं क्योंकि बाबर आया विजयी हुआ और राणा सांगा हार गए। भारत की हिंदूशाही किंगडम अफगानिस्तान से सिकुड़ती चली गई। उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा था कि हमने किसी पर हमला नहीं किया, हम न्याय संगत भी थे लेकिन शक्ति हमारे साथ नहीं थी। उनका साफ तौर पर कहना है कि अगर हितों का टकराव हो तो शक्तिशाली बनना आवश्यक है। पाकिस्तान और चीन दोनों मोर्चों पर मोदी सरकार के वह सबसे बड़े रणनीतिकार हैं। प्रधानमंत्री की हर महत्वपूर्ण बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल मौजूद रहते हैं।