ऐसा देश जहां मुसलमानों को नहीं मिलती कब्र के लिए 2 गज जमीन भी, जानें क्यों है ये भेदभाव-Muslims Struggle To Bury Their Dead In Japan

ऐसा देश जहां मुसलमानों को नहीं मिलती कब्र के लिए 2 गज जमीन भी, जानें क्यों है ये भेदभाव

ऐसा देश जहां मुसलमानों को नहीं मिलती कब्र के लिए 2 गज जमीन भी, जानें क्यों है ये भेदभाव-Muslims Struggle To Bury Their Dead In Japan

जापान दुनिया के विकसित देशों में शुमार है। जापान की कुल आबादी करीब 2 करोड़ है। जिसमें मुसलमानों की संख्या एक फीसदी से भी कम है यानी जापान में मुसलमानों की संख्या मात्र दो लाख है। वहीं, ईसाईयों की आबादी महज 1 फीसदी है।

Muslims struggle to bury their dead in Japan

जापान की 99 फीसदी आबादी बौद्ध और शिंतो परंपरा के अनुसार अपने परिवारवालों और दोस्तों के मरने पर उनके पार्थिव शरीर को जलाकर उनका अंतिम संस्कार करते हैं।

लेकिन इस्लाम धर्म में शव को जलाना प्रतिबंधित है। ऐसे में इस समुदाय के लोगों की मौत होने पर उन्हें 24 घंटे के अंदर दफ़नाना होता है। लेकिन जापान में हालत ये हैं कि कुछ परिवारों को अपने क़रीबियों की मौत होने पर उन्हें इस्लामी रीति-रिवाज़ से दफ़नाने के लिए सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है जिस कारण उन्हें 2 दिन भी लग जाते हैं।

जापान में सिर्फ 7 कब्रिस्तान

जापान में मुस्लिमों और ईसाईयों के लिए कुल 7 सार्वजनिक कब्रिस्तान हैं, जहां दफनाने की व्यवस्था है। अब ज्यादातर कब्रिस्तान में कोई जगह नहीं बची है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, जापान में कुछ समय से विदेशी नागरिकों की संख्या बढ़ी है। इसमें अच्छी-खासी संख्या में मुसलमान भी हैं, लेकिन अब भी देश में सिर्फ 7 कब्रिस्तान हैं।

Muslims struggle to bury their dead in Japan

मुसलमानों और ईसाईयों की इन परेशानी पर कोई ध्यान भी नहीं देता है क्योंकि बहुसंख्यक स्थानीय शव जलाते हैं। इसके चलते प्रशासन ने नए कब्रिस्तान बनाने की तरफ ध्यान भी नहीं दिया। जापान के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक केंद्र सरकार ने कब्रिस्तान से संबंधित कोई नियम नहीं बनाए हैं, बल्कि स्थानीय म्युनिसिपल बॉडीज पर छोड़ दिया है। यह नियम एक तरीके से मुसलमानों के गली की हड्डी बन गया है। जापान इस्लामी ट्रस्ट के मुताबिक अगर स्थानीय निकाय नए कब्रिस्तान की मंजूरी देना भी चाहें तो स्थानीय लोगों के दबाव में पैर पीछे खींचने पड़ते हैं।

स्थानीय क्यों कर रहे विरोध?

एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय लोगों के विरोध करने के पीछे तीन वजहें हैं। विरोध का पहला कारण साफ सफाई है, उन्हें लगता है कि कब्रिस्तान के चलते साफ-सफाई की समस्या खड़ी हो सकती है। दूसरा कारण पानी के दूषित होने का डर है, उन्हें लगता है ऐसा करने से सिंचाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली झील का पानी भी ज़हरीला हो जाएगा और तीसरा कारण सुरक्षा है, स्थानियों के मुताबिक ज्यादातर मुसलमान बाहरी हैं, जो सुरक्षा की दृष्टि से ठीक नहीं है।

सबसे बड़ी बात तो ये है कि कुछ लोगों ने प्राइवेट प्रॉपर्टी खरीद कर उसपर कब्रिस्तान बनाने की कोशिश की। लेकिन स्थानियों ने उसका भी विरोध किया। जबकि ये प्रॉपर्टी भी ऐसे लोगों से खरीदी गई जिन्हें जमीन पर कब्रिस्तान बनाने से कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन कुछ स्थानीय लोगों ने इसका विरोध कर दिया और पूरा प्लान बीच में अटक गया।

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एक और रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2004 में मोहम्मद इकबाल खान अपनी पत्नी के साथ पाकिस्तान से जापान आए थे। लेकिन 2009 में उनकी पत्नी ने एक मृत बच्चे को जन्म दिया। डॉ इकबाल को तब सूझ नहीं रहा था कि वे अपने बच्चे को कहां दफनाएं। अपने बच्चे को दफनाने के लिए उन्हें हजारों किलोमीटर सफर करने के बाद एक कब्रिस्तान मिला। इसके बाद उन्होंने ईसाई कब्रिस्तान के बग़ल में एक प्लॉट खरीद लिया। इकबाल बताते हैं कि ये ज़मीन जिन लोगों से ख़रीदी गई उन्हें कब्रिस्तान बनाए जाने से कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन इस प्लॉट से तीन किलोमीटर दूर रहने वाले लोगों ने इस पर आपति कर दी है।

सैकड़ों किमी दूर दफना रहें शव

जापान इस्लामी ट्रस्ट के मुताबिक उत्तरी जापान में तो शव दफनाने के लिए कोई जगह ही नहीं बची है। दूसरे इलाकों में जो कब्रिस्तान हैं, वहां इक्का-दुक्का जगह है। वहां भी मारकाट जैसे हालात हैं, क्योंकि ईसाई भी उसी कब्रिस्तान का इस्तेमाल करते हैं। जिस कारण मुस्लिम समुदाय को अपने परिवार वालों का शव दफनाने के लिए सैकड़ों किलोमीटर दूर जाना पड़ता है।

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इस्लामी ट्रस्ट के मुताबिक कई मुसलमान शव दफनाने 1000 किलोमीटर दूर तक चले जाते हैं। वहां पहुंचने में 2-3 दिन का वक्त तो लग ही जाता है। समय लगने के साथ ही पैसा भी ज्यादा लगता है और कई बार ताबूत टूटने का भी डर रहता है। जापान में रहने वाले ज्यादातर मुसलमान दक्षिण एशियाई देशों के हैं। वह अपने बुजुर्ग माता-पिता अथवा परिजनों को एक उम्र के बाद अपने देश वापस छोड़ आ रहे हैं। बीमार परिजनों को भी वापस अपने मुल्क भेज रहे हैं, ताकि वह चैन से अंतिम सांस ले सकें।

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